Monday, 21 July 2025

भारत में कार्बन मूल्य निर्धारण

 कार्बन मूल्य निर्धारण एक नीतिगत उपकरण है जिसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर आर्थिक लागत लगाकर प्रदूषण को नियंत्रित करना और स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण को बढ़ावा देना है। यह नीति उत्सर्जन करने वालों को पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए भुगतान करने को बाध्य करती है, जिससे वे अपने उत्सर्जन को घटाने के लिए प्रेरित होते हैं।

भारत अपने व्यापक जलवायु लक्ष्यों और सतत विकास एजेंडे के तहत एक सुव्यवस्थित और नियंत्रित कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली की दिशा में तेजी से अग्रसर है। वैश्विक स्तर पर कार्बन बाजारों और उत्सर्जन व्यापार को लेकर बढ़ते दबाव के बीच, भारत अब एक दर-आधारित उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) और उससे जुड़ी स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिटिंग व्यवस्था को सक्रिय रूप से विकसित कर रहा है। विश्व बैंक की "कार्बन मूल्य निर्धारण की स्थिति और रुझान 2025" रिपोर्ट में भारत की उभरती भूमिका को स्वीकार किया गया है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि वैश्विक जलवायु वित्त और कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र को आकार देने में भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार बनकर उभरा है।

दर-आधारित उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ईटीएस) ऐसी व्यवस्था होती है जिसमें कुल उत्सर्जन की कोई निश्चित सीमा निर्धारित नहीं की जाती, बल्कि प्रत्येक इकाई को एक निर्धारित प्रदर्शन मानदंड (performance benchmark) दिया जाता है, जो उसकी शुद्ध उत्सर्जन सीमा के रूप में कार्य करता है। यह प्रणाली भविष्य में संभावित कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि की अनिश्चितताओं और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से जुड़ी चुनौतियों के प्रबंधन में अधिक लचीलापन और सहूलियत प्रदान करती है।

वैश्विक कार्बन मूल्य निर्धारण परिदृश्य में भारत की भूमिका

भारत, ब्राजील और तुर्की जैसे अन्य प्रमुख मध्यम आय और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ, कार्बन मूल्य निर्धारण के क्रियान्वयन में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है।

जुलाई 2024 में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) को अपनाने के साथ भारत ने दर-आधारित उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) की दिशा में ठोस कदम बढ़ाया है।

इस राष्ट्रीय ईटीएस की शुरुआत ऊर्जा-गहनता वाले नौ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों से की जाएगी।

यह योजना कुल उत्सर्जन की सीमा निर्धारित करने के बजाय उत्सर्जन की तीव्रता (emissions intensity) को लक्ष्य बनाती है।

इस प्रणाली के तहत, उन इकाइयों को क्रेडिट प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे जो निर्धारित बेंचमार्क उत्सर्जन तीव्रता स्तर से बेहतर प्रदर्शन करेंगी।

भारत में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) को ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कमी लाने के उद्देश्य से कार्बन मूल्य निर्धारण के एक प्रभावी उपाय के रूप में विकसित किया गया है। यह प्रणाली दो मुख्य घटकों पर आधारित है — एक अनुपालन प्रणाली, जो बाध्य संस्थाओं (मुख्यतः औद्योगिक क्षेत्रों) के लिए है, और दूसरी एक स्वैच्छिक ऑफसेट प्रणाली, जो इच्छुक प्रतिभागियों को भाग लेने की अनुमति देती है।

CCTS का मुख्य उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में उद्योगों और संस्थाओं को प्रेरित करना और उन्हें आवश्यक सहयोग प्रदान करना है। इस योजना के तहत एक मजबूत संस्थागत ढांचा स्थापित किया गया है, जिसने भारतीय कार्बन बाज़ार (ICM) की नींव रखी है।

28 मार्च2025 को भारत के विद्युत मंत्रालय ने स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिए क्रेडिट पद्धतियों को स्वीकृति दीजिनमें शामिल हैं:

नवीकरणीय ऊर्जा

हरित हाइड्रोजन उत्पादन

औद्योगिक ऊर्जा दक्षता

मैंग्रोव वनरोपण और पुनर्वनरोपण

घरेलू स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार का विकास

भारत अपने ईटीएस के साथ-साथ एक स्वैच्छिक ऋण व्यवस्था तैयार कर रहा है।

कृषिवनरोपणस्वच्छ पाककला आदि जैसे गैर-ईटीएस क्षेत्रों पर लक्षित।

इसका उद्देश्य जलवायु-अनुकूल परियोजनाओं के लिए निजी पूंजी जुटाना है।


घरेलू नीति समर्थन

ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 :

  • भारत के कार्बन बाज़ार के लिए कानूनी आधार प्रदान किया गया।
  • यह विधेयक केन्द्र सरकार को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार देता है।

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन :

  • मार्च 2025 में अनुमोदित कार्बन क्रेडिट पद्धतियों द्वारा समर्थित 
  • 2030 तक प्रति वर्ष 5 एमएमटी हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

प्रदर्शनउपलब्धि और व्यापार (पीएटी) :

  • 2012 से ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) द्वारा कार्यान्वित।
  • अपने जीवनचक्र में निर्दिष्ट क्षेत्रों में उत्सर्जन तीव्रता में 15-25 प्रतिशत की कमी।

नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य :

  • भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षमता स्थापित करना है।

    कार्बन बाज़ार की तैयारी को सुदृढ़ करने हेतु भारत सरकार की पहलें

    सीओपी 27 में भारत ने स्पष्ट रूप से यह रेखांकित किया कि वह “साझा लेकिन विभेदित दायित्व और संबंधित क्षमताएं” (CBDR-RC) सिद्धांत को अपनाते हुए, न्यून कार्बन उत्सर्जन के साथ अपनी विकासात्मक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बना रहा है। इस दिशा में भारत द्वारा कई महत्वपूर्ण पहलें की गई हैं, जिनमें शामिल हैं:

    • मिशन लाइफ (LiFE) और ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम, जो सतत जीवनशैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किए गए हैं।

    • राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन, जो विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय कार्बन बाज़ार (NSCICM) और ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के समन्वय में कार्य करेगी।

    • निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहन, ताकि कार्बन मूल्य निर्धारण और व्यापार प्रणाली को व्यापक समर्थन और प्रभावशीलता मिल सके।

    मिशन लाइफ क्या है?

    मिशन LiFE (Lifestyle for Environment) भारत द्वारा शुरू किया गया एक वैश्विक आंदोलन है, जिसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक, सतत और जिम्मेदार जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करना है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों को “प्रो-प्लैनेट पीपल” यानी धरती के हित में कार्य करने वाले नागरिकों में बदलना है।

    यह कैसे कार्य करता है?

    मिशन लाइफ व्यवहारगत परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है—जैसे ऊर्जा की बचत, प्लास्टिक उपयोग में कमी, और जैविक कचरे से खाद बनाना। यह केवल लोगों की आदतें ही नहीं बदलता, बल्कि बाजार की दिशा को प्रभावित करता है और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने हेतु नीतिगत सुधारों को भी आगे बढ़ाता है।

    मिशन लाइफ के लक्ष्य

    • वर्ष 2028 तक विश्वभर में 1 बिलियन लोगों को व्यक्तिगत और सामूहिक पर्यावरणीय कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल करना।

    • भारत के 80% गांवों और शहरी निकायों को हरित समुदायों में परिवर्तित करना।

    • मापनीय और प्रभावशाली जलवायु परिणाम उत्पन्न करना, जिससे वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा मिले।

    ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत 12 अक्टूबर, 2023 को अधिसूचित ग्रीन क्रेडिट नियम एक स्वैच्छिक, बाजार-आधारित तंत्र स्थापित करते हैं, जिसका उद्देश्य खराब और बंजर वन भूमि पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देना है। इस प्रणाली के तहत प्रतिभागियों को उनके पर्यावरणीय प्रयासों के लिए ग्रीन क्रेडिट प्रदान किए जाते हैं, जिनका संपूर्ण प्रबंधन एक डिजिटल पोर्टल और रजिस्ट्री के माध्यम से किया जाता है।

यह प्रणाली कैसे कार्य करती है:

  • भूमि बैंक और चयन:
    राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के वन विभाग GCP पोर्टल पर क्षतिग्रस्त या बंजर वन क्षेत्रों को एक गतिशील "भूमि बैंक" के रूप में पंजीकृत करते हैं। इच्छुक प्रतिभागी इस सूची से वृक्षारोपण के लिए ब्लॉक चुन सकते हैं।

  • योग्यता और भागीदारी:
    सरकारी निकाय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, कंपनियां, गैर-सरकारी संगठन (NGOs), परोपकारी संस्थाएं, समाज और व्यक्तिगत नागरिक—जो पोर्टल पर पंजीकृत हों—इस पहल में भाग ले सकते हैं।

  • वृक्षारोपण और क्रेडिट प्रदान करना:
    प्रतिभागियों को दो वर्षों के भीतर वृक्षारोपण करना होता है और उसके बाद 10 वर्षों तक उसका रखरखाव करना होता है। लगाए गए वृक्षों की संख्या, स्वास्थ्य और स्थायित्व के आधार पर ग्रीन क्रेडिट दिए जाते हैं। इसका मूल्यांकन डिजिटल ट्रैकिंग, सैटेलाइट आधारित क्षेत्र निगरानी और तृतीय पक्ष ऑडिट के माध्यम से होता है।


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