Sunday, 23 March 2025

'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’

 शंकर का जगत विचार..... 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’

शंकराचार्य के अनुसार पारमार्थिक दृष्टिकोण से 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः’ अर्थात् ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है और जगत मिथ्या है |

 यहाँ जगत को मिथ्या कहा गया है क्योंकि इसके अनेक कारण है :-

  •   शंकर के अनुसार जो सत् और असत् से विलक्षण है, वह मिथ्या है | जगत इस रूप में मिथ्या है क्योंकि जगत सत् नहीं है क्योंकि परमार्थ के ज्ञान से इसका खंडन हो जाता है | जगत बंध्या-पुत्र की भांति असत् भी नहीं है क्योंकि इसकी प्रतीति होती है | अतः जगत मिथ्या है |
  •  परवर्ती ज्ञान से बाधित होता है वह मिथ्या है-ज्ञान निवत्तर्यत्व मिथ्यात्व| जगत भी ब्रह्म ज्ञान से बाधित हो जाता है | अतः जगत मिथ्या है |
  • जो सत् से भिन्न ज्ञान होता है वह मिथ्या होता है-सत् विविक्त्वं मिथ्यात्व  | सत् त्रिकालाबाधित नहीं होता है जबकि जगत त्रिकालाबाधित होता है| इसलिए जगत मिथ्या है | 
  •  शंकर अध्यासवाद के आधार पर भी जगत का मिथ्यात्व सिद्ध करते है | अध्यास अतत् में तत् की प्रतीति या अध्यारोप है, अर्थात् जो वस्तु जहाँ नहीं है, वहां उसका अनुभव होना अध्यास है | शंकर के अनुसार पारमार्थिक दृष्टिकोण से ब्रह्म की ही एकमात्र सत्ता है | परन्तु अज्ञान या माया के कारण ब्रह्म के स्थान पर जगत का ज्ञान होने लगता है | जिसप्रकार कोई रस्सी को भ्रमवश सर्प समझ लेता है| उसी प्रकार जीव अविद्या के कारण ब्रह्म के स्थान पर जगत का अनुभव करने लगता है जबकि जगत वस्तुतः मिथ्या है |
  •  शंकर का जगत विषयक विचार ब्रह्मविवर्तवाद भी कहलाता है | इसके जगत ब्रह्मा का वास्तविक परिणाम नहीं है, जैसा कि रामानुज मानते है | जगत ब्रह्म का विवर्त मात्र है | चूकि ब्रह्मा(सत्) अपरिवर्तनशील है | अतः जो कुछ भी कार्यभाव प्रतीत होता है, वह अविद्या स्वरूप है, वह मिथ्या है

शंकराचार्य के अनुसार सत् के तीन स्तर हैं :-

1.       प्रतिभाषिक

2.       व्यावहारिक

3.       पारमार्थिक 

इसमें जगत व्यावहारिक दृष्टिकोण से सत् है | वह बंध्या-पुत्र की भांति असत नहीं है |

इस जगत का अभिन्ननिमित्तोपादान कारक ईश्वर है | ईश्वर अपनी मायाशक्ति के द्वारा इसकी रचना करता है| शंकराचार्य ईश्वर से जगत उत्पत्ति की व्याख्या पंचीकरण विधि के द्वारा करते है | इसके अनुसार सबसे पहले पाँच सूक्ष्म तत्वों की उत्पत्ति होती है | तत्पश्चात इनके संयोग से पाँच स्थूल तत्वों का निर्माण होता है-आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी |

यह जगत ईश्वर की लीलामात्र है | इसकी रचना के पीछे कोई ईश्वरीय प्रयोजन या इच्छा निहित नहीं है | यदि जगत को ईश्वर का प्रयोजन माना जाय तो इससे ईश्वर का ईश्वरत्व खंडित होगा |

विद्यारण्य स्वामी अनुसार वस्तुतः यह जगत पारमार्थिक दृष्टि से मिथ्या है, व्यावहारिक दृष्टिकोण से सत् है और तार्किक दृष्टिकोण से अनिर्वचनीय है |  

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