Wednesday 7 August 2019

भारतीय राजनीति की सुषमा चली गई


जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक दर्जे में बदलाव को लेकर देश भर में ख़ुशी और उत्साह की लहर पूरे उफान पर थी तभी भारतीय राजनीति की सबसे लोकप्रिय और महिला नेताओं के लिए रोल मॉडल सुषमा स्वराज की असामयिक निधन की दुखद खबर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया | हृदयाघात से कुछ ही घंटे पहले किए अपने अंतिम ट्विट में कश्मीर के मुद्दे पर सुषमा जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा कि 'मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने का इंतजार कर रही थी|' इससे पता चलता है कि पूरे राजनीतिक कार्यकाल के दौरान कश्मीर उनके दिल के कितना करीब रहा| अटल बिहारी वाजपेयी के इस्तीफ़े के बाद नई सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 11 जून 1996 को उन्होंने लोकसभा में कश्मीर मसले पर जो जोरदार भाषण दिया था, वह इतिहास में दर्ज है| सुषमा स्वराज ने अपने इस भाषण में धारा 370 की समाप्ति को लेकर बीजेपी के उस बड़े फैसले की नींव रखी थी, जिसे मौजूदा सरकार ने पूरा कर उनके सपने को उनकी आंखों के सामने ही पूरा किया |
मात्र 25 साल की उम्र में चौधरी देवीलाल के हरियाणा सरकार में मंत्री बनने से लेकर भारत की विदेश मंत्री बनने तक असीम गरिमा और शालीनता की प्रतिमूर्ति सुषमा स्वराज सच्चे अर्थों में भारतीय परंपरा और आधुनिकता की मिसाल थीं। सुषमा के व्यक्तित्व की खास पहचान थी अनुशासन और पाबंदी के साथ विलक्षण भाषण-शैली और अद्भुत ज्ञान, जिसके कारण वह संसद से लेकर सड़क तक बेहद लोकप्रिय थी | ट्विटर और सोशल मीडिया जैसे तकनीकी माध्यमों में दक्ष सुषमा स्वराज ने आजीवन परंपराओं का भी निर्वाह किया। साड़ी के साथ मंगलसूत्र, सिंदूर और गोल बिंदी उनकी पहचान थी। अपने राजनीतिक सफ़र में सात बार संसद सदस्य और तीन बार विधान सभा सदस्य रही| अटल सरकार में स्वराज ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में दूरसंचार, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और संसदीय मामलों के विभागों की मंत्री रही जबकि 2014 में मोदी सरकार में विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने भारत-पाक और चीन-भारत संबंधों सहित कई रणनीतिक-संवेदनशील मुद्दों को संभाला। भारतीय और चीनी पक्षों के बीच सबसे चुनौती पूर्ण डोकलाम गतिरोध को सुलझाने में एक सख्त सेनानी की तरह अडिग रही |
उनकी तथ्यों और तर्कों के साथ वाक्पटुता और हाजिरजवाबी का ही कमाल रहा है कि उनके जीते जी सोशल मीडिया पर उनके ऐतिहासिक भाषणों और साक्षात्कारों का विडियो माननीय अटल जी के बाद सर्वाधिक शेयर किया जाता रहा है और आज जब वे नहीं तो भी उनके ऐतिहासिक भाषणों और साक्षात्कारों का विडियो शेयर कर भी लोग उन्हें याद कर रहे हैं| इन्हीं में से एक विडियो करगिल युद्ध के बाद का है, जिसमें सुषमा स्वराज पाक की धरती पर ही वहां के एक न्यूज चैनल के साथ इंटरव्यू में आतंकवाद, करगिल युद्ध और सीमा पर सीजफायर उल्लंघन सहित कई मुद्दों को लेकर पाकिस्तानी हुक्मरानों और उनके रवैये को लेकर मुंहतोड़ जवाब देती दिख रही हैं। इस इंटरव्यू को सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया जा रहा है। इस वीडियो में भारत द्वारा परमाणु बम बनाने और  हथियार खरीदने के आरोप का जवाब देते हुए सुषमा स्वराज सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता के माध्यम से भारत की विदेश नीति को भी बड़े ही रोचक और सरल अंदाज में स्पष्ट कर दिया है- क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो...उसको क्या जो दंतहीन,विषरहित, विनीत, सरल हो। इसका मतलब यह है कि अगर आप शक्तिशाली हैं तभी लोग आपका सम्मान करेंगे। इसलिए हम परमाणु बम भी बनाते हैं लेकिन शांति को लेकर हमारी निष्ठा पर कोई सवाल भी नहीं उठा सकता है।
11 जून 1996 को लोकसभा में सांप्रदायिकता के आरोपों का जवाब देते हुए सुषमा स्वराज ने धर्मनिरपेक्षता की छद्मता को पोलपट्टी खोल कर रख दी थी| उन्होंने कहा था, 'हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम आर्टिकल 370 को खत्म करना चाहते हैं| हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम देश में जाति-पंथ के आधार पर भेदभाव को खत्म करना चाहते हैं | हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम कश्मीर रिफ्यूज़ी के आवाज़ को सुनना चाहते हैं| हम गोरक्षा की बात करते हैं इसलिए सांप्रदायिक हैं। इस देश में समान नागरिक संहिता की बात करते हैं इसलिए सांप्रदायिक हैं। लेकिन ये लोग जो इस सरकार पर आरोप लगा रहे हैं वो लोग दिल्ली की गलियों और सड़कों पर तीन हजार से ज्यादा सिखों के कत्लेआम के लिए जिम्मेदार हैं और वो धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते हैं| अपनी मधुर लेकिन ओजस्विता पूर्ण आवाज में जब बोलतीं तो संसद भवन हो या संयुक्त राष्ट्र, हर जगह अपने शब्द एवं विचार प्रवाह में सुननेवालों को अपने साथ बहा ले जाती | कई मुद्दों पर वह आक्रामक जरूर होती थीं, उनके द्वारा शब्दों के चयन इतना मर्यादापूर्ण होता था कि जहाँ कचोट लगनी होती है वहाँ लग जाती थी और कडुवाहट भी नहीं होती थी | राष्ट्रवाद की प्रखर प्रवक्ता सुषमा जी ने 23 सितम्बर 2017 को संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक मंच से बोलते हुए पाकिस्तान की असलियत और दोमुंहेपन को जब विश्व के सामने उजागर किया तो उस समय संयुक्त राष्ट्र की सभा में उपस्थित अनेक देशों के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर करतल ध्वनि के साथ सुषमा स्वराज के उस भाषण का स्वागत किया था।
इंदिरा गांधी के बाद विदेश मंत्रालय संभालने वाली केवल दूसरी महिला सुषमा स्वराज ने दुनिया के किसी भी कोने में संकट में फंसे भारतीयों की मदद के लिए व्यक्तिगत मुहिम छेड़ दिया- खाड़ी युद्ध की विभीषका रही हो या नेपाल में भूकम्प की प्रलयंकारी विनाशलीला हो, बांग्लादेश के शेल्टर होम से बच्चे सोनू को वापस लाना हो या यमन में फंसे भारतीयों की सुरक्षित घर वापसी, पाकिस्तान से लायी गई  मूक-बधिर गीता के परिवार की तलाश हो, हामिद निहाल अंसारी की पाकिस्तान से सुरक्षित रिहाई या नाइजीरिया के समुद्री डाकुओं से वाराणसी के संतोष छुड़ाकर सुषमा ने भारतीय परिवारों के जीवन में पैठ बनायी और केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सीमित रहने वाले विदेश मंत्रालय को उन्होंने आम आदमी के सरोकारों के बेहद करीब ला दिया |
पार्टी से लेकर सरकार तक जब भी कोई मुश्किल दौर आता था, संकटों के सामने एक दीवार की तरह अडिग रहने वाली स्वराज को ही याद किया जाता रहा है | 1999 के लोकसभा चुनावों में बेल्लारी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने की चुनौती रही है, दिल्ली में भाजपा सरकार की गिरती लोकप्रियता हो या डोकलाम गतिरोध हो या दुनिया के किसी भी कोने में संकट में फंसे भारतीयों को उबारने का मुद्दा रहा है, सुषमा जी संकटमोचक के रूप में चुनौती स्वीकार करती रही है |