Monday, 16 June 2025

अनिवार्य प्रतिज्ञप्तियों का भाषाई सिद्धांत

अनिवार्य प्रतिज्ञप्तियों के भाषाई सिद्धांत का संबंध तार्किक प्रत्यक्षवादियों से हैं | चूकि यहाँ अनिवार्य प्रतिज्ञप्तियों की व्याख्या भाषाई आधार ( शब्दों के अर्थ के आधार ) पर की जाती है , इसलिए इसे अनिवार्य प्रतिज्ञप्तियों का भाषाई सिद्धांत कहा गया है |

तार्किक प्रत्यक्षवाद भी एक प्रकार अनुभववादी दर्शन है | अनुभववाद अर्थ और ज्ञान दोनों की व्याख्या इन्द्रिय अनुभव के आधार पर करता है | अनुभव से प्राप्त ज्ञान संभाव्य होता है, वहाँ अनिवार्यता नहीं होती है| अतः ऐसी स्थिति में तार्किक भाववादियों के समक्ष यह समस्या खड़ी होती है कि गणित और तर्कशास्त्र, जहाँ अनिवार्य और एवं सार्वभौम ज्ञान की प्राप्ति होती है, उसकी व्याख्या कैसे की जाए ? अतः अनिवार्य प्रतिज्ञप्ति तार्किक प्रत्यक्षवाद के लिए एक चुनौती है| अनिवार्य प्रतिज्ञप्तियों की व्याख्या करने के लिए अनुभववादियों के समक्ष दो विकल्प उभरकर सामने आते हैं :

(1) गणित और तर्कशास्त्र की प्रतिज्ञप्तियाँ भी अनुभव पर ही निर्भर हैं |

(2)  गणित और तर्कशास्त्र की प्रतिज्ञप्तियों में तथ्यात्मक अंतर्वस्तु नहीं है |

मिल पहले विकल्प को स्वीकार करते हैं मिल के अनुसार गणित और तर्कशास्त्र के कथन भी अनुभव पर आश्रित हैं | इन्हें आगमनात्मक सामान्यीकारण के माध्यम से प्राप्त किया जाता है | यहाँ मिल का यह कहना है कि हम ऐसे कथनों में अनिवार्यता इसलिए मान लेते हैं क्योंकि यहाँ इसका अपवाद नहीं दिखाई देता | ऐसे कथन अधिक दृष्टान्तों पर आधारित हैं, परन्तु वास्तव में यह भी अनुभव पर आधारित हैं |  

तार्किक भाववादियों का कहना है कि मिल का मत दोषपूर्ण है | मिल ज्ञान की उपस्थिति(आरम्भ) और ज्ञान की प्रामाणिकता में भेद नहीं कर पाते हैं | यह सही है कि उत्पति की दृष्टि से सारा ज्ञान अनुभव से प्रारंभ होता है| परन्तु अनुभव से आरम्भ कुछ ज्ञान ऐसे भी है, जिनकी प्रामाणिकता अनुभव पर निर्भर नहीं करती, उनकी प्रामाणिकता अनुभव से स्वतंत्र होती है | गणित और तर्कशास्त्र के कथन इसी श्रेणी के हैं |

कांट का मत- कांट ने सर्वप्रथम स्पष्ट रूप से संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक निर्णयों में भेद किया था | कांट के अनुसार विश्लेषणात्मक निर्णय ऐसे निर्णय हैं जिनमें विधेय, उद्देश्य में ही निहित रहता है | ऐसे निर्णयों में अनिवार्यता और सार्वभौमता होती है | इनका निषेध व्याघाती होता है | दूसरी ओर संश्लेषणात्मक निर्णय ऐसे निर्णय हैं जिनमें विधेय, उद्देश्य में निहित नहीं रहता है, उससे बाहर होता है | इसका भी निषेध संभव है | यहाँ कांट कुछ संश्लेषणात्मक निर्णयों को प्रागनुभविक के रूप में स्वीकार कर उसमें अनिवार्यता को भी मान लेता है |

तार्किक भाववादियों का मत है कि कांट द्वारा संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक में किया गया भेद तो सही है लेकिन जिस मापदंड या कसौटी के आधार पर वे यह भेद करते हैं, वह तार्किक नहीं है, गलत है | कांट के इस मत में निम्नलिखित कमियां हैं:

(1) कांट के मत की सबसे बड़ी कमी यह है कि उनके द्वारा प्रतिपादित मापदंड केवल उन्हीं निर्णयों के लिए है जो उद्देश्य-विधेय स्वरुप की है, जबकि बहुत सी प्रतिज्ञप्तियाँ इससे भिन्न रूप में भी होती हैं | जैसे-ए, बी से आगे है, बी सी आगे है तो ए सी से आगे है |

(2) कांट के अनुसार विधेय के उद्देश्य में निहित होने पर कथन विश्लेषणात्मक और निहित नहीं होने पर कथन संश्लेषणात्मक होता है | परन्तु निहित होना या नहीं होना मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है | वास्तविकता से उसका कोई संबंध नहीं है |

(3) कांट संश्लेषण और विश्लेषण के अंतर के लिए दो आधार मानते हैं-1. तार्किक आधार और 2. मनोवैज्ञानिक आधार | यहाँ कांट इन दोनों आधारों को एक ही रूप में लेकर चलने का प्रयास करते हैं, जबकि तार्किक आधार मनोवैज्ञानिक आधार से भिन्न होता है |

(4) ए. जे. एयर कांट से भिन्न अर्थ में संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक को स्वीकार करते हैं | इस अंतर का स्पष्टीकरण वे भाषाई आधार पर करते हैं | एयर के अनुसार विश्लेषणात्मक कथन ऐसे कथन है जिनकी सत्यता का निश्चय उसमें प्रयुक्त शब्दों के अर्थों के आधार पर होता है, जिनके द्वारा उनको व्यक्त किया गया है | इसकी सत्यता या असत्यता के निश्चय के लिए किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है| जैसे-सभी कुँवारे अविवाहित पुरुष हैं, त्रिभुज में तीन भुजाएं होती हैं |

संश्लेषणात्मक कथन वे कथन है जिनकी सत्यता या असत्यता का निश्चय वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थों के आधार पर न होकर इंद्रिय अनुभव द्वारा होता है | जैसे-दीवार पीली है |

इस प्रकार तार्किक भाववादियों के अनुसार दो ही प्रकार के कथन संभव हैं:-

1.   विश्लेषणात्मक प्रागनुभविक

2.   संश्लेषणात्मक आनुभविक

उल्लेखनीय है कि कांट ने कुछ संश्लेषणात्मक प्रतिज्ञप्तियों को प्रागनुभविक भी मान लिया था | तार्किक भाववादियों के अनुसार कोई भी संश्लेषणात्मक प्रतिज्ञप्ति प्रागनुभविक नहीं हो सकती है |

इस प्रकार तार्किक भाववादी यह बताते हैं कि गणित और तर्कशास्त्र की प्रतिज्ञप्तियाँ प्रागनुभविक-विश्लेषणात्मक हैं | इसप्रकार तार्किक भाववादी पहले विकल्प को स्वीकार न कर दूसरे विकल्प को स्वीकार कर लेते हैं | उनके अनुसार गणित और तर्कशास्त्र के कथनों में तथ्यात्मक अंतर्वस्तु का अभाव है | यहाँ केवल वे भाषाई अंतर्वस्तु को स्वीकार करते हैं | यहीं कारण है कि एयर कहते है कि वहीँ कथन सार्थक है, जो या तो विश्लेषणात्मक हो या अनुभव द्वारा सत्यापित |

 

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