Wednesday, 16 July 2025

क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट

 

क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट 

क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (क्यूआईपी) कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने का एक जरिया है। शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनी क्यूआईपी के तहत क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर (क्यूआईबी) को वॉरंट के अलावा शेयर, आंशिक या पूर्णत: परिवर्तनीय डिबेंचर जैसी सिक्योरिटीज जारी कर पूंजी जुटाती है। ये सिक्योरिटी तय अवधि के बाद शेयरों में परिवर्तित कर दी जाती हैं। प्रिफरेंशियल आवंटन के अलावा जल्द पूंजी जुटाने का यह दूसरा जरिया है। 

क्यूआईपी की शुरुआत

सेबी ने घरेलू कंपनियों को कम अवधि में बाजार से पैसे जुटाने की सुविधा देने के लिए 2006 में इसकी शुरुआत की थी। इसका मकसद विदेशी पूंजी पर घरेलू कंपनियों की अत्यधिक निर्भरता में कमी लाना भी था। क्यूआईपी से पहले घरेलू बाजार से पूंजी जुटाने की जटिल औपचारिकताओं से बचने के लिए कई कंपनियां विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्ड (एफसीसीबी) या ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट (जीडीआर) के जरिए पैसे जुटाना पसंद करती थीं।

क्यूआईपी के तहत सिर्फ वैसे क्यूआईबी को सिक्योरिटी जारी किए जा सकते हैं, जो खुद कंपनी के प्रमोटर नहीं हैं या प्रमोटर से संबंधित नहीं हैं। क्यूआईपी का प्रबंधन सेबी में पंजीकृत मर्चेंट बैंकर द्वारा किया जाता है। क्यूआईपी से पैसे जुटाने वाली कंपनी को इश्यू से पहले सेबी के यहां किसी तरह का दस्तावेज जमा नहीं करना पड़ता है। प्लेसमेंट से संबंधित दस्तावेज स्टॉक एक्सचेंज और कंपनी की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाता है। 


कारपोरेट गवर्नेंस

 कारपोरेट गवर्नेंस

किसी भी कंपनी को चलाने की प्रणालियों, सिद्धांतों और प्रक्रियाओं के मिले-जुले रूप को कॉरपोरेट गवर्नेंस कहते हैं। इनसे दिशानिर्देश मिलता है कि कंपनी का संचालन और उस पर नियंत्रण किस तरह किया जाए कि इससे कंपनी की गुणवत्ता बढ़े और इससे संबंधित लोगों को दीर्घकालिक तौर पर लाभ हो। यहां संबंधित लोगों के दायरे में कंपनी का निदेशक मंडल, कर्मचारी, ग्राहक और पूरा समाज शामिल है। इस तरह से कंपनी का प्रबंधन अन्य सभी लोगों के लिए ट्रस्टी की भूमिका में आ जाता है। 

चालू खाता (current account)

 चालू खाता (current account)

किसी देश का चालू खाते के तहत दृश्य या मूर्त(visible)और अदृश्य या अमूर्त (invisible) ट्रेड आता है। वस्तुओं () के निर्यात और आयात को दृश्य या मूर्त ट्रेड कहते हैं। बैंकिंग और इंश्योरेंस जैसी सेवाओं के निर्यात और आयात से होने वाली आय और ख़र्च एवं निवेश पर प्राप्त लाभ और विदेशों में काम करने वाले लोगों द्वारा भेजा जाने वाला नगद (remittance) अदृश्य या अमूर्त ट्रेड के अन्तर्गत आते हैं। यह किसी देश के भुगतान संतुलन (balance of payments) का एक भाग होता है जबकि दूसरा भाग पूँजीगत खाता (capital account) होता है । चालू खाता मूलतः सर्वविदित व्यापार संतुलन(balance of trade) ही है ।  

चालू खाते का घाटा (current account) : जब किसी देश द्वारा वस्तुओं, सेवाओं का कुल आयात और नकद हस्तांतरण  देश से होने वाले वस्तुओं, सेवाओं के कुल निर्यात और नकद हस्तांतरण से अधिक हो जाता है तो इसे का चालू खाते का घाटा(करंट अकाउंट डेफिसिट ) कहा जाता है । आम तौर पर जीडीपी के पर्सेंटेज के रूप में इसे बताया जाता है। 

चालू खाते का घाटा का मतलब है- देश से विदेशी मुद्रा का नेट आउटफ्लो। भारत के मामले में इसका संबंध डॉलर से है। अगर विदेशी मुद्रा का इनफ्लो इस डेफिसिट को पाटने में नाकाम रहता है, तो देश के विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स) में कमी आनी शुरू हो जाती है। इसलिए जिस देश में करंट अकाउंट डेफिसिट की समस्या होती है, उसे कैपिटल फ्लो आकर्षित करने के उपाय करने पड़ते हैं। यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में हो सकता है। हालांकि, जब कैपिटल फ्लो डेफिसिट को पूरा करने के लिहाज से अपर्याप्त रहता है, तो देश की करंसी में इस डर से कमजोरी आने लगती है कि उसे इंटरनैशनल लायबिलिटीज चुकाने में दिक्कत आ सकती है या मौजूदा आयात का बिल चुकाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए भारत के मामले में जीडीपी के 2.5 फीसदी से ज्यादा करंट अकाउंट डेफिसिट को चिंताजनक माना जाता है। पिछले वित्त वर्ष में कैपिटल इनफ्लो ज्यादा रहने के बावजूद, ज्यादा करंट अकाउंट डेफिसिट के चलते भारत को कुल बैलंस ऑफ पेमेंट में डेफिसिट का सामना करना पड़ सकता है। 

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production -IIP)

 

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production -IIP)

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक(आईआईपी) किसी विशेष समयांतराल में किसी आधार अवधि के सापेक्ष औद्योगिक उत्पादन की स्थिति को व्यक्त करता है । दूसरे शब्दों में किसी आधार अवधि के सापेक्ष यह किसी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वृद्धि को व्यक्त करता है । भारत में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक एक कंपोजिट इंडिकेटर है जो लघु अवधि में औद्योगिक उत्पादन में हुए बदलाव को मापता है । भारत में इसकी गणना प्रति माह की जाती है जिसके लिए आधार वर्ष 2004-05 है। किसी महीने की आईआईपी उस महीने के छह हफ्ते के अंदर जारी किया जाता है। आईआईपी के अनुमान के लिए 15 एजेंसियों से आंकड़े जुटाए जाते हैं। इनमें औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग(), भारतीय खनन ब्यूरो, केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन और केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण शामिल हैं। यह जरूरी नहीं है कि किसी खास महीने का सूचकांक तैयार करते समय उत्पादन से संबंधित सभी आंकड़े मौजूद हों, इसलिए पहले अस्थाई (प्रोविजनल) सूचकांक तैयार करने के बाद जारी कर दिया जाता है, बाद के महीनों में इसमें दो बार संशोधन करके वास्तविक सूचकांक जारी किया जाता है।

सबसे पहले 1937 को आधार वर्ष मानते हुई औद्योगिक उत्पादन सूचकांक तैयार किया गया था। इसमें 15 उद्योगों को शामिल किया गया था। तब से अब तक इसमें कम से कम सात बार संशोधन किया जा चुका है। इंडेक्स को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आधार वर्ष और इसमें शामिल उत्पादों में बदलाव किया गया है। सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी किए गए ताजा मानकों के मुताबिक किसी उत्पाद के इसमें शामिल किए जाने के लिए प्रमुख शर्त यह है कि वस्तु के उत्पादन के स्तर पर उसके उत्पादन का कुल मूल्य कम से कम 80 करोड़ रुपए होना चाहिए। इसके अलावा यह भी शर्त है कि वस्तु के उत्पादन के मासिक आंकड़े लगातार उपलब्ध होने चाहिए। इंडेक्स में शामिल वस्तुओं को तीन समूहों-माइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग और इलेक्ट्रिसिटी में बांटा जाता है। फिर इन्हें उप-श्रेणियों मसलन-बेसिक गुड्स, कैपिटल गुड्स, इंटरमीडिएट गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स में बांटा जाता है।

एचएनआई(अधिक शुद्ध संपति वाले लोग )

 एचएनआई(अधिक शुद्ध संपति वाले लोग )

जिन व्यक्तियों या परिवारों के पास 10,00000 डॉलर से अधिक की निवेश लायक रकम होती है वे बड़े निवेशक कहलाते यानी एचएनाई कहलाते हैं। इसमें उस रियल एस्टेट प्रॉपर्टी की कीमत को शामिल नहीं किया जाता, जिनमें वे रहते हैं। इसके अलावा, अन्य उपभोग की दूसरी वस्तुएँ भी इसमें शामिल नहीं होती। अधिक शुद्ध संपति से तात्पर्य तरल (liquid) रूप उपलब्ध संपति से है । निजी वेल्थ प्रबन्धकों द्वारा ऐसे बड़े निवेशकों की काफी पूछ होती है ।  

ओपन ऑफर 

यह द्वितीयक बाजार अर्थात एक्सचेंज में पहले से सूचीबद्ध किसी कंपनी के लिए रकम जुटाने का एक जरिया है, जिसमें कंपनी अपने शेयरधारकों को मौजूदा बाजार भाव से कम पर शेयरों की खरीद के लिए प्रस्ताव करती है। राइट्स इश्यू से यह इस मायने में अलग होता है कि शेयरधारक राइट्स में मिले शेयरों को तुरंत बाजार में बेच सकते हैं, लेकिन ओपन ऑफर में मिले शेयरों को तुरंत नहीं बेचा जा सकता। कुछ निवेशक द्वितीयक बाजार में ऐसे प्रस्ताव को अच्छी खबर नहीं मानती हैं क्योंकि इससे शेयरों के कमजोर होने और कीमतों के काफी अधिक हो जाने का संकेत मिलता है ।

ओपन इंडेड म्यूचुअल फंड (Open Ended Mutual Fund)

ओपन इंडेड म्यूचुअल फंड (Open Ended Mutual Fund) : ऐसे म्यूचुअल फंड जिसमें कोई भी निवेशक फंड की अवधि के दौरान किसी भी समय पैसा लगा सकता है और पैसा निकाल सकता है । निवेशक को निवेश करने के बदले म्यूचुअल फंड के यूनिट(जिसे फंड शेयर भी कहा जाता है) मिलते हैं जिसे वह कभी भी फंड को वापस बेच सकता है । म्यूचुअल फंड के यूनिट का बाजार भाव(NV) प्रतिदिन बदलता रहता है और कोई निवेशक जिस दिन फंड का यूनिट खरीदता है या फ़ंड में निवेश करता है उस दिन के बाजार भाव के हिसाब से ही उसे यूनिट मिलते हैं।  ऐसे फ़ंडों की कोई परिपक्वता अवधि निश्चित नहीं होती। लेकिन यदि फ़ंड मैनेजर यह समझता है कि फ़ंड का कुल परिसंपत्ति (एसेट) इतनी अधिक हो गयी है कि उसके उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से पूरा नहीं किया जा सकता है तो अत्यंत विषम परिस्थिति में नए निवेशकों के लिए बंद कर दिया जाता है या पुराने निवेशकों के नए निवेश पर भी रोक लगा दिया जाता है ।

ओवरनाइट लोन (Overnight Loan) : एक बैंक द्वारा दूसरे बैंक को काफी कम अवधि के लिए दिए लोन को ओवरनाइट लोन कहा जाता है । अर्थात एक बैंक द्वारा दूसरे बैंक को सिर्फ रात भर(24 घंटे) के लिए दिया गया लोन ओवरनाइट लोन कहलाता है। यह लोन सुबह बैंक को वापस मिल जाता है।



अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीद (American Depositary Receipt - ADR)

 

अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीद (American Depositary Receipt - ADR)

यह किसी अमेरिकी डिपॉजिटरी बैंक द्वारा जारी किए गए समझौतापरक प्रमाण-पत्र हैं जो अमेरिकी एक्सचेंज में ट्रेड होने वाले किसी विदेशी स्टॉक(गैर-अमेरिकी कंपनी) के एक या आधी शेयरों का या उसके एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। एडीआर का ट्रेड अन्य शेयरों की तरह ही होता है। अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीद(एडीआर) को अमेरिकी डॉलर व्यक्त किया जाता है जिसकी वास्तविक सिक्योरिटी विदेशी अमेरिकी वित्तीय संस्थाओं के पास होती है । यह विदेशी कंपनी के शेयर खरीदने का सबसे बेहतरीन जरिया है जिसका कोई भी लाभांश (dividend) और पूंजीगत वृद्धि अमेरिकी डॉलर में प्राप्त होता है । यदि कोई निवेशक एडीआर लेता है तो वह उस विदेशी स्टॉक, जिसका एडीआर प्रतिनिधित्व करता है, को प्राप्त करने का अधिकारी होता है। अमेरिकी निवेशक एडीआर लेना अधिक सुविधाजनक मानते हैं । एडीआर की कीमत अक्सर उस विदेशी स्टॉक की कीमत के आसपास ही होती है । लेकिन एडीआर उस देश,हाँ की कंपनी है, में मुद्राओं से जुड़े और आर्थिक एवं राजनीतिक जोखिमों को खत्म नहीं करता है । जैसे कि किसी भारतीय कंपनी का एडीआर भारतीय मुद्रा रुपये और भारतीय आर्थिक एवं राजनीतिक हलचलों से मुक्त नहीं होता है । एडीआर धारकों को लेकर डिपॉजिटरी बैंक की अनेक जिम्मेदारियाँ होती हैं । डिपॉजिटरी बैंक बैंक ऑफ न्यूयार्क सबसे बड़ा डिपॉजिटरी बैंक है । सबसे पहले एडीआर 1927 में जेपी मॉर्गन द्वारा ब्रिटेन की रीटेलर सेलफ्रीज के लिए जारी किया गया ।


अमेरिकी डिपॉजिटरी शेयर

आमतौर पर एडीआर और एडीएस एक ही माने जाते हैं। अमेरिकी एक्सचेंज में ट्रेड होने वाले किसी विदेशी स्टॉक(गैर-अमेरिकी कंपनी) के शेयरों का का प्रतिनिधित्व करने वाले अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीद को ही अमेरिकी डिपॉजिटरी शेयर कहा जाता है । लेकिन अंतर सिर्फ यह है कि एडीएस वास्तविक शेयर कारोबार की तरह है, जबकि एडीआर के तहत कई एडीएस हो सकते हैं।