संप्रभुता वह शक्ति है जो राज्य में निहित होती है | शक्ति की तरह संप्रभुता
भी अमूर्त होती है तथा यह अपने क्रिया में मूर्त होती है | संप्रभुता वह शक्ति है,
जिसके माध्यम से कोई राज्य कानूनों का निर्माण, उसकी व्याख्या और क्रियान्वयन करता
है |
संप्रभुता का स्वरुप राज्य के स्वरुप से निर्धारित होता है | विभिन्न
विचारकों एवं दार्शनिकों ने अपने-अपने सिद्धांतों के आलोक में संप्रभुता के स्वरुप
की परिकल्पना की है |
आस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत
आस्टिन उपयोगितावादी विचारक हैं | वह ह्यूम तथा बेंथम की परंपरा के
विचारक हैं | उपयोगितावाद ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम हित’ में विश्वास करता हैं
| आस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत भी इसी उपयोगितावादी सूत्र पर आधारित है |
आस्टिन संप्रभुता की इस परिभाषा से पूर्णतया परिचित हैं कि इससे राज्य
कानूनों का निर्माण, उसकी व्याख्या और क्रियान्वयन करता है| लेकिन वे इससे आगे
बढ़कर संप्रभुता को पूर्णतया स्वतंत्र और निरपेक्ष मानते हैं | उनके अनुसार संप्रभुता
व्यक्ति या संस्था किसी भी रूप में निहित हो सकती है | परन्तु वह व्यक्ति या
संस्था एक ही होनी चाहिए | अर्थात, वह संप्रभुता संपन्न संस्थाओं की बहुलता में
विश्वास नहीं करते हैं | एक व्यक्ति या संस्था में निहित मानने के कारण वह संप्रभुता
को अविभाज्य मानते हैं | बहुलतावादियों के विपरीत संप्रभुता को असीम और अविभाज्य
मानने के पीछे आस्टिन का तर्क है कि सर्वोच्चता की ऐसी कोई नीचे से ऊपर तक
श्रृंखला नहीं हो सकती और न ही व्यक्तियों का कोई ऐसा समन्वित संगठन हो सकता है |
अर्थात, संप्रभुता विभिन्न संघों और समुदायों में विभाजित नहीं हो सकती | अविभाज्यता
संप्रभुता की सर्वोच्चता, स्वतंत्रता और निरपेक्षता सुनिश्चित करती है | आस्टिन के
अनुसार सर्वोच्च और अविभाज्य होने के कारण संप्रभुता में असीमित शक्ति होती है |
असीमित शक्ति से युक्त होने के कारण संप्रभुता पर किसी प्रकार की विधिक मर्यादाएं
नहीं हो सकती हैं |
आस्टिन के अनुसार समस्त कानून इसी निरपेक्ष-शक्ति संपन्न संप्रभु के
आदेश हैं और कानून का उद्देश्य है अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुख प्रदान करना | संप्रभु
अपने आदेश को समाज के अधिकांश व्यक्तियों से पालन करा लेता है | यह संप्रभुता की
सार्थकता के लिए यह एक आवश्यक शर्त है |
संप्रभुता की परिभाषा में आस्टिन इसे सीमित भी करे देते हैं | परिभाषा
से स्पष्ट है कि संप्रभु ऐसा कोई कानून बनाने के लिए स्वतंत्र नहीं है जो ‘
व्यक्तियों को अधिकतम सुख प्रदान’ नहीं कर रहा हो | इस प्रकार संप्रभु के कानून
बनाने की शक्ति नैतिक आदर्शों से सीमित है | इसका अर्थ यह है कि नैतिक दृष्टि से
संप्रभुता को निरपेक्ष शक्ति नहीं कहा जा
सकता हैं | परन्तु इसका यह भी अर्थ नहीं कि व्यक्ति को संप्रभु के आदेशों का
उल्लंघन करने का अधिकार मिल जाता है |
वस्तुतः संप्रभु के आदेशों के पालन से अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम हित संभव होता
है |
आस्टिन प्राकृतिक विधानों और तत्वमीमांसीय मान्यताओं को पूर्णतया
निरस्त कर देते हैं | वे मानते हैं कि रीतिरिवाज और दैवीय नियम संप्रभु की शक्ति की
सीमा-रेखा नहीं हो सकते हैं | ये नियम न तो राज्य के कानूनों से स्वतंत्र है और न
उनसे ऊपर | ये सब राज्य के कानूनों के अधीन है | इस तरह वैधानिक दृष्टि से संप्रभु
सर्वोच्च है |
आस्टिन संप्रभुता के दो रूप मानते हैं-वैधानिक संप्रभुता और कार्यकारी
या प्रभावी संप्रभुता |
आस्टिन संप्रभुता को वैधानिक दृष्टि से असीमित मानते हैं | यह वैधानिक
संप्रभुता पूर्णतया संप्रभु राज्यों में निहित होती है | प्रभावी संप्रभुता वैधानिक संप्रभुता से ही शक्ति ग्रहण करती है
| इसे कार्यपालक संप्रभुता भी कहते हैं, जो नागरिकों से अपना आदेश मनवा ले |
आस्टिन के इस संप्रभुता सिद्धांत की बहुलवादियों ने जमकर आलोचना की है
| उनका कहना है कि आस्टिन जिस प्रकार समस्त शक्ति को संप्रभु में निहित मानते है,
उससे निरंकुश राज्य की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है | आस्टिन का यह
सिद्धांत एकात्मक राज्यों पर ही लागू हो सकता है, संघात्मक राज्यों पर नहीं|
आस्टिन द्वारा वैधानिक संप्रभुता और प्रभावी संप्रभुता का विभाजन भी स्पष्ट
नहीं है | इसके अलावा आस्टिन संप्रभुता सिद्धांत के लिए जिस उपयोगितावादी सूत्र का
उपयोग करते हैं उससे समाज का एक अल्पसंख्यक हिस्सा छूट जाता है | संप्रभु राज्य के
दायरे में सभी नागरिक आते हैं, अधिकतम या किसी विशेष वर्ग मात्र के नहीं |
मैकाइवर के अनुसार कानून को संप्रभु का आदेश मानना ठीक नहीं है,
क्योंकि ‘आदेश’ शब्द से ऐसी गंध आती है, मानों राज्य में कोई सत्ता है, जो दूसरों
को आदेश देती है और स्वयं उन आदेशों से बंधी हुई न हो | वास्तव में ऐसा नहीं है |
राज्य स्वयं कानूनों से बंधा होता है |
उपरोक्त आलोचनाएँ बहुलवादी दृष्टिकोण से भले ही सत्य प्रतीत होतीं हैं, लेकिन एक शक्तिशाली और संप्रभुता संपन्न राज्य की दृष्टि से आस्टिन का सिद्धांत पूर्णतया युक्तिसंगत हैं | यदि राज्य में असीमित शक्ति निहित नहीं है तो राज्य के विखंडन की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है | इस सिद्धांत ने अतीत में राज्य को धर्म-तंत्र के चंगुल से निकालने में पर्याप्त योगदान किया |
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