Thursday 13 September 2012

सरकारी फिजूलखर्ची भी है राजकोषीय घाटे के किए जिम्मेदार


वित्त मंत्री पी चिदम्बरम और भारतीय प्रधानमंत्री और उनके आर्थिक सलाहकार बढ़ती महंगाई के लिए जिस तरह से आधारहीन तर्क दे रहे है और झूठ पर झूठ बोले जा रहे है उससे यही लगता है कि उन्हे आर्थिक विकास और महंगाई के संबंधों को जानते हुए भी वे मानते है कि आम आदमी को महंगाई के कारणों की समझ हो ही नहीं सकती है । बढ़ती महंगाई के दौरान आर्थिक सुधार की प्रक्रिया काफी जटिल और मुश्किल हो जाती है । पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने से बढ़ती महंगाई की समस्या और गहरी हो जाती है । देश के आर्थिक विशेषज्ञों के अलावा मीडिया भी आर्थिक सुधारों के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि कर सब्सिडी कम या समाप्त करने की वकालत करती है । देश के इन तथाकथित आर्थिक विशेषज्ञों और गला फाड़ कर चीख मचाने मीडिया ने कभी यह सुझाव क्यों नहीं देती कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने के बजाय या उससे पहले सरकार अपने अमले पर किए जाने वाले खर्च में कटौती करे। राजकोषीय घाटे का एक बड़ा कारण सरकारी फिजूलखर्ची है जिसे देश की अर्थव्यवस्था की चिंता करने वाली र्आर्थिक विशेषज्ञों की टीम और मीडिया ढ़क कर रखती है क्योंकि वे भी सरकारी खर्चों में साझेदार है । 

Wednesday 1 August 2012

पानी : सहज सुलभ प्राकृतिक संसाधन से दुर्लभ कमोडिटी की ओर


जल : सहज सुलभ प्राकृतिक संसाधन से दुर्लभ कमोडिटी की ओर

जल जीवन के लिए केवल अनिवार्यता ही नहीं है बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर गतिमान रखने के लिए प्रमुख सहायक भी है । यह महज संयोग नहीं है कि विश्व की बड़ी और प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदी घाटियों के आस-पास ही हु था हम सभी को पीने, नहाने, खाना बनाने और अन्य कामों के लिए पानी की जरूरत होती है । लेकिन जलवायु और मौसम के बदलते पैटर्न के कारण जल का प्राकृतिक पैटर्न भी बदल रहा है । इसके साथ ही बढ़ते जल प्रदूषण के कारण जल एक दुर्लभ कमोडिटी में तब्दील हो रहा है । 2010 में विश्व स्तर पर पानी से लगभग 500 करोड़ डॉलर से अधिक का कारोबार हुआ है ।

पानी की मांग का मुख्य कारक : जनसंख्या का विस्फोट

निःसन्देह पानी का मार्केट काफी लोकप्रिय है । संयुक्त राज्य का अनुमान है कि 2050 तक विश्व की आबादी वर्तमान के 7 अरब से बढ़कर 10 अरब हो जाएगी । ऐसी स्थिति में थोड़ी देर के लिए कल्पना कीजिए । आप सप्ताह में कितना लीटर पानी पीते हैं ? नहाने के लिए कितना पानी इस्तेमाल करते हैं ? खाना बनाने, शौचालय में फ्लस करने के लिए, कार की सफाई करने के लिए आप कितना पानी बहाते हो ? अब आप स्वयं से पूछिए कि अगले 38 वर्षों में जब विश्व की आबादी 3 अरब और बढ़ जाएगी तब क्या होगा ? कल्पना कीजिए कि ये सभी पीने, नहाने, खाना बनाने और अन्य कामों के लिए पानी की मांग कर रहे हैं । ऐसी स्थिति में सीमित उपलब्धता के कारण पानी की कीमत सोने की कीमत से प्रतिस्पर्धा करे तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए । संयुक्त राज्य का अनुमान है कि 2050 तक विश्व की लगभग 1 अरब आबादी स्वच्छ पेय जल से वंचित रहेगी ।
  
2011 तक 12 वर्षों के काफी कम समय में विश्व की आबादी 1 अरब बढ़ी है । चीन की आबादी इस समय 1.3 अरब है जबकि भारत की आबादी लगभग 1.2 अरब है। इतनी बड़ी आबादी के लिए पानी की मांग को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है । चीन बढ़ती जनसंख्या को बसाने के लिए पहले ही लगभग 500 नए नगर स्थापित करने की योजना बना रहा है। कल्पना कीजिए कि प्रत्येक 500 नए नगरों में 100000 या अधिक लोग रहते हैं । सभी के लिए पानी की कितनी जरूरत होगी ?

आज एक अमेरिकी प्रतिदिन 150 गैलन पानी का इस्तेमाल करते हैं जबकि चीन में 23  गैलन पानी का इस्तेमाल होता है। लेकिन उनके यहाँ भी तेजी से पानी का इस्तेमाल बढ़ रहा है । कुछ दशक पहले चीन विकासशील देश था । लेकिन बदलाव काफी तेजी से हो रहा है । चीन की विकास दर मौजूदा धीमेपन के बावजूद अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है । भारत का अनुमान है कि अगले एक दशक में पानी की मांग मौजूदा स्तर से दो गुनी हो जाएगी । जबकि बढ़ती आबादी के कारण 2030 तक कृषि कार्यों के लिए पानी की मांग में 42 फीसदी की बढ़ोतरी होगी । इसलिए पानी के मार्केट में पानी की सप्लाई की तुलना में माँग सुरसा राक्षसी के मुख की तरह विकराल और काफी भयावह है लेकिन निवेश करने वालों के लिए एक बेहतरीन अवसर है जो सुनिश्चित करेगा कि पानी की सप्लाई को कैसे बरकरार रखा जाय ।

फॉर्चून का कहना है किआप शायद यह सोच रहे है कि लोग अधिक पानी का इस्तेमाल करेंगे । लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है । विश्व जल परिषद के अनुसार विश्व में इस्तेमाल होने वाले कुल 86 प्रतिशत जल का 70 प्रतिशत कृषि में और 16 प्रतिशत उद्योगों में और केवल 10 फीसदी ही घरेलू कार्यों में इस्तेमाल होता है । इसलिए यह सोचना कि आबादी बढ़ने से पानी के घरेलू खपत में वृद्धि होगी, गलत है । वास्तव में इतनी बड़ी आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध करने और औद्योगिक वस्तुओं की मांग को पूरा करने के लिए कृषि और औद्योगिक उत्पादन के लिए पानी की मांग में वृद्धि होगी । केवल पीने के लिए पानी की मांग में वृद्धि की बात होती तो यह बहुत बड़ी समस्या नहीं होती । बोतल का पानी पीने वाले लोग ही विश्व में पानी का सबसे अधिक उपभोग नहीं करते हैं । यह तो हमारी लाइफ़स्टाइल और पानी खर्च करने की आदतों का नतीजा है जो जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव को बढ़ा दे रही है ।

हम जो कुछ भी खाते हैं, पहनते हैं और इस्तेमाल करते हैं, उसमें काफी अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। उस स्थिति पर विचार कीजिए जब विकासशील देशों के लोग भी पश्चिम के देशों की लाइफ़स्टाइल की तरह रहना शुरू कर देते हैं तब पानी की सप्लाई पर क्या असर पड़ेगा । एक अध्ययन के अनुसार अधिकांशतः कपास के बने एक डिज़ाइनर जींस के निर्माण में 2906 गैलन पानी की आवश्यकता होती है ।क कप कॉफी के उत्पादन के लिए 71 गैलन पानी की आवश्यकता होती है । एक पौंड गेहूं के लिए 160 गैलन पानी की आवश्यकता होती है। एक पौंड चावल में 407 गैलन पानी की आवश्यकता होती है। एक पौंड स्टील में 31 गैलन पानी की आवश्यकता होती है तो कार के लिए 104000 गैलन पानी की आवश्यकता होती है।

वर्तमान समय में आर्थिक मुनाफे के कारण कृषि क्षेत्र की तुलना में उद्योगों में पानी की प्राथमिकता और आवश्यकता बढ़ती जा रही है । 1 टन गेंहू के उत्पादन के लिए 1000 टन पानी की आवश्यकता होती है, जिसकी कीमत लगभग 12500 रू होगी । जबकि उद्योगों में 1000 टन पानी से 700000 रू के वस्तुओं का उत्पादन संभव होगा । उद्योगों में पानी के इस्तेमाल से अधिक आर्थिक लाभ के कारण जहाँ उद्योगों में पानी के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई है वहीं उद्योगों में इस्तेमाल के बाद निकले पानी से प्रदूषण भी काफी खतरनाक रूप धारण कर चुका है । संयुक्त राज्य पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार “विकासशील देशों में बड़े नगरों से गुजरने वाली नदियाँ सीवरों के तुलना में थोड़ी ही साफ रह गई हैं।” अमेरिका में 40 फीसदी नदियाँ और झील इतनी प्रदूषित हैं कि उनमें सामान्य क्रियाकलाप संभव नहीं है । चीन में 80 फीसदी नदियाँ इतनी प्रदूषित हैं कि उनमें मछलियों का जीवित रहना संभव नहीं है । जापान में 30 भूमिगत जल औद्योगिक प्रदूषणों से विषाक्त हो गया है ।

फॉर्चून के अनुसार 2010 में पानी का विश्व बाजार 508 बिलियन डॉलर का था जिसमें से बोतल वाले पानी का बाजार 58 बिलियन डॉलर का था और यह काफी तेजी से बढ़ रहा है । उद्योगों को जल उपकरणों और अन्य सेवाओं के लिए 28 बिलियन डॉलर की आवश्यकता होती है । कृषि कार्यों के लिए पानी का कारोबार 10 बिलियन डॉलर का है । 15 बिलियन डॉलर की आवश्यकता फिल्टर और अनेक तरह के गर्म एवं ठंडा करने वाले उपकरणों के लिए होती है और 170 बिलियन डॉलर का इस्तेमाल गंदे पानी, सीवेज़ व्यवस्था, गंदे पानी के शुद्धिकरण और पानी की रिसायक्लिंग के लिए किया जाता है । 226 बिलियन डॉलर शुद्धिकरप्लांटों और वितरण व्यवस्था पर खर्च होता है। संक्षेप में कहा जाय तो नया सोना अर्थात पानी को शुद्ध करना महँगा है और लागत में बढ़ोतरी होती जाएगी । जनसंख्या में वृद्धि के साथ भूमिगत जल स्तर के घटते जाने से विश्व स्तर पर स्वच्छ पानी की उपलब्धता को लेकर बढ़े हुए खतरे के कारण पानी के कारोबार में इजाफा होने की उम्मीद है ।

निःसन्देह पानी 21 सदी का नया सोना है और पानी की लगातार कम होती उपलब्धता इस बात की गारंटी है कि पहले से ही सीमित इस कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि होगी । सबसे अहम है कि विश्व के किसी भी देश के पास सूरसा के मुँह की तरह इस विकराल समस्या को लेकर कोई लंबी अवधि की योजना नहीं है । समस्या की जड़ हमारी आर्थिक विकास की आत्मघाती प्रक्रिया में है जिसके कारण इस धरती के वासियों के इस्तेमाल के लिए जल स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं । विश्व में पानी के उत्पादों का कारोबार करने वाली सबसे बड़ी कंपनी पेप्सी ने स्वीकार किया है कि पानी की कम होती उपलब्धता अनेक क्षेत्रों में कारोबार के समक्ष जोखिम बढ़ता जा रहा है । मॉर्गन स्टैनले ने नवंबर 2011 की रिपोर्ट में कहा है कि पानी 21 वी सदी की सबसे बड़ी कमोडिटी हो सकती है क्योंकि घटती सप्लाई और बढ़ती मांग के कारण एक अच्छा व्यवसाय ही नहीं है बल्कि इसका प्रबंधन एवं समुचित उपयोग करने वाली कंपनियां पानी की कमी की स्थिति में भी अपनी उत्पादन गतिविधियों का जारी रखते हुए अन्य कंपनियों के मुक़ाबले लाभ की स्थिति में रह सकती हैं ।

जैसे-जैसे अभाव बढ़ता जा रहा है और पानी की कमी होती जा रही है, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पानी के विभिन्न उपभोक्ताओं के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है । लगभग 260 नदी बेसिने दो या दो से अधिक देशों से होकर गुजरती है लेकिन किसी मजबूत संस्था या ठोस समझौते के अभाव में बेसिनों में बदलाव को लेकर कभी-कभी देशों के तनाव उभर आता है । जब वगैर किसी क्षेत्रीय समझौते या सहयोग के कोई प्रोजेक्ट शुरू किया जाता है तो तनाव और संघर्ष का कारण बन जाता है और क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है । अरब और इज़रायल के बीच पानी हमेशा से ही विवाद का मुद्दा रहा है । इज़रायली नेता एरियल शेरोन ने एकबार कहा था कि 1964 में सीरिया द्वारा जॉर्डन नदी की दिशा को बदलने पर इज़रायल द्वारा रोक दिए जाने के कारण ही छह दिनों तक युद्ध हुआ था । इसप्रकार विश्व जल संकट में अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों को भंग करने की क्षमता है लेकिन यदि सकारात्मक स्तर पर इस संकट के समाधान के लिए काम किया जाय तो विश्व समुदाय को आपस में सहयोग करने पर भी बाध्य करने की क्षमता है ।

आगामी दिनों में विश्व स्तर पर पानी की कमी को दूर करने के उपाय :
अच्छी बात यह है कि विश्व स्तर पर पानी के संकट के समाधान के लिए दीर्घावधि के उपाय किए जा रहे हैं । सिंगापुर में 20 फीसदी पेय जल गंदे नालों के पानी को नवीनतम अतिसूक्ष्म फिल्टरों द्वारा शुद्ध बनाकर प्राप्त किया जाता है। चीन कृषि और औद्योगिक कार्यों के लिए नए सोनेके उत्पादन और सरंक्षण को लेकर काफी गंभीर है।  चीन देश के दक्षिणी भाग की नदियों से सूखे उत्तर-पूर्व की ओर पानी ले जाने के लिए 1816 मील लम्बी नहर का निर्माण कर रहा है। इसके साथ ही वेओलिया, स्वेज़ और आईटीटी जैसी विश्व की पानी कंपनियाँ जल प्रबंधन के लिए म्युनिसिपालिटी से साझेदारी कर रही हैं। कई सरकारें और उद्योग भी निकट भविष्य में पानी के संकट पर विजय पाने के लिए भी सहयोग कर रहें हैं । अमेरिका में 700 मिलियन डॉलर का एक विलवणीकरण (desalination) प्रोजेक्ट प्रगति पर है जिससे 2014 तक सान डियागो काउन्टी के लिए 8 फीसदी पेय जल की सप्लाई की जाएगी, जबकि इस काउन्टी की आबादी पिछले शक में लगभग 17 फीसदी की दर से बढ़ी है। 

पिछले एक दशक मे अमेरिकी मोटर कं फोर्ड मोटर्स ने जीवन-शक्ति पानी के इस्तेमाल को कम करने के लिए वर्ष के प्रत्येक दिन को जल दिवस घोषित कर दिया है । आज कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें प्रतिदिन प्रमुख खबरों में रहती है क्योंकि इस वेशकीमती संसाधन का भंडार दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है । लेकिन फोर्ड एवं अन्य कंपनियाँ दशकों से निःशुल्क उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन पानी के मूल्य और प्रभाव का मूल्यांकन कर रही है क्योंकि कच्चे तेल के साथ ही पानी की समुचित सप्लाई का अभाव भी उनके व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है ।

टेक्नोलॉजी स्ट्रेटेजिक ग्रुप के प्रबंध निदेशक स्टीवन मैक्सवेल ने अपनी पुस्तक द फ्यूचर आफ वाटर में लिखा है कि आमतौर पर लोगों की यह धारणा है कि पानी मुफ्त में उपलब्ध है । लेकिन आगामी दशकों में इस धारणा में बदलाव आना अवश्यंभावी है क्योंकि इस सीमित संसाधन का अभाव एक ऐसी समस्या बन जाएगी कि आर्थिक और वित्तीय फैसलों के साथ ही लोगों के व्यक्तिगत फैसले भी इससे निर्धारित होंगे । इसलिए विश्व बाजार और अर्थव्यवस्था में पानी की निर्णायक भूमिका को ध्यान में रखते हुए फोर्ड, कोका कोला, आईबीएम और इंटेल जैसी कुछ कंपनियों ने पानी के सरंक्षण या प्रबंधन को अपनी कंपनी की प्रोफ़ाइल में शामिल कर लिया है । आईबीएम ने अपने बरलिंगटन स्थित सेमीकंडक्टर फैक्ट्री में पानी के इस्तेमाल में 29 फीसदी की कटौती की है।

2009 में मिशिगन झील के तट पर बसे मिल्वौकी नगर में बढ़ते जल व्यवसाय के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक मिल्वौकी जल परिषद का गठन किया गया है । यह नगर अब अपने को जल हब एवं जल कारोबार के ब्रांड के रूप विकसित भी कर रहा है । इसके पीछे धारणा यह है कि पानी का कारोबार अधिक निवेश के साथ ही रोजगार के नए  की समुचित सप्लाई सुनिश्चित करने वाले नगर ही कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित कर सकते हैं और रोजगार के नए अवसरों के प्रमुख केंद्र बन सकते हैं ।



Monday 23 July 2012

सत्यमेव जयते..........इंटरटेनमेंट या सामाजिक बदलाव का उपक्रम


सत्यमेव जयते..........इंटरटेनमेंट या सामाजिक बदलाव का उपक्रम  
 ‘सत्यमेव जयते’- टीवी चैनल स्टार प्लस पर दिखाए जा रहे आमिर खान के इस अनोखे कार्यक्रम के पहले देश की एक बड़ी आबादी ने सत्यमेव जयते वाक्य को शायद ही सुना था । लेकिन आज यह शब्द समूह लोगों के जुबान पर है तो इस शो और शो में उठाए गए मुद्दों कि वजह से । यह टीवी शो तीन कारणों से अनोखा है । पहला, इस शो के द्वारा देश की समाजिक बुराइयों और मुद्दों को उठाया गया है । दूसरा, इन समाजिक बुराइयों और मुद्दों को किसी राजनेता या समाज-सेवी द्वारा नहीं बल्कि एक सुप्रसिद्ध फिल्म स्टार द्वारा उठाया गया है, जिसने यह साबित किया कि प्राचीन उपनिषदिक वाक्य को वर्तमान सामाजिक संदर्भों में उपयोग कर लोगों के बीच जागरूकता पैदा करते हुए उसकी प्रासंगिकता को सिद्ध किया जा सकता है । तीसरा, सत्यमेव जयते’- मूंडक उपनिषद की इस सूक्ति वाक्य के बारे में बहुत कम लोग जानते है कि यह हमारे देश का राष्ट्रीय मोटो है जो राष्ट्रीय चिन्ह के नीचे देवनागरी में लिखा हुआ है । लेकिन अब इस शो के माध्यम से भारतीय घरों में प्रवेश कर लोगों के मानस पर अंकित हो गया है । राष्ट्रीय मोटो होने के कारण सत्यमेव जयते अपने देश की मुद्राओं के एक ओर अनिवार्यतः छपा होता है । फिर भी देश की अधिकांश जनसंख्या इस वाक्य, इसके अर्थ और इसके महत्व से अनभिज्ञ रही है

आज से 5000 वर्ष पहले गुरु अंगिरस द्वारा दिये गए इस आध्यात्मिक मंत्र को नए सामाजिक संदर्भों में सार्थक, रचनात्मक, ज्ञानवर्धक और रोचक ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की है । इस अनोखे शो में यह उपनिषदिक वाक्य सामाजिक बदलाव के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है, उपनिषदिक काल के ठेठ आध्यात्मिक उत्थान के संदर्भ में नहीं। फिर भीसत्यमेव जयते वाक्य का संबंध आध्यात्मिक भावनाओं के साथ ही सांस्कृतिक और राष्ट्रीय भावनाओं से भी है क्योंकि यह हमारा राष्ट्रीय मोटो भी है । यह शीर्षक सामाजिक बुराइयों और भ्रष्ट आचरणों के संदर्भ में जन समाज की राष्ट्रीय भावनाओं को कुरेदने में सक्षम है । यह अलग बात है कि इसमें इस कार्यक्रम को कितनी सफलता मिलती है। यह शीर्षक सुनिश्चित करता है कि आध्यात्मिक उत्थान और अपने सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति स्वस्थ दृष्टि के द्वारा ही इन सामाजिक बुराइयों से निजात पाया जा सकता है । आध्यात्मिक उत्थान से तात्पर्य है भौतिकतावादी मानसिकता से ऊपर उठकर जीवन और समाज के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास । इस शो के जरिए आमिर खान कहीं भी राष्ट्रीय भावनाओं को कुरेदने या आध्यात्मिक, सांस्कृतिक उत्थान का छौंक देने की भी कोशिश भी नहीं करते है । यह सबकुछ सत्यमेव जयते शीर्षक अपने आप ही कुरेद देता है ।

सत्यमेव जयते का सत्यम केवल सामाजिक बुराइयों और भ्रष्ट आचरणों के बारे मे सच बोलना नहीं है बल्कि जीवन और व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र में सच्चाई का साथ देना और उसके अनुसार आचरण करना है । सत्यमेव जयते का अर्थ सही, संतुलित और वास्तविक जानकारियों को बतलाना भी है जिसके बिना सच बोलने और सच के विजयी होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ।  

इस अनोखे रीयल्टी शो में नाम के अनुकूल कुछ नहीं है । इस शो में आमिर खान जिन सामाजिक बुराइयों का पर्दाफाश करते है या जिन मुद्दों को उठाते हैं, वे बुराइयाँ इस शो के बाद खत्म नहीं हो रही हैं और नहीं कोई आंदोलन ही खड़ा होता है । लेकिन प्रत्येक एपिसोड के बाद उस एपिसोड में उठाए गए मुद्दों को लेकर मीडिया से लेकर सामाजिक औए राजनीतिक हल्कों में जो गरमागरम बहसें (कभी दबे स्वर में तो कभी विरोध के स्वर में) शुरू होती हैं, वह खलबली ही सत्यमेव जयते नाम को सार्थकता प्रदान करती है।

इस कार्यक्रम का अनोखापन इसके प्रस्तुतिकरण में भी है । सत्यमेव जयते में समाजिक बुराइयाँ और मुद्दें हैं । लेकिन सामाजिक बुराइयों के कारणों की गहरी तहक़ीक़ात के बजाय कुछेक जगहों पर कारणों की चर्चा को छोडकर यह सामाजिक बुराइयों के त्रासद प्रभावों पर अधिक केन्द्रित है। समस्याओं की जड़ निःसन्देह गहरी है जो उसके गंभीर प्रभाव से ही स्पष्ट हो जाता है । इसमें समस्याओं से निपटने में आधिकारियों की भूमिका और आवश्यक कार्रवायों हेतू कुछेक सुझाओं की भी चर्चा की जाती है। केस स्टडी का चयन इस प्रकार किया गया है कि समस्याओं के अधिकतम दुष्प्रभाव को दिखाया जा सके । सामाजिक बुराइयों के शिकार लोगों की व्यक्तिगत ट्रेजिक व्यथा को स्थान दिया गया है इन बुराइयों से जुड़े आंकड़ों के द्वारा इनके व्यापक सामाजिक प्रभाव और उसकी गंभीरता को दिखाया गया है। इन बुराइयों से बिना किसी सरकारी मदद के दृढ़ता से लड़ने वालों और सामाजिक बदलाव के लिए कार्यरत समाजसेवियों से बातचीत, कानूनी प्रावधानों और खामियों, ट्रेजिक और इन सामाजिक बुराइयों से किसी तरह बाहर निकल आने वालों के संघर्ष की जो खिचड़ी परोसने का प्रयास किया गया है वह काफी रोचक ही नहीं है बल्कि अपने व्यापक प्रभाव के कारण लोगों की सामाजिक संवेदना को कचोटती और झंकृत करती है । यही कारण है कि जो लोग इन सामाजिक बुराइयों की जड़ है वे इस कार्यक्रम में दिखाए गए सच से सबसे अधिक आहत हुए । खाप पंचायतें और डॉक्टर की जमात इस कार्यक्रम से नाराज हो गई ।

सत्यमेव जयते के विज्ञापन के लिए भले ही इंटरटेनमेंट का मतलब सिर्फ हँसाना नहीं होता है पंचलाइन का इस्तेमाल होता था । लेकिन इस शो में उठाए गए मुद्दों से यही पता चलता है कि आमिर खान का उद्देश्य इंटरटेनमेंट बिलकुल नहीं है । हाँ, इंटरटेनमेंट का तड़का इस शो में डालने से परहेज नहीं किया गया है । इस शो में देशभक्ति म्यूजिक है, इमोशन है, तथ्य है, आंकड़े है विशेषज्ञों की टिप्पणियाँ है और कभी-कभार आँसू भी बहाने के अवसर है और जैसा कि हर टीवी चैनल अपना अधिकतम टीआरपी सुनिश्चित करने के लिए करते हैं, दर्शकों की भागीदारी और समर्थन के लिए उनके फोन कॉल को भी शामिल किया गया है । केबीसी, खतरों के खिलाड़ी, बिग बॉस, लिटिल चैंप और सुर संग्राम जैसे शो के दर्शक समूह अलग-अलग हैं । सत्यमेव जयते ने समाज के विभिन्न वर्गों के मन और हृदय को टारगेट किया और इसमें संदेह नहीं कि इस कार्य में यह अबतक सफल रहा है। इस शो के प्रसारण से यह साबित होता है मनोरंजन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा रोचक ढंग से लोगों का मानसिक परिष्कार करते हुए उन्हे अपने परिवेश और समाज के प्रति अधिक जागरूक, सकारात्मक, रचनात्मक और ज्ञानवान भी बनाया जा सकता है । यदि यह मान लिया जाय कि आमिर खान का उद्देश्य इंटरटेनमेंट है, तो टीवी चैनलों पर दिखाए जा रहे मौजूदा इंटरटेनमेंट कार्यक्रमों, रियल्टी शो और यहाँ तक कि कुछेक समाचार चैनलों के समाचारों की तुलना में स्वस्थ और परिष्कृत इंटरटेनमेंट है ।  
 
इस कार्यक्रम में दिखायी गई छुआछूत, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, बाल यौन शोषण, शराब पीने जैसी सामाजिक बुराइयों और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से होनेवाले दुष्परिणामों से लोग अवगत है । कोई इन बुराइयों का कारण है तो कोई भुक्तभोगी तो कोई तटस्थ द्रष्टा बुद्धिजीवी । ये समस्याएँ हमारे समाज के लिए नई नहीं है और नहीं इस कार्यक्रम में ही पहली बार उठाया गया है इन सामाजिक बुराइयों और अपराधों की जड़ में कहीं न कहीं हमारे भारतीय समाज, परंपरा और जीवन पद्धति को लेकर भ्रमपूर्ण व्याख्याएँ हैं । बालिका भ्रूण हत्या के संबंध में हर कोई जानता है कि केवल डॉक्टर और सरकारी अधिकारी ही इस समस्या का एकमात्र कारण नहीं है । इस जघन्य अपराध में गर्भवती महिला का पति, उसके माँ-बाप, सास-श्वशुर, मित्र, सहकर्मी और पड़ोसी सभी शामिल होते है । इन सबका अपराध परिवार की पितृ सतात्मक अवधारणा की मानसिकता का प्रतिफल है । यह जानना आवश्यक है कि भारत में लड़कियों या महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा नहीं दिए जाने के किस तरह की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ जिम्मेदार रही है । वैदिक काल में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त था । लेकिन गुप्त काल तक आते-आते महिला को अपने पति की चिता पर जलकर मरने के लिए विवश किया जाने लगा । भारत में आधुनिकता के प्रवर्तक राजा राम मोहन राय से लेकर महात्मा गाँधी तक वर्तमान समय में सैकड़ों संस्थाओं ने इन सामाजिक बुराइयों की खात्मे के लिए अनवरत प्रयास किया है ।

आमिर ने अपने कार्यक्रम के माध्यम से चिकित्सा जगत और देश के स्वास्थ्य सेवाओं में कई अन्य तरह की अनियमितताएँ दिखायी हैं जिससे से हर भारतीय प्रभावित है। इस समस्या का कारण चिकित्सा सेवाओं से जुड़े हुए लोग ही हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन इस कड़वे सच से अनजान भी नहीं है। लेकिन अपने घर के इन काकरोंचों को साफ करने या उनका सही इलाज करने के बजा आमिर खान से माफी की मांग की । क्या इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यह नहीं जानता कि कन्या भूर्ण हत्या डाक्टरों की मदद के बिना संभव नहीं हैं और इस अनैतिक काम के लिए डाक्टर मोटी रकम भी वसूलते हैं । यह ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसे आम आदमी भी जानता है । लेकिन आम आदमी के जानने से इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को कोई ऐतराज नहीं है क्योंकि लोगों के गुपचुप तरीके से जानने से डाक्टरों को गलत तरीकों से धन कमाने का जरिया बन जाता है । जबकि टीवी पर इसे दिखाए जाने से उनके सफ़ेद कपड़ों पर कन्या भूर्ण हत्या के खून के छीटें पड़ जाते हैं । वास्तव में इस कार्यक्रम में दिखाए गए सच से वही लोग आहत हैं, जो इस समस्या की जड़ हैं। इस कार्यक्रम से कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का अपमान हुआ है । यहाँ तक कि जब वे घरेलू हिंसा की बात करते हैं तो कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि पुरुषों का अपमान किया जा रहा है । घरेलू हिंसा वाले शो में स्पष्ट शब्दों में कहा गया कि पुरुष जन्म से हिंसक नहीं होते हैं और नहीं सभी पुरुष हिंसक होते हैं । आमिर का दृष्टिकोण यहाँ पूरी तरह संतुलित है। आमिर खान ने साफ किया है कि उन्होंने अपने धारावाहिक की कड़ियों में चिकित्सा जगत से लेकर खाप पंचायतों की फरमानों और महिलाओं के साथ अत्याचारों से जुड़ी सामाजिक बुराइयों की असलियत दिखाई है।
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               कुछ लोग समाज की धमनियों में प्रवेश कर चुकी बुराइयों को उजागर करने के लिए आमिर खान के इन प्रयासों की प्रशंसा करते हैं तो कुछ लोग इसे केवल पब्लिसिटी स्टंट मानते हैं, जिससे समाज का कोई भला नहीं होने जा रहा है । सामाजिक समस्याओं को लेकर आमिर खान के इरादे कितने नेक है या समस्याओं के प्रति वे कितने गंभीर है, यह अहम नहीं है । उनका उद्देश्य सामाजिक बदलाव है या व्यावसायिक या पब्लिसिटी स्टंट, महत्वपूर्ण नहीं है । अहम है इन मुद्दों को एक व्यापक जन समाज के बीच बहस का विषय बनाना और इसमे आमिर खान एवं उनका शो पूरी तरह से सफल रहा है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सत्यमेव जयते सामाजिक जागरूकता के एक ब्रांड के रूप में सामने आया है फिर भी यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि यह शो सामाजिक हस्तक्षेप का नारा बन जाएगा । लेकिन किसी गेम शो या मनोरंजन कार्यक्रम के बजाय आमिर खान ने ऐसी समस्याओं को अपने हाथ मे लिया जो असल मे हमारे समाज की रियल्टी है । इस प्रकार सत्यमेव जयते ने रियल्टी शो को एक नया अर्थ या एक नया आयाम प्रदान किया और साथ ही टीवी की सामाजिक भूमिका को नए सिरे से स्थापित किया । 

सामाजिक मुद्दों पर लोगों को जागरूक करना एक बात है जबकि इसका सार्थक प्रभाव पड़ना दूसरी बात है। इस शो को देखने के बाद कितने लोग कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा और छुआछूत से तौबा कर लेते है, कितने डॉक्टर इलाज के अनैतिक तरीके अपनाना छोड़ देते हैं, सरकारी नियम और कानून कितने प्रभावी ढंग से क्रियान्वित होते है, इन समस्याओं के जड़ लोगों में से कितनों को दंडित किया जाता है, यह अहम नहीं है और यह कार्यक्रम की सफलता पर सवाल खड़ा नहीं करता है। सरकार चलाना, नीतियों का निर्माण करना और उन्हे प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करना इतना आसान नहीं होता है जितना टीवी चैनलों आकर्षक शब्द और शैली के साथ लोगों में सामाजिक बुराइयों के प्रति आक्रोश एवं पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति पैदा करते हुए समाधान के लिए सुझाव देना । व्यावहारिक स्तर पर इस शो के अच्छे और सार्थक परिणाम तभी प्राप्त किए जा सकते है जब इन समस्याओं के उन्मूलन के लिए जिम्मेदार लोगों के काम करने के बेहद फूहड़ और गैर-जिम्मेदराना ढंग में बदलाव आए ।   

आमिर खान की समाजिक समस्याओं को लेकर सचेत मानवीय छवि, इस कारण उनके प्रशंसकों की तादात काफी अधिक है, के साथ ही उनकी काम करने के पेशेवर अंदाज ने भी 'सत्यमेव जयते' को लोगों की भावनाओं और मानसिकता को झकझोर कर सकारात्मक सामाजिक बदलाव,ले ही छोटा और अस्थायी, का अनोखा माध्यम बना दिया है । अण्णा हज़ारे ने भी भ्रष्टाचार जैसी जिस समस्या से संघर्ष करने का बीड़ा उठाया वह सामाजिक ही नहीं है बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक भी है । अण्णा हज़ारे के संघर्ष का दायरा काफी व्यापक है । वे और उनकी टीम हर सिस्टम को भ्रष्टाचार से मुक्त होना देखना चाहती है । इसलिए अण्णा हज़ारे का संघर्ष अधिक खतरनाक और उनका हर कदम जोखिम भरा है । अण्णा हज़ारे फिल्म स्टार नहीं है इसलिए आमिर की तरह वे मीडिया का अपने हिसाब से उपयोग नहीं कर सकते हैं । उन्हे और उनकी टीम कोई भी बात पूरी सावधानी से कनी पड़ती है । अण्णा हज़ारे और उनकी टीम को अक्सर विवादों का सामना करना पड़ता है । राजनेताओं, नौकरशाहों, माफिया के साथ ही बड़े ठेकेदारों और कारपोरेट घरानों के हमलों का भी सामना करना पड़ता है । आमिर द्वारा उठाए गए मुद्दे पूरी तरह से सामाजिक हैं और वे उन्हे राजनीतिक विवाद का रूप देने का प्रयास नहीं करते हैं । इसलिए वे और उनका शो सरकार और राजनेताओं के कोपभाजन से मुक्त है, पुलिसिया कारवाई से रहित है और मीडिया की नकारात्मक प्रोपेगेंडा से भी मुक्त है । इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सत्यमेव जयते सामाजिक जागरूकता के एक ब्रांड के रूप में स्थापित हो गया है। आमिर खान सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करके और लोगों को इन समस्याओं की गंभीरता को अधिक से अधिक लोगों को अवगत करके समाजसेवियों की कतार में खड़े नहीं होते है । लेकिन हाँ, सामाजिक मुद्दों को उठाने के तरीके को लेकर किसी भी अन्य बालीवुड स्टार या किसी मान्यता प्राप्त समाजसेवी से आमिर खान की कोई तुलना नहीं है। यह काम देश का कोई राजनेता करता तो शायद ही इतनी बड़ी आबादी इस कार्यक्रम को चाव से सुनती और इससे भी बड़ी बात कि उसपर विश्वास करती । उनकी विश्वसनीयता इस कदर गिर चुकी है कि शायद ही कोई दर्शक यह भरोसा करे कि राजनेता राजनीतिक लाभों से प्रेरित नहीं है और उसके इरादे नेक हैं । यही कारण है कि आमिर खान के इस शो को जितनी सफलता मिल रही है, उतनी देश के सत्तासीन या विपक्ष के नेताओं की नीतियों और कार्यक्रमों को नहीं मिल रही है।