गृह मंत्री अमित
शाह ने राज्यसभा में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी से संबंधित एक प्रश्न
जवाब देते हुए को कहा कि देश की इंच -इंच जमीन पर जितने भी घुसपैठिए रह रहे हैं, उनकी पहचान कर कानून
के तहत देश से निर्वासित किया जाएगा। शाह ने एनआरसी को असम समझौते, जिसके तहत 24
मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक
माना जाएगा, का हिस्सा बताते हुए कहा कि यह भाजपा के घोषणापत्र का भी हिस्सा है। इस
तरह शाह ने एनआरसी को असम से बाहर पूरे देश में लागू करने का एक तरह से संकेत कर
दिया | दरअसल घुसपैठियों को देश से निर्वासित करने का काम बहुत पहले हो जाना चाहिए
था। लेकिन इस देश के अनेक सत्ता और वोट लोलुप नेताओं व दलों और उनके टुकड़ों पर
पोषित बुद्धिजीवियों ने ऐसा होने नहीं दिया। नेताओं और दलों ने जहाँ घुसपैठियों को
खुली सीमा के जरिए प्रवेश दिलवा कर उन्हें यहां जहां-तहां बसाया और उनके वोटर
कार्ड बनवाए, वहीँ सुविधाभोगी और अर्थलोलुप बुद्धिजीवियों और मीडिया ने छद्म
धर्मनिरपेक्षता और कथित मानवता के नाम पर अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं
करने का माहौल बनाया | इनकी एक दलील यह भी हुआ करती थी कि घुसपैठियों के खिलाफ
कार्रवाई करने या उन्हें सीमा पर ही रोक देने से पूरी दुनिया में भारत की छवि खराब
हो जाएगी। ये घुसपैठिये एक
धर्म विशेष के हैं। इसीकारण तुष्टिकरण के वशीभूत कुछ नेता और उनके दल सरकार के एनआरसी को पूरे देश में लागू करने के इस फैसले के
विरोध में संसद से लेकर सड़क तक बयानबाजी कर रहे हैं | दुनिया के किसी अन्य देश में
यह शायद ही ऐसा संभव हो कि वोट के लिए एक धर्म विशेष के करोड़ों घुसपैठियों, जो
देश की सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक ढांचे के लिए खतरा बन रहे हों, को अपने देश
में वहां के सत्ताधारी राजनीतिक दल ही बसने दे, जबकि इस देश के कश्मीरी पंडित अपने ही गृह राज्य से बाहर रहने को मजबूर कर
दिये गये है | घुसपैठियों के समर्थन को लेकर संवैधानिक पद पर बैठे कुछ नेताओं का रवैया
भी बेहद आपत्तिजनक है, वो इस
मुद्दे पर गृहयुद्ध होने की धमकी दे रही है । ये नेता देश हित और संवैधानिक पद की
गरिमा को नजन्दाज कर इस मुद्दे को हिन्दू-मुस्लिम रूप देकर अपनी छवि को मुस्लिमों के
कथित मसीहा के रूप में पेश करते हैं जबकि यह मुद्दा हिन्दू-मुस्लिम का नहीं है |
इसका परिणाम यह
हुआ है कि असम, पश्चिम बंगाल व पूर्वोत्तर के राज्यों में घुसे
बांग्लादेशी देश के सामने बड़ी समस्या बन गए हैं। 2016 में केंद्र सरकार द्वारा दी
जानकारी के अनुसार उस वक्त देश में दो करोड़ से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह
रहे थे| कुछ ही महीने पहले मिजोरम सरकार ने स्वीकार किया है कि बांग्लादेश से आए
घुसपैठियों ने मिजोरम के दक्षिणी इलाके में स्थित लुंगलेई जिले में 16 गांव बसा लिए हैं। इन गांवों में बांग्लादेशी
घुसपैठियों के साथ म्यांमार से आए रोहिंग्या भी रह रहे हैं। सबसे बड़ी विडंबना तो
अब यह है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसा पीआईएल स्वीकार किया है जिसमें
कहा गया है कि भारत में अवैध रूप से घुसे रोहिंग्याओं को निर्वासित नहीं किया जाय
और उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया जाय | जाहिर है इसके पीछे कथित लिबरल और छद्म
बुद्धिजीवी व मीडियाकर्मी गिरोह है जो देश की सुरक्षा, शांति और अखंडता को दांव पर
लगाकर धर्म और मानवता की आड़ में अवैध घुसपैठियों का हमदर्द बन बैठा है | यह देश के
लिए दुर्भाग्य है |
एनआरसी पर सारी
कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में हो रही है | गनीमत है कि
मौजूदा सरकार प्राथमिकता देते हुए इसे लागू करने की पहल कर रही है अन्यथा पूर्व
प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी के काँग्रेस शासन में ही इसकी शुरूआत के बावजूद
अपने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के तहत उसने इसे लागू नहीं किया । असम में इन अवैध
घुसपैठियों के खिलाफ 1979-85 के बीच छह साल लंबा आंदोलन भी चला था| अभी भी बांग्लादेश
से अवैध घुसपैठ पूर्वोत्तर में कई छात्रों, सामाजिक और राजनीतिक
संगठनों के लिए एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
लब्बोलुआब यह है
कि अब पानी सर से ऊपर बहने लगा है और विशेष रूप से म्यांमार और बांग्लादेश से बड़े
पैमाने पर आए अवैध प्रवासियों के कारण सीमावर्ती जिलों की जनसांख्यिकीय संरचना
खतरे में पड़ गई है | बंगाल और असम के कुछ हिस्से मिनी पाकिस्तान बन गए है | कुछ घुसपैठी
उस इलाके में गम्भीर गैर कानूनी गतिविधियों-गौतस्करी, देहव्यापार, नकली नोटों, नशीले
पदार्थों और अवैध हथियारों के कारोबार और देश में कट्टरता एवं सांप्रदायिक हिंसा
फैलाने में लगे हुए हैं।
सबसे बड़ी समस्या
यह है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर भारतीय गृह मंत्रालय के पास अभी तक कोई
प्रमाणित आंकड़ा नहीं है। इसके अलावा देश के कई हिस्सों में स्थापित होने के कारण इनकी
पहचान बड़ी मुश्किल है । यह किसी भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंक भारत
में नागरिकता की पहचान के जो प्रमाण होते हैं वह सभी इनके पास मौजूद हैं ।
मोदी सरकार ने
प्रवासियों के राहत एवं पुनर्वास बजट में कटौती कर यह संकेत दिया है कि अब
घुसपैठियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यही नहीं इस राशि में कटौती से यह संकेत
भी मिलता है कि मोदी सरकार की पूरे देश में एनआरसी को लागू करने की मंशा है। हाल
ही में सरकार ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के माध्यम से असम के अलावा पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और पूर्वोत्तर के कुछ अन्य हिस्सों में चरणबद्ध रूप से एनआरसी लागू
करने की प्रतिबद्धता जतायी है | एनआरसी की सबसे बड़ी सफलता यह है कि बांग्लादेश से
अवैध प्रवेश 90 फीसद तक रुक गया है। उम्मीद की जानी चाहिए देश हित में सभी दल और
उनके नेता वोट बैंक की क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठकर मोदी सरकार की इस पहल में
सहयोग करेंगे और सरकार जल्द से जल्द घुसपैठ के बढ़ते नासूर को समाप्त करने के शुभ
कार्य में सफल होगी | अगर मौजूदा सरकार घुसपैठियों को निर्वासित करने का काम नहीं
करती है, यह आगे की सरकारों के लिए यह नासूर कैंसर बन जायेगा और शायद ही कोई सरकार
यह बीड़ा उठाने की कोशिश करेंगी |