आधुनिक हिन्दी के तीन प्रमुख मानक
व्याकरण हैं:-
1- कामता प्रसाद गुरू कृत हिन्दी
व्याकरण
2- किशारी दास वाजपेयी कृत हिन्दी
शब्दानुशासन
3- जाल्मन दीमशित्स कृत हिन्दी व्याकरण
किसी भी भाषा के व्याकरण में मुख्य
रूप से “शब्द विचार” और “वाक्य विचार” पर विचार किया
जाता है।
हिन्दी शब्दों के दो रूप होते हैं-
विकारी और अविकारी ।
किसी बोले गए शब्द को लिखित अक्षरों
के रूप में दृष्टिगोचर बनाने की प्रक्रिया को वर्तनी कहते हैं।
वर्तनी की सार्थकता इस बात में है कि
लिखित शब्द को पढ़कर कोई भी व्यक्ति उसका सही उच्चारण करने में समर्थ हो।
देवनागरी अक्षर लिपि है जबकि रोमन
वार्णिक लिपि है।
देवनागरी का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात
के राजा जयभट्ट (7-8वीं शती में)
के एक शिलालेख में हुआ है।
देवनागरी लिपि में एक वर्ण से एक ही
ध्वनि का संकेत होता है और एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण होता है।
देवनागरी लिपि में प्रत्येक अक्षर का
उच्चारण होता है। किसी भी शब्द में कोई भी अक्षर मूक नही होता है।
देवनागरी लिपि में वर्णो के नाम
उच्चारण के अनुरूप हैं।
देवनागरी लिपि में वर्णमाला का क्रम
वैज्ञानिक है।
बाल गंगाधर तिलक के “केसरी” में खड़ी बोली
के जिन टाइपों को इस्तेमाल होता था, उसे “तिलक फ़ांट” कहा जाता था।
1935 में नागरी लिपि सुधार समिति के
संयोजक काका साहब कालेलकर थे ।
शिक्षा मंत्रलय द्वारा पहली बार 1966 में “मानक देवनागरी वर्णमाला” प्रकाशित की गई ।
1983 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय
द्वारा “देवनागरी लिपि
तथा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण” प्रकाशित किया गया ।
जहां पंचमाक्षर (ङ् ञ् ण् न् म्) का
संयोग अपने वर्ग के पहले चार व्यंजनों के साथ होता है वहां अनुस्वार का प्रयोग
होना चाहिए, जैसे- गंगा, चंचल, ठंडा |
जहां पंचमाक्षर (ङ् ञ् ण् न् म्) का
संयोग अपने वर्ग के पहले चार व्यंजनों से भिन्न व्यंजनों के साथ होता है वहां
पंचमाक्षर का ही प्रयोग होगा, अनुस्वार का नही होगा, जैसे- अन्य, वाङमय, उन्मत ।
अनुस्वार(बिन्दी) व्यंजन का गुण है
जबकि अनुनासिक(चंद्रविन्दु) स्वर का गुण है।
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