Wednesday 1 August 2012

पानी : सहज सुलभ प्राकृतिक संसाधन से दुर्लभ कमोडिटी की ओर


जल : सहज सुलभ प्राकृतिक संसाधन से दुर्लभ कमोडिटी की ओर

जल जीवन के लिए केवल अनिवार्यता ही नहीं है बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर गतिमान रखने के लिए प्रमुख सहायक भी है । यह महज संयोग नहीं है कि विश्व की बड़ी और प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदी घाटियों के आस-पास ही हु था हम सभी को पीने, नहाने, खाना बनाने और अन्य कामों के लिए पानी की जरूरत होती है । लेकिन जलवायु और मौसम के बदलते पैटर्न के कारण जल का प्राकृतिक पैटर्न भी बदल रहा है । इसके साथ ही बढ़ते जल प्रदूषण के कारण जल एक दुर्लभ कमोडिटी में तब्दील हो रहा है । 2010 में विश्व स्तर पर पानी से लगभग 500 करोड़ डॉलर से अधिक का कारोबार हुआ है ।

पानी की मांग का मुख्य कारक : जनसंख्या का विस्फोट

निःसन्देह पानी का मार्केट काफी लोकप्रिय है । संयुक्त राज्य का अनुमान है कि 2050 तक विश्व की आबादी वर्तमान के 7 अरब से बढ़कर 10 अरब हो जाएगी । ऐसी स्थिति में थोड़ी देर के लिए कल्पना कीजिए । आप सप्ताह में कितना लीटर पानी पीते हैं ? नहाने के लिए कितना पानी इस्तेमाल करते हैं ? खाना बनाने, शौचालय में फ्लस करने के लिए, कार की सफाई करने के लिए आप कितना पानी बहाते हो ? अब आप स्वयं से पूछिए कि अगले 38 वर्षों में जब विश्व की आबादी 3 अरब और बढ़ जाएगी तब क्या होगा ? कल्पना कीजिए कि ये सभी पीने, नहाने, खाना बनाने और अन्य कामों के लिए पानी की मांग कर रहे हैं । ऐसी स्थिति में सीमित उपलब्धता के कारण पानी की कीमत सोने की कीमत से प्रतिस्पर्धा करे तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए । संयुक्त राज्य का अनुमान है कि 2050 तक विश्व की लगभग 1 अरब आबादी स्वच्छ पेय जल से वंचित रहेगी ।
  
2011 तक 12 वर्षों के काफी कम समय में विश्व की आबादी 1 अरब बढ़ी है । चीन की आबादी इस समय 1.3 अरब है जबकि भारत की आबादी लगभग 1.2 अरब है। इतनी बड़ी आबादी के लिए पानी की मांग को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है । चीन बढ़ती जनसंख्या को बसाने के लिए पहले ही लगभग 500 नए नगर स्थापित करने की योजना बना रहा है। कल्पना कीजिए कि प्रत्येक 500 नए नगरों में 100000 या अधिक लोग रहते हैं । सभी के लिए पानी की कितनी जरूरत होगी ?

आज एक अमेरिकी प्रतिदिन 150 गैलन पानी का इस्तेमाल करते हैं जबकि चीन में 23  गैलन पानी का इस्तेमाल होता है। लेकिन उनके यहाँ भी तेजी से पानी का इस्तेमाल बढ़ रहा है । कुछ दशक पहले चीन विकासशील देश था । लेकिन बदलाव काफी तेजी से हो रहा है । चीन की विकास दर मौजूदा धीमेपन के बावजूद अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है । भारत का अनुमान है कि अगले एक दशक में पानी की मांग मौजूदा स्तर से दो गुनी हो जाएगी । जबकि बढ़ती आबादी के कारण 2030 तक कृषि कार्यों के लिए पानी की मांग में 42 फीसदी की बढ़ोतरी होगी । इसलिए पानी के मार्केट में पानी की सप्लाई की तुलना में माँग सुरसा राक्षसी के मुख की तरह विकराल और काफी भयावह है लेकिन निवेश करने वालों के लिए एक बेहतरीन अवसर है जो सुनिश्चित करेगा कि पानी की सप्लाई को कैसे बरकरार रखा जाय ।

फॉर्चून का कहना है किआप शायद यह सोच रहे है कि लोग अधिक पानी का इस्तेमाल करेंगे । लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है । विश्व जल परिषद के अनुसार विश्व में इस्तेमाल होने वाले कुल 86 प्रतिशत जल का 70 प्रतिशत कृषि में और 16 प्रतिशत उद्योगों में और केवल 10 फीसदी ही घरेलू कार्यों में इस्तेमाल होता है । इसलिए यह सोचना कि आबादी बढ़ने से पानी के घरेलू खपत में वृद्धि होगी, गलत है । वास्तव में इतनी बड़ी आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध करने और औद्योगिक वस्तुओं की मांग को पूरा करने के लिए कृषि और औद्योगिक उत्पादन के लिए पानी की मांग में वृद्धि होगी । केवल पीने के लिए पानी की मांग में वृद्धि की बात होती तो यह बहुत बड़ी समस्या नहीं होती । बोतल का पानी पीने वाले लोग ही विश्व में पानी का सबसे अधिक उपभोग नहीं करते हैं । यह तो हमारी लाइफ़स्टाइल और पानी खर्च करने की आदतों का नतीजा है जो जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव को बढ़ा दे रही है ।

हम जो कुछ भी खाते हैं, पहनते हैं और इस्तेमाल करते हैं, उसमें काफी अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। उस स्थिति पर विचार कीजिए जब विकासशील देशों के लोग भी पश्चिम के देशों की लाइफ़स्टाइल की तरह रहना शुरू कर देते हैं तब पानी की सप्लाई पर क्या असर पड़ेगा । एक अध्ययन के अनुसार अधिकांशतः कपास के बने एक डिज़ाइनर जींस के निर्माण में 2906 गैलन पानी की आवश्यकता होती है ।क कप कॉफी के उत्पादन के लिए 71 गैलन पानी की आवश्यकता होती है । एक पौंड गेहूं के लिए 160 गैलन पानी की आवश्यकता होती है। एक पौंड चावल में 407 गैलन पानी की आवश्यकता होती है। एक पौंड स्टील में 31 गैलन पानी की आवश्यकता होती है तो कार के लिए 104000 गैलन पानी की आवश्यकता होती है।

वर्तमान समय में आर्थिक मुनाफे के कारण कृषि क्षेत्र की तुलना में उद्योगों में पानी की प्राथमिकता और आवश्यकता बढ़ती जा रही है । 1 टन गेंहू के उत्पादन के लिए 1000 टन पानी की आवश्यकता होती है, जिसकी कीमत लगभग 12500 रू होगी । जबकि उद्योगों में 1000 टन पानी से 700000 रू के वस्तुओं का उत्पादन संभव होगा । उद्योगों में पानी के इस्तेमाल से अधिक आर्थिक लाभ के कारण जहाँ उद्योगों में पानी के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई है वहीं उद्योगों में इस्तेमाल के बाद निकले पानी से प्रदूषण भी काफी खतरनाक रूप धारण कर चुका है । संयुक्त राज्य पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार “विकासशील देशों में बड़े नगरों से गुजरने वाली नदियाँ सीवरों के तुलना में थोड़ी ही साफ रह गई हैं।” अमेरिका में 40 फीसदी नदियाँ और झील इतनी प्रदूषित हैं कि उनमें सामान्य क्रियाकलाप संभव नहीं है । चीन में 80 फीसदी नदियाँ इतनी प्रदूषित हैं कि उनमें मछलियों का जीवित रहना संभव नहीं है । जापान में 30 भूमिगत जल औद्योगिक प्रदूषणों से विषाक्त हो गया है ।

फॉर्चून के अनुसार 2010 में पानी का विश्व बाजार 508 बिलियन डॉलर का था जिसमें से बोतल वाले पानी का बाजार 58 बिलियन डॉलर का था और यह काफी तेजी से बढ़ रहा है । उद्योगों को जल उपकरणों और अन्य सेवाओं के लिए 28 बिलियन डॉलर की आवश्यकता होती है । कृषि कार्यों के लिए पानी का कारोबार 10 बिलियन डॉलर का है । 15 बिलियन डॉलर की आवश्यकता फिल्टर और अनेक तरह के गर्म एवं ठंडा करने वाले उपकरणों के लिए होती है और 170 बिलियन डॉलर का इस्तेमाल गंदे पानी, सीवेज़ व्यवस्था, गंदे पानी के शुद्धिकरण और पानी की रिसायक्लिंग के लिए किया जाता है । 226 बिलियन डॉलर शुद्धिकरप्लांटों और वितरण व्यवस्था पर खर्च होता है। संक्षेप में कहा जाय तो नया सोना अर्थात पानी को शुद्ध करना महँगा है और लागत में बढ़ोतरी होती जाएगी । जनसंख्या में वृद्धि के साथ भूमिगत जल स्तर के घटते जाने से विश्व स्तर पर स्वच्छ पानी की उपलब्धता को लेकर बढ़े हुए खतरे के कारण पानी के कारोबार में इजाफा होने की उम्मीद है ।

निःसन्देह पानी 21 सदी का नया सोना है और पानी की लगातार कम होती उपलब्धता इस बात की गारंटी है कि पहले से ही सीमित इस कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि होगी । सबसे अहम है कि विश्व के किसी भी देश के पास सूरसा के मुँह की तरह इस विकराल समस्या को लेकर कोई लंबी अवधि की योजना नहीं है । समस्या की जड़ हमारी आर्थिक विकास की आत्मघाती प्रक्रिया में है जिसके कारण इस धरती के वासियों के इस्तेमाल के लिए जल स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं । विश्व में पानी के उत्पादों का कारोबार करने वाली सबसे बड़ी कंपनी पेप्सी ने स्वीकार किया है कि पानी की कम होती उपलब्धता अनेक क्षेत्रों में कारोबार के समक्ष जोखिम बढ़ता जा रहा है । मॉर्गन स्टैनले ने नवंबर 2011 की रिपोर्ट में कहा है कि पानी 21 वी सदी की सबसे बड़ी कमोडिटी हो सकती है क्योंकि घटती सप्लाई और बढ़ती मांग के कारण एक अच्छा व्यवसाय ही नहीं है बल्कि इसका प्रबंधन एवं समुचित उपयोग करने वाली कंपनियां पानी की कमी की स्थिति में भी अपनी उत्पादन गतिविधियों का जारी रखते हुए अन्य कंपनियों के मुक़ाबले लाभ की स्थिति में रह सकती हैं ।

जैसे-जैसे अभाव बढ़ता जा रहा है और पानी की कमी होती जा रही है, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पानी के विभिन्न उपभोक्ताओं के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है । लगभग 260 नदी बेसिने दो या दो से अधिक देशों से होकर गुजरती है लेकिन किसी मजबूत संस्था या ठोस समझौते के अभाव में बेसिनों में बदलाव को लेकर कभी-कभी देशों के तनाव उभर आता है । जब वगैर किसी क्षेत्रीय समझौते या सहयोग के कोई प्रोजेक्ट शुरू किया जाता है तो तनाव और संघर्ष का कारण बन जाता है और क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है । अरब और इज़रायल के बीच पानी हमेशा से ही विवाद का मुद्दा रहा है । इज़रायली नेता एरियल शेरोन ने एकबार कहा था कि 1964 में सीरिया द्वारा जॉर्डन नदी की दिशा को बदलने पर इज़रायल द्वारा रोक दिए जाने के कारण ही छह दिनों तक युद्ध हुआ था । इसप्रकार विश्व जल संकट में अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों को भंग करने की क्षमता है लेकिन यदि सकारात्मक स्तर पर इस संकट के समाधान के लिए काम किया जाय तो विश्व समुदाय को आपस में सहयोग करने पर भी बाध्य करने की क्षमता है ।

आगामी दिनों में विश्व स्तर पर पानी की कमी को दूर करने के उपाय :
अच्छी बात यह है कि विश्व स्तर पर पानी के संकट के समाधान के लिए दीर्घावधि के उपाय किए जा रहे हैं । सिंगापुर में 20 फीसदी पेय जल गंदे नालों के पानी को नवीनतम अतिसूक्ष्म फिल्टरों द्वारा शुद्ध बनाकर प्राप्त किया जाता है। चीन कृषि और औद्योगिक कार्यों के लिए नए सोनेके उत्पादन और सरंक्षण को लेकर काफी गंभीर है।  चीन देश के दक्षिणी भाग की नदियों से सूखे उत्तर-पूर्व की ओर पानी ले जाने के लिए 1816 मील लम्बी नहर का निर्माण कर रहा है। इसके साथ ही वेओलिया, स्वेज़ और आईटीटी जैसी विश्व की पानी कंपनियाँ जल प्रबंधन के लिए म्युनिसिपालिटी से साझेदारी कर रही हैं। कई सरकारें और उद्योग भी निकट भविष्य में पानी के संकट पर विजय पाने के लिए भी सहयोग कर रहें हैं । अमेरिका में 700 मिलियन डॉलर का एक विलवणीकरण (desalination) प्रोजेक्ट प्रगति पर है जिससे 2014 तक सान डियागो काउन्टी के लिए 8 फीसदी पेय जल की सप्लाई की जाएगी, जबकि इस काउन्टी की आबादी पिछले शक में लगभग 17 फीसदी की दर से बढ़ी है। 

पिछले एक दशक मे अमेरिकी मोटर कं फोर्ड मोटर्स ने जीवन-शक्ति पानी के इस्तेमाल को कम करने के लिए वर्ष के प्रत्येक दिन को जल दिवस घोषित कर दिया है । आज कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें प्रतिदिन प्रमुख खबरों में रहती है क्योंकि इस वेशकीमती संसाधन का भंडार दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है । लेकिन फोर्ड एवं अन्य कंपनियाँ दशकों से निःशुल्क उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन पानी के मूल्य और प्रभाव का मूल्यांकन कर रही है क्योंकि कच्चे तेल के साथ ही पानी की समुचित सप्लाई का अभाव भी उनके व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है ।

टेक्नोलॉजी स्ट्रेटेजिक ग्रुप के प्रबंध निदेशक स्टीवन मैक्सवेल ने अपनी पुस्तक द फ्यूचर आफ वाटर में लिखा है कि आमतौर पर लोगों की यह धारणा है कि पानी मुफ्त में उपलब्ध है । लेकिन आगामी दशकों में इस धारणा में बदलाव आना अवश्यंभावी है क्योंकि इस सीमित संसाधन का अभाव एक ऐसी समस्या बन जाएगी कि आर्थिक और वित्तीय फैसलों के साथ ही लोगों के व्यक्तिगत फैसले भी इससे निर्धारित होंगे । इसलिए विश्व बाजार और अर्थव्यवस्था में पानी की निर्णायक भूमिका को ध्यान में रखते हुए फोर्ड, कोका कोला, आईबीएम और इंटेल जैसी कुछ कंपनियों ने पानी के सरंक्षण या प्रबंधन को अपनी कंपनी की प्रोफ़ाइल में शामिल कर लिया है । आईबीएम ने अपने बरलिंगटन स्थित सेमीकंडक्टर फैक्ट्री में पानी के इस्तेमाल में 29 फीसदी की कटौती की है।

2009 में मिशिगन झील के तट पर बसे मिल्वौकी नगर में बढ़ते जल व्यवसाय के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक मिल्वौकी जल परिषद का गठन किया गया है । यह नगर अब अपने को जल हब एवं जल कारोबार के ब्रांड के रूप विकसित भी कर रहा है । इसके पीछे धारणा यह है कि पानी का कारोबार अधिक निवेश के साथ ही रोजगार के नए  की समुचित सप्लाई सुनिश्चित करने वाले नगर ही कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित कर सकते हैं और रोजगार के नए अवसरों के प्रमुख केंद्र बन सकते हैं ।