Thursday, 31 July 2025

देवनागरी लिपि : एक वैज्ञानिक और समृद्ध लिपि

देवनागरी लिपि का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार, देवनागरी लिपि का प्राचीनतम उपयोग गुजरात के नरेश जयभट्ट (700–800 ई.) के शिलालेखों में प्राप्त होता है। आठवीं शताब्दी में चित्रकूट तथा नौवीं शताब्दी में बड़ौदा के शासक ध्रुवराज द्वारा भी अपने शासकीय आदेशों में इस लिपि का प्रयोग किया गया था। यह प्रमाण दर्शाते हैं कि देवनागरी लिपि का प्रयोग उस समय एक सुगठित लिपिक व्यवस्था के रूप में हो रहा था।

विश्व की प्रमुख लिपियों की तुलना में देवनागरी लिपि की विशेषताएँ इसे अन्य लिपियों से अलग और अधिक वैज्ञानिक बनाती हैं। यदि हम रोमन तथा उर्दू लिपियों से इसकी तुलना करें तो पाएंगे कि जहाँ रोमन एवं उर्दू लिपियों में स्वर एवं व्यंजन अव्यवस्थित ढंग से सम्मिलित होते हैं, वहीं देवनागरी लिपि में यह विभाजन स्पष्ट और तार्किक है। उदाहरणस्वरूप, देवनागरी में स्वरों को हृस्व और दीर्घ के युग्मों में क्रमबद्ध किया गया है – अ-आ, इ-ई, उ-ऊ, तथा ए, ऐ, ओ, औ जैसे संयुक्त स्वर स्वतंत्र रूप से चिन्हित होते हैं।

व्यंजन वर्गीकरण की वैज्ञानिकता

देवनागरी लिपि में व्यंजनों का वर्गीकरण ध्वनि-स्थान (place of articulation) और घोषत्व (voicing) के आधार पर किया गया है। प्रत्येक वर्ग – क, च, ट, त, प – एक निश्चित उच्चारण स्थान को दर्शाता है, और हर वर्ग में प्रथम दो व्यंजन अघोष तथा शेष तीन घोष होते हैं। उदाहरणतः च, छ अघोष हैं, जबकि ज, झ, ञ घोष स्वर वाले व्यंजन हैं।

साथ ही, यह लिपि प्राणत्व के आधार पर भी व्यंजनों का वर्गीकरण प्रस्तुत करती है – प्रथम, तृतीय और पंचम व्यंजन अल्पप्राण होते हैं जबकि द्वितीय एवं चतुर्थ महाप्राण होते हैं। ऐसी व्यवस्था अन्य लिपियों में दृष्टिगोचर नहीं होती।

देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ

  1. ध्वन्यात्मक नामकरण
    देवनागरी लिपि में अक्षरों के नाम उसी ध्वनि के आधार पर रखे गए हैं जिन्हें वे व्यक्त करते हैं, जैसे – अ, आ, क, ख आदि। इसके विपरीत, रोमन लिपि वर्णात्मक है, जिसमें अक्षरों के नाम और उनके द्वारा दर्शाई जाने वाली ध्वनि में स्पष्ट साम्यता नहीं पाई जाती।

  2. लिपि चिह्नों की पर्याप्तता
    देवनागरी लिपि में वर्णों की संख्या और ध्वनियों की अभिव्यक्ति की क्षमता अन्य लिपियों की तुलना में अधिक है। जहाँ अंग्रेजी में लगभग 40 ध्वनियों को केवल 26 अक्षरों से व्यक्त किया जाता है, वहीं देवनागरी में प्रत्येक ध्वनि के लिए विशिष्ट प्रतीक चिह्न उपलब्ध हैं। उर्दू में कई ध्वनियों जैसे- ठ, ढ, थ, ध, फ, भ आदि को दर्शाने के लिए कोई स्वतंत्र चिह्न नहीं है, जो उसकी सीमा को दर्शाता है।

  3. स्वरों की स्वतंत्रता
    देवनागरी में ह्रस्व और दीर्घ स्वरों के लिए अलग-अलग प्रतीक चिह्न निर्धारित हैं, जबकि रोमन लिपि में 'a' एक ही समय में 'अ' और 'आ' की ध्वनि को भी दर्शा सकता है, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।

  4. आक्षरिकता (Syllabic Nature)
    देवनागरी लिपि में प्रत्येक व्यंजन के साथ अंतर्निहित स्वर 'अ' जुड़ा होता है, जैसे – 'च्' + 'अ' = 'च'। इसे तोड़कर देखा जाए तो यह लिपि अक्षरों के संयोग पर आधारित है। यह विशेषता जहाँ एक ओर इसे कम स्थान में अधिक अभिव्यक्ति वाली बनाती है, वहीं दूसरी ओर इस 'अवगुण' के चलते कुछ शब्दों की स्पष्टता बाधित हो सकती है।

  5. सुपाठ्यता और लेखन में स्पष्टता
    देवनागरी लिपि अपनी संरचना के कारण सुपाठ्य और सुलेखनीय है। उर्दू जैसे लिपियों में एक ही शब्द को कई तरीकों से पढ़ने की संभावना रहती है – जैसे ‘जूता’ को ‘जोता’ या ‘जौता’ पढ़ने की त्रुटि होती है, जो देवनागरी में प्रायः नहीं होती।

देवनागरी लिपि की सीमाएँ

हालाँकि देवनागरी लिपि अनेक गुणों से सम्पन्न है, फिर भी इसमें कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ देखी जाती हैं:

  • लिपि के चारों ओर मात्राएँ लगाना तथा उसके पश्चात शिरोरेखा खींचना लेखन को अपेक्षाकृत धीमा बना देता है, जो रोमन या उर्दू में नहीं होता।

  • ‘र’ के विविध रूपों (रात, प्रकार, राष्ट्र, कर्म) के कारण लेखन और पठन में सावधानी की आवश्यकता रहती है।

  • आधुनिक लेखन में कुछ अक्षरों की बनावट में असंगति देखी जा सकती है, जैसे – ‘रवाना’ की पारंपरिक बनावट अब 'खाना' की भांति हो गई है, जिससे स्पष्टता प्रभावित हो सकती है।

  • शिरोरेखा के प्रति असावधानी से शब्द का अर्थ ही बदल सकता है, जैसे – ‘भर’ की शिरोरेखा ठीक से न लगे तो ‘मर’ पढ़ा जा सकता है।

निष्कर्ष

देवनागरी लिपि अपनी वैज्ञानिक रचना, ध्वन्यात्मकता, पर्याप्तता और सुव्यवस्थित संरचना के कारण रोमन एवं उर्दू लिपियों की तुलना में कहीं अधिक सक्षम, समृद्ध और शुद्ध रूप से अभिव्यक्तिपूर्ण लिपि है। हालांकि इसमें कुछ व्यावहारिक सुधारों की आवश्यकता बनी रहती है, विशेष रूप से लेखन शैली और वर्णरचना की एकरूपता के क्षेत्र में, फिर भी इसे विश्व की सबसे वैज्ञानिक लिपियों में स्थान देना पूर्णतः उचित है।

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