वित्त मंत्री पी चिदम्बरम
और भारतीय प्रधानमंत्री और उनके आर्थिक सलाहकार बढ़ती महंगाई के लिए जिस तरह
से आधारहीन तर्क दे रहे है और झूठ पर झूठ बोले जा रहे है उससे यही लगता है कि उन्हे आर्थिक
विकास और महंगाई के संबंधों को जानते हुए भी वे मानते है कि आम आदमी को महंगाई के कारणों
की समझ हो ही नहीं सकती है । बढ़ती महंगाई के दौरान आर्थिक सुधार की प्रक्रिया काफी जटिल और मुश्किल हो जाती
है । पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने से बढ़ती महंगाई की समस्या और गहरी हो जाती है
। देश
के आर्थिक विशेषज्ञों के अलावा
मीडिया भी आर्थिक सुधारों के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि कर सब्सिडी कम या समाप्त करने
की वकालत करती है । देश के इन तथाकथित आर्थिक विशेषज्ञों और गला फाड़ कर
चीख मचाने मीडिया ने कभी यह सुझाव क्यों नहीं देती कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने
के बजाय
या उससे पहले सरकार अपने अमले पर किए जाने वाले खर्च में कटौती करे। राजकोषीय घाटे
का एक बड़ा कारण सरकारी फिजूलखर्ची है जिसे देश की अर्थव्यवस्था की चिंता करने वाली र्आर्थिक विशेषज्ञों की टीम
और मीडिया ढ़क कर रखती है क्योंकि वे भी सरकारी खर्चों में साझेदार है ।
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