चालू खाता (current account)
किसी देश का चालू
खाते के तहत दृश्य या
मूर्त(visible)और अदृश्य या अमूर्त (invisible) ट्रेड आता है। वस्तुओं () के निर्यात और आयात को दृश्य या
मूर्त ट्रेड
कहते हैं। बैंकिंग और इंश्योरेंस जैसी सेवाओं के निर्यात
और आयात से होने वाली आय और ख़र्च एवं निवेश पर प्राप्त लाभ और विदेशों
में काम करने वाले लोगों द्वारा भेजा जाने वाला नगद (remittance) अदृश्य या
अमूर्त ट्रेड
के अन्तर्गत आते हैं। यह किसी देश के भुगतान संतुलन (balance of payments) का एक
भाग होता है जबकि दूसरा भाग पूँजीगत खाता (capital account) होता
है । चालू खाता मूलतः सर्वविदित
व्यापार संतुलन(balance of
trade) ही है
।
चालू खाते का घाटा (current account) : जब किसी देश द्वारा वस्तुओं, सेवाओं का कुल आयात और नकद हस्तांतरण देश से होने वाले वस्तुओं, सेवाओं के कुल निर्यात और नकद हस्तांतरण से अधिक हो जाता है तो इसे का चालू खाते का घाटा(करंट अकाउंट डेफिसिट ) कहा जाता है । आम तौर पर जीडीपी के पर्सेंटेज के रूप में इसे बताया जाता है।
चालू खाते का घाटा का मतलब है- देश
से विदेशी मुद्रा का नेट आउटफ्लो। भारत के मामले में इसका संबंध डॉलर से है। अगर
विदेशी मुद्रा का इनफ्लो इस डेफिसिट को पाटने में नाकाम रहता है, तो देश के विदेशी मुद्रा
भंडार (फॉरेक्स) में कमी आनी शुरू हो जाती है। इसलिए जिस देश में करंट अकाउंट
डेफिसिट की समस्या होती है, उसे
कैपिटल फ्लो आकर्षित करने के उपाय करने पड़ते हैं। यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
(एफडीआई) के रूप में हो सकता है। हालांकि, जब कैपिटल फ्लो डेफिसिट को
पूरा करने के लिहाज से अपर्याप्त रहता है, तो देश की करंसी में इस डर से
कमजोरी आने लगती है कि उसे इंटरनैशनल लायबिलिटीज चुकाने में दिक्कत आ सकती है या
मौजूदा आयात का बिल चुकाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए भारत के मामले में जीडीपी के
2.5 फीसदी
से ज्यादा करंट अकाउंट डेफिसिट को चिंताजनक माना जाता है। पिछले वित्त वर्ष में
कैपिटल इनफ्लो ज्यादा रहने के बावजूद, ज्यादा करंट अकाउंट डेफिसिट के चलते
भारत को कुल बैलंस ऑफ पेमेंट में डेफिसिट का सामना करना पड़ सकता है।
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