Thursday, 12 September 2024

आलोचक के गुण

 एक अच्छे आलोचक में इन गुणों का होना आवश्यक है- सहृदयता, निष्पक्षता, साहस, सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण, इतिहास और वर्तमान का सम्यक ज्ञान, संवेदनशीलता, अध्ययनशीलता और मननशीलता।

आलोचक का सबसे प्रधान गुण सहृदयता है| आलोचक के अन्य गुण उसकी सहृदयता के रहने पर ही सहायक हो सकते है | चुकि रचना की तरह आलोचना भी पुनर्रचना होती है | अतः आलोचक में कवि या काव्य की आत्मा में प्रवेश करने की उसकी क्षमता होनी चाहिए | अर्थात् जिस भाव-भंगिमा, मुद्रा और तन्मयता के साथ कवि ने अपने काव्य की रचना की हो, उसमे उतनी ही संवेदनशीलता और सहानुभूति के साथ प्रवेश कर जानेवाला पाठक ही उस कवि का सच्चा आलोचक हो सकता है| आचार्य शुक्ल के शब्दों में आलोचक में ‘कवि की अंतर्वृतियों के सूक्ष्म व्यवच्छेद’ की क्षमता होनी चाहिए| इसके लिए आलोचक को अपने आग्रहों से मुक्त होना आवश्यक है | आलोचक के आग्रह, अहम या उसकी इच्छाएं और भावनाएं निष्पक्ष आलोचना में बाधा बनती है | किसी भी रचना के मूल्यांकन में अपनी बातों को तर्कसंगत और तथ्यपरक ढंग से रखना आलोचक के लिए आवश्यक है, भले उसकी स्थापनाएं पूर्व स्थापित मान्यताओं और सिद्धान्तों के प्रतिकूल क्यों न पड़ती हो| ऐसी स्थापनाओं के लिए आलोचक में व्यापक अध्ययन एवं देशी-विदेशी साहित्य और कलाओं का ज्ञान होना चाहिए| इसके साथ ही अतीत की घटनाओं, परिस्थितियों और परम्परा एवं वर्तमान के परिवेश का सम्यक ज्ञान होना चाहिए | वर्तमान या समकालीनता से जुड़कर ही कोई आलोचक अपनी दृष्टि को अद्यतन बनाए रखता है | आलोचक को किसी सामान्य तथ्य या तत्व तक पहुँचने की जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए बल्कि रचना के अक्षय स्रोत को बचाए रखना का गुण होना चाहिए |

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