Thursday 13 September 2012

सरकारी फिजूलखर्ची भी है राजकोषीय घाटे के किए जिम्मेदार


वित्त मंत्री पी चिदम्बरम और भारतीय प्रधानमंत्री और उनके आर्थिक सलाहकार बढ़ती महंगाई के लिए जिस तरह से आधारहीन तर्क दे रहे है और झूठ पर झूठ बोले जा रहे है उससे यही लगता है कि उन्हे आर्थिक विकास और महंगाई के संबंधों को जानते हुए भी वे मानते है कि आम आदमी को महंगाई के कारणों की समझ हो ही नहीं सकती है । बढ़ती महंगाई के दौरान आर्थिक सुधार की प्रक्रिया काफी जटिल और मुश्किल हो जाती है । पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने से बढ़ती महंगाई की समस्या और गहरी हो जाती है । देश के आर्थिक विशेषज्ञों के अलावा मीडिया भी आर्थिक सुधारों के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि कर सब्सिडी कम या समाप्त करने की वकालत करती है । देश के इन तथाकथित आर्थिक विशेषज्ञों और गला फाड़ कर चीख मचाने मीडिया ने कभी यह सुझाव क्यों नहीं देती कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने के बजाय या उससे पहले सरकार अपने अमले पर किए जाने वाले खर्च में कटौती करे। राजकोषीय घाटे का एक बड़ा कारण सरकारी फिजूलखर्ची है जिसे देश की अर्थव्यवस्था की चिंता करने वाली र्आर्थिक विशेषज्ञों की टीम और मीडिया ढ़क कर रखती है क्योंकि वे भी सरकारी खर्चों में साझेदार है ।