Wednesday, 18 June 2025

बर्टेंड रसेल का विवरण संबंधी सिद्धांत....दार्शनिक विश्लेषण के प्रतिमान

बर्टेंड रसेल के तार्किक और ज्ञानमीमांसीय में Theory of Description का महत्त्वपूर्ण स्थान है | इस सिद्धांत का संबंध “वर्णनात्मक पद समूह” (Descriptive) की तार्किक व्याख्या और स्पष्टीकरण से है | “सब कुछ”, “कुछ नहीं”, “कुछ”, “वेवरली का लेखक”, “फ़्रांस का वर्तमान राजा” आदि वर्णनात्मक पद समूह के उदाहरण हैं | रसेल अपने वर्णन सिद्धांत के द्वारा इन वर्णनात्मक पद समूहों के तार्किक स्वरुप को स्पष्ट कर उनके कारण उत्पन्न भाषाई भ्रांतियों एवं गलत निष्कर्षों का निराकरण करते हैं|

वर्णन सिद्धांत के दो पक्ष हैं-

    I.     क्या नामों(names) की तरह वर्णनात्मक पद समूह भी किसी व्यक्ति या वस्तु को निर्देशित करते हैं

   II.     क्या “वर्णनात्मक पद समूह” अपने आप में सार्थक हैं |

रसेल के अनुसार वर्णनात्मक पद समूह नाम की तरह किसी व्यक्ति या वस्तु को निर्देशित नहीं करते हैं | वे विवरण देने वाले वाक्यांश हैं | यह अपने आप में किसी अर्थ के सूचक नहीं हैं |

रसेल से माआंग और फ्रेगे ने भी वर्णनात्मक पद समूहों या विवरणात्मक वाक्यांश की व्याख्या का प्रयास किया था | माआंग के अनुसार प्रत्येक वर्णनात्मक पद समूह किसी न किसी वस्तु को निर्देशित अवश्य करता हैं | यहाँ यह प्रश्न उठता है कि “सोने का पहाड़” आदि वर्णनात्मक पद समूह किसी को संकेतित करते हैं |

माआंग कहते है कि ये वाक्यांश भी निर्देश का काम करते हैं, जिनका अस्तित्व तो नहीं है, परन्तु सत्व(substance) जरूर है | इस पर रसेल का कहना है कि माआंग की बातों को मानने पर विश्व में असंख्य विपरीत प्रवृति वाली वस्तुओं को मानना पड़ेगा जो कि ओखम रेजर की अवधारणा के विपरीत होगा | पुनः यहाँ अस्तित्व और सत्व के भेद भी स्पष्ट नहीं है | फ्रेगे के अनुसार, जो वाक्यांश किसी वास्तविक वस्तु को निर्देशित नहीं करते हैं, वे रिक्त वर्ग (Null Class) को निर्देशित करते हैं | इस पर रसेल का कहना है कि ऐसे समाधान को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यदि सोने का पहाड़ और बंध्या-पुत्र दोनों Null Class को निर्देशित करते हैं तो फिर दोनों में अंतर का आधार समाप्त हो जाता है | एक वैचारिक है तो दूसरा अवैचारिक|

रसेल के सामने यह समस्या उभर कर आती है कि आखिर वर्णनात्मक पद समूह के गलत प्रयोग से उत्पन्न समस्या का निराकरण कैसे किया जाए ? 1) वर्णनात्मक पद समूह वाक्य के अर्थ निर्धारण में कठिनाइयाँ उत्पन्न करते हैं| 2) इनसे गलत सिद्धांतों की उत्पति हो जाती है |

 यहाँ उल्लेखनीय है कि रसेल अर्थ के निर्देशात्मक सिद्धांत को मानते हुए भी वर्णनात्मक पद समूहों का युक्तिसंगत विवेचन करने का प्रयास करते हैं | रसेल अपने वर्णन सिद्धांत के द्वारा ऐसी ही समस्याओं के वास्तविक स्वरुप को उजागर कर उनका निराकरण करते हैं | रसेल का यह मानना है कि जगत की व्याख्या के लिए अनावश्यक वस्तुओं को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए |

रसेल के अनुसार वर्णनात्मक पद समूह “नाम” नहीं हैं क्योंकि अपने आप में वे किसी वस्तु या व्यक्ति को निर्देशित नहीं करते हैं | व्याकरण की दृष्टि से वे नाम की तरह प्रतीत होते हैं क्योंकि नाम की तरह ही इनका प्रयोग भी उद्देश्य के स्थान पर होता है | परन्तु ये नामों की तरह तार्किक उद्देश्य(Logical Subject) नहीं हैं | नाम व्याकरणिक उद्देश्य और तार्किक उद्देश्य दोनों होता है | इसलिए नाम अपने आप में सार्थक होते हैं | दूसरी ओर वर्णनात्मक पद समूह को विश्लेषण के माध्यम से वाक्य के अर्थ में परिवर्तन किए बिना ही वाक्य से हटाया जा सकता है | वे वस्तुतः अपूर्ण प्रतीक हैं | अपूर्ण प्रतीक वे माने जाते हैं जिनका अपने आप में कोई अर्थ नहीं होता है | ये किसी वस्तु को निर्देशित नहीं करते हैं, परन्तु जहाँ इनका प्रयोग किया जाता है, वहाँ ये महत्त्व रखते हैं|

रसेल इसे स्पष्ट करने के लिए तीन प्रकार के वर्णनात्मक पद समूह की परीक्षा करते हैं –

1.       आद्य वर्णनात्मक वाक्यांश ( Primitive descriptive description)

2.       अनिश्चित वर्णनात्मक वाक्यांश ( Indefinite descriptive description)

3.       निश्चित वर्णनात्मक वाक्यांश ( Definite descriptive description)

1.   आद्य वर्णनात्मक वाक्यांश- रसेल इसके अंतर्गत “nothing”, “Everything”, “कुछ नहीं”, “सबकुछ” आदि से जुड़े वाक्यों को रखते है | रसेल के अनुसार इनसे कोई विशेष समस्या उत्पन्न नहीं होती है | परिमाणक(Quantifier) का प्रयोग कर इन्हें वाक्यों से बाहर निकाला जा सकता है(वाक्य के अर्थ में प्रयोग किए बिना ही)| जैसे- कुछ वस्तुएं मेज हैं | यहाँ कुछ का तात्पर्य कम से कम एक ऐसी वस्तु से है जो मेज है|  

2.   अनिश्चित वर्णनात्मक वाक्यांश- इसके अंतर्गत “A”, “An” आदि से जुड़े हुए वाक्य आते हैं, जो अनेकार्थ ढंग से कुछ सूचित करने का दावा करते हैं | जैसे-मैं एक मनुष्य से मिला | यहाँ ‘एक मनुष्य’ वाक्यांश अपने आप में निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को निर्देशित नहीं करता है | इस वाक्य में केवल इतना ही कहा गया है कि “ यह असत्य नहीं है कि मैं जिस X से मिला वह मनुष्य है|”

3.   निश्चित वर्णनात्मक वाक्यांश- इसके अंतर्गत “The” से युक्त वाक्यांश आते हैं (The so and as)| दार्शनिक जगत की समस्याएँ मुख्यतः निश्चित वर्णनात्मक पद समूह से संबंधित हैं | रसेल का भी ध्यान मुख्य रूप से निश्चित विवरणों पर केन्द्रित है | इसके अंतर्गत दो प्रकार के वाक्यांश आते हैं-(1) वे जो निश्चित सूचना देने का दावा करते हैं और स्वयं में सत्य हैं | (2) वे जो निश्चित सूचना देने का दावा तो करते हैं परन्तु अपने आप में असत्य हैं |

प्रथम उदाहरण के रूप में रसेल “वेवरली का लेखक स्कॉट है|” को लेता है | यहाँ ‘वेवरली का लेखक’ वाक्यांश किसी व्यक्ति को निर्देशित नहीं करता | न भावात्मक अर्थ में और न निषेधात्मक अर्थ में | यदि ‘वेवरली का लेखक’ वाक्यांश का निर्देश स्कॉट से लिया जाए तो फिर वैसी स्थिति में इस वाक्य का स्वरूप होगा-“स्कॉट स्कॉट है” जो पुनुरुक्ति होगा | इससे कोई सूचना नहीं मिलती जबकि वेवरली का लेखक स्कॉट है, एक सूचनात्मक वाक्य है | स्पष्ट है कि इस वाक्यांश का भावात्मक निर्देशन नहीं माना जा सकता |

यदि वेवरली का लेखक स्कॉट से भिन्न माना जाए, अर्थात् निषेधात्मक निर्देशन माना जाए तो फिर वैसी स्थिति में इस वाक्य का अर्थ होगा-“स्कॉट स्कॉट से भिन्न है” | यहाँ व्याघात उत्पन्न होता है, जबकि लिया गया उदाहरण व्याघात नहीं है | इसप्रकार रसेल इस कठिनाई से निकलते हुए यह कहते है कि ‘वेवरली का लेखक’ वाक्यांश अपने आप में किसी व्यक्ति को निर्देशित नहीं करता | विश्लेषण के द्वारा वाक्य का अर्थ परिवर्तन किए बिना ही इसे वाक्य से हटाया जा सकता हैं | इस वाक्य का विश्लेषण करने पर तीन वाक्य उभरते हैं-

(1)     कम से कम एक व्यक्ति ने वेवरली लिखी |

(2)     अधिक से अधिक एक व्यक्ति ने वेवरली लिखी |

(3)     जिसने भी वेवरली लिखी, वह स्कॉट है |

यहाँ विश्लेषण के माध्यम से ‘वेवरली का लेखक’ वाक्यांश को हटा दिया गया है | फिर भी वाक्य का अर्थ वही है|

अब रसेल वैसे वाक्यांशों का परीक्षण है जो ऐसी वस्तुओं की सूचना देने का दावा करते हैं, जिनका अस्तित्व नहीं है | जो निश्चित सूचना देने का दावा तो करते हैं लेकिन अपने आप में असत्य होते हैं|

              जैसे- फ्रांस का वर्तमान राजा गंजा है |

रसेल इसका विश्लेषण इस प्रकार करते हैं

1.       कम से कम एक व्यक्ति फ़्रांस पर शासन करता है 

2.       अधिक से अधिक एक व्यक्ति फ़्रांस पर शासन करता है

3.       जो भी व्यक्ति फ़्रांस पर शासन करता है, वह गंजा है  

यहाँ प्रथम वाक्य एक ऐसे व्यक्ति के अस्तित्व की मांग करता है जो फ़्रांस पर शासन करता हैं | परन्तु फ़्रांस में अब राजतन्त्र नहीं है | अतः यह वाक्य असत्य है| चूकि तीनों वाक्य एक व्यक्ति द्वारा फ़्रांस पर शासन करने की बात करते है, इसलिए तीनों वाक्य असत्य है | इस प्रकार रसेल वर्णनात्मक पद समूहों के तार्किक स्वरूप को स्पष्ट कर यह दिखाया है कि वर्णनात्मक पद समूहों के आधार पर अनेक प्रकार की वस्तुओं की सिद्धि का दावा भ्रामक है |

केवल एक व्यक्ति है जो फ़्रांस पर शासन करता है और यदि कोई फ़्रांस पर शासन करता है तो वह गंजा है | रसेल के अनुसार इस कथन का पूर्ववर्ती भाग असत है | अतः संयोजन से जुड़े होने के कारण पूरा कथन असत्य हो जाता है, क्योंकि रसेल के अनुसार किसी वाक्य का उद्देश्य उस कथन का अभिन्न भाग होता है और यदि वह अस्तित्व में नहीं है तो पूरा कथन असत्य हो जाता है |

स्ट्रॉसन ने अपने "On Referring" रसेल के वर्णन सिद्धांत का खंडन किया है | स्ट्रॉसन का यह कहना है कि रसेल के इस सिद्धांत में कुछ पूर्व मान्यताएं है जो गलत है |

1.   निर्देशात्मक शब्द और निर्देशन की क्रिया में अंतर- रसेल ने अर्थ को अर्थ का निर्देशात्मक सिद्धांत माना | इस पर स्ट्रॉसन का कहना है कि कोई शब्द अपने आप में निर्देशन का कार्य नहीं करता | शब्द निर्देशन का कार्य तभी करता है जब भाषा का प्रयोग करने वाले इसका प्रयोग निर्देश के लिए करते हैं | कहने का आशय यह है कि रसेल ने निर्देशात्मक शब्दों और निर्देशन की क्रिया में अंतर नहीं किया है, स्ट्रॉसन इसमें अंतर करते हैं |

2.   अर्थ का वस्तु से तादात्मय नहीं-स्ट्रॉसन के अनुसार रसेल ने निर्देशन के साथ तादात्मय स्थापित किया है जो दोषपूर्ण है | स्ट्रॉसन का कहना है कि वस्तु का निर्देशन भले ही शब्द के द्वारा किया जाए, परन्तु शब्द का अर्थ वस्तु नहीं है | यदि मेज शब्द का अर्थ मेज वस्तु है तो मेज टूट गया का क्या आशय हो सकता है | हम ऐसा तो नहीं कह सकते कि मेज का अर्थ टूट गया |

3.   वाक्य और कथन में अंतर-स्ट्रॉसन के अनुसार वाक्य और कथन में अंतर होता है | वाक्य अपने आप में सार्थक या निरर्थक होते हैं, सत्य या असत्य नहीं| जब वाक्य का प्रयोग कुछ कहने के लिए अर्थात कथन के लिए होता है तो वह कथन सत्य या असत्य होता है | रसेल ने इन दोनों के बीच अंतर नहीं किया है | वे सत्यता और सार्थकता दोनों को एकाकार कर देते हैं | दूसरे शब्दों में वे वाक्य और कथन में अंतर नहीं करते हैं |

4.   रसेल यह मानते हैं कि अस्तित्व का कथन वाक्य के कथन का एक भाग है (अस्तित्ववाचक पूर्व मान्यता)| स्ट्रॉसन इसका खंडन करते हैं | इनके अनुसार अगर स्पष्ट रूप से अस्तित्ववाचक कथन नहीं है तो अस्तित्व का कथन करना उसके अर्थ का कथन नहीं है | स्ट्रॉसन के अनुसार अस्तित्व को पहले से मान लेने पर ही वाक्य का प्रयोग किया जा सकता है | स्ट्रॉसन कहते है कि ‘फ़्रांस का वर्तमान राजा गंजा है’, इस कथन का तभी प्रयोग किया जा सकता है, जब फ़्रांस में कोई राजा हो | अगर वर्तमान में ऐसा नहीं है तो इस कथन का प्रयोग हम नहीं कर सकते |

इन तमाम कमियों के बावजूद समकालीन दर्शन में रसेल के वर्णन सिद्धांत की प्रतिष्ठा दार्शनिक विश्लेषण के प्रतिमान के रूप में की गई है | अनाकारिक तर्कशास्त्र को मानने वाले जो साधारण भाषा के समर्थक है, वे स्ट्रॉसन के मत का तो समर्थन करते हैं, परन्तु आकारिक तर्कशास्त्र को मानने वाले, जिनके अनुसार साधारण भाषा दोषपूर्ण है, वे रसेल के मत को स्वीकार करते हैं |  

 

    

 

 

 

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