शंकर का जगत विचार..... 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’
शंकराचार्य के अनुसार पारमार्थिक
दृष्टिकोण से 'ब्रह्म
सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः’ अर्थात् ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है और जगत
मिथ्या है |
यहाँ जगत को मिथ्या कहा गया है क्योंकि इसके
अनेक कारण है :-
- शंकर के अनुसार जो सत् और असत् से विलक्षण है, वह मिथ्या है | जगत इस रूप में मिथ्या है क्योंकि जगत सत् नहीं है क्योंकि परमार्थ के ज्ञान से इसका खंडन हो जाता है | जगत बंध्या-पुत्र की भांति असत् भी नहीं है क्योंकि इसकी प्रतीति होती है | अतः जगत मिथ्या है |
- परवर्ती ज्ञान से बाधित होता है वह मिथ्या है-ज्ञान निवत्तर्यत्व मिथ्यात्व| जगत भी ब्रह्म ज्ञान से बाधित हो जाता है | अतः जगत मिथ्या है |
- जो सत् से भिन्न ज्ञान होता है वह मिथ्या होता है-सत् विविक्त्वं मिथ्यात्व | सत् त्रिकालाबाधित नहीं होता है जबकि जगत त्रिकालाबाधित होता है| इसलिए जगत मिथ्या है |
- शंकर अध्यासवाद के आधार पर भी जगत का मिथ्यात्व सिद्ध करते है | अध्यास अतत् में तत् की प्रतीति या अध्यारोप है, अर्थात् जो वस्तु जहाँ नहीं है, वहां उसका अनुभव होना अध्यास है | शंकर के अनुसार पारमार्थिक दृष्टिकोण से ब्रह्म की ही एकमात्र सत्ता है | परन्तु अज्ञान या माया के कारण ब्रह्म के स्थान पर जगत का ज्ञान होने लगता है | जिसप्रकार कोई रस्सी को भ्रमवश सर्प समझ लेता है| उसी प्रकार जीव अविद्या के कारण ब्रह्म के स्थान पर जगत का अनुभव करने लगता है जबकि जगत वस्तुतः मिथ्या है |
- शंकर का जगत विषयक विचार ब्रह्मविवर्तवाद भी कहलाता है | इसके जगत ब्रह्मा का वास्तविक परिणाम नहीं है, जैसा कि रामानुज मानते है | जगत ब्रह्म का विवर्त मात्र है | चूकि ब्रह्मा(सत्) अपरिवर्तनशील है | अतः जो कुछ भी कार्यभाव प्रतीत होता है, वह अविद्या स्वरूप है, वह मिथ्या है
शंकराचार्य के अनुसार सत् के तीन स्तर हैं :-
1.
प्रतिभाषिक
2.
व्यावहारिक
3.
पारमार्थिक
इसमें जगत व्यावहारिक दृष्टिकोण से सत् है | वह
बंध्या-पुत्र की भांति असत नहीं है |
इस जगत का अभिन्ननिमित्तोपादान कारक ईश्वर है |
ईश्वर अपनी मायाशक्ति के द्वारा इसकी रचना करता है| शंकराचार्य ईश्वर से जगत
उत्पत्ति की व्याख्या पंचीकरण विधि के द्वारा करते है | इसके अनुसार सबसे पहले
पाँच सूक्ष्म तत्वों की उत्पत्ति होती है | तत्पश्चात इनके संयोग से पाँच स्थूल
तत्वों का निर्माण होता है-आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी |
यह जगत ईश्वर की लीलामात्र है | इसकी रचना के पीछे
कोई ईश्वरीय प्रयोजन या इच्छा निहित नहीं है | यदि जगत को ईश्वर का प्रयोजन माना
जाय तो इससे ईश्वर का ईश्वरत्व खंडित होगा |
विद्यारण्य स्वामी अनुसार वस्तुतः यह जगत
पारमार्थिक दृष्टि से मिथ्या है, व्यावहारिक दृष्टिकोण से सत् है और तार्किक
दृष्टिकोण से अनिर्वचनीय है |
No comments:
Post a Comment