किसी फिल्म की सफलता
का एक बड़ा पैमाना यह होता है कि उसके डायलॉग बच्चों से बूढ़ों तक, गाँव की गलियों
से शहरों के आलीशान चमचमाती भवनों तक लोगों की जुबां पर किस कदर चढ़ जाता है | फिल्म ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' का बेहद लोकप्रिय
डायलॉग 'हाउ इज द जोश' (How's the Josh) राजनीतिक हलकों से लेकर
आम जनजीवन में धूम मचा रहा है, जो महज फिल्म की सफलता को ही बयां नहीं कर रहा है
बल्कि उस संदेश का भी बयां है जो भारतीय सेना के जवानों ने अपने अदम्य साहस के साथ
दुश्मनों को उनकी कायराना हरकतों के बदले दिया था | 'हाउ इज द जोश' आज केवल देश की आम जनता की
जुबां पर ही नहीं है, बल्कि यह देश में उत्साह, साहस, त्याग, वीरता और अदम्य ऊर्जा
का 'टैग लाइन' या मुहावरा बन चुका है | देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई
बार अपने भाषणों के दौरान इस डायलॉग को दोहरा चुके हैं।
फिल्म ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ महज़ एक आम युद्ध फ़िल्म
नहीं बल्कि भारतीय सेना के शौर्य और साहस की एक अमर गाथा है जो उस मानसिकता और
नैरेटिव या प्रोपेगंडा का प्रतिवाद करती है जिसके तहत 26/11 के मुंबई हमले को हिन्दू
आतंकवाद या भगवा आतंकवाद के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने की कोशिश की जाती है |
यह फिल्म दुश्मनों को उन्ही की सरजमीं में घुसकर मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सेना
द्वारा की गई सफल कार्रवाई की दास्तां है। इसी कारण इस फिल्म को देशभर के दर्शकों से
बहुत प्यार और अपार स्नेह मिल रहा है। इस फिल्म की सफलता इसमें निहित नहीं है कि
यह देशवासियों की देशभक्ति के जज्बातों को कुरेदती है बल्कि देशवासियों में यह विश्वास जगाती है कि सेना पराक्रम करती
है और कर सकती है | इस फिल्म का उद्देश्य देशवासियों के ज़ेहन में सिहरन पैदा करना नहीं है,
बल्कि देश के टुकड़े करने वाले और उन्हें पोषित करने वाले गिरोहों को जवाब भी देना
है जो दुनिया की ताकतवर सेना के जज़्बों में भी राजनीति ढूँढने में गर्व महसूस करता
है।
हमारे देश का सदियों से यह स्वभाव रहा है कि हम कभी आक्रामक नहीं रहे हैं|
हमारा देश बहुत ही सहनशील रहा है | भारत किसी भी अन्य देश के भू-भाग पर कब्जा करने
के बारे में नहीं सोचता | हमने हमलावरों से अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए संघर्ष
किया है| लेकिन इसका हमें अक्सर नुकसान उठाना पड़ा है | यूनानियों से लेकर शकों,
कुषाणों और बाद में अरबों, तुर्कों और अंत में अंग्रेजों ने तक इस देश के हमलावर
नहीं होने और सहनशील होने का नाजायज फायदा उठाकर इस देश में कत्लो-गारद मचाया है |
इस देश का दुर्भाग्य है कि इसमें हमारे देश के आम्भियों से लेकर जयचंदों और
मीरजाफरों ने भी कम योगदान नहीं किया| ये उसी मानसिकता के लोग है जिन्होंने
सीमापार आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के बजाय हिन्दू आतंकवाद और भगवा
आतंकवाद का नैरेटिव गढ़ते और प्रचारित करते रहे है |
उरी घटना के बाद आतंकवादियों को सबक सीखाने के लिए सेना की कार्यवाही इस
मानसिकता को और सहनशीलता के मिथ को अचानक भंग कर देती है | सर्जिकल स्ट्राइक को
परदे पर उतारकर निर्देशक ने देशवासियों को विश्वास का संदेश और देशद्रोहियों एवं
दुश्मनों को सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है कि या नया हिंदुस्तान है जो घर में
घुसेगा भी और घुसकर मारेगा
भी।
फिल्म पर कई तरह के आरोप भी लग रहे हैं कि यह प्रोपेगंडा फिल्म है जो केंद्र
सरकार के एजेंडा को प्रचारित कर रही है| कुछ को फिल्म में थ्रिल नहीं दीखता है
क्योंकि सबकुछ एक्सपेक्टेड ही होता है | यह फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित है, इसका
कोई कल्पित स्क्रिप्ट नहीं है | फ़िल्मकार ने इस अत्यंत ख़ुफ़िया ऑपरेशन को फिल्माने
के लिए एक मनोरंजक कहानी गढ़ने के बजाय सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध तथ्यों का बखूबी
इस्तेमाल किया हैं। फ़िल्म को देखने से पता चलता है कि सर्जिकल स्ट्राइक कोई खेल
नहीं था जिसे आसानी से अंजाम दिया गया हो। इसके पीछे पुराने ऑपरेशन में शामिल सेना
के जवान, सैटेलाइट उपकरणों एवं ख़ुफ़िया
एजेंसियों के बीच का तालमेल, अत्याधुनिक युद्ध हथियारों के संचालन में कुशलता और जबरदस्त रणनीतिक सूझबूझ शामिल रहे हैं। इसमें
प्रक्रिया में समस्त अनएक्सपेक्टेड को एक्सपेक्टेड करने की सुविचारित योजना बनायी
गई थी | यह सही है कि सेना की सर्जिकल स्ट्राइक में कुछ भी एक्सपेक्टेड नहीं था,
लेकिन यही तो सेना की उपलब्धि है कि उसने शौर्य, साहस और सजगता से अनएक्सपेक्टेड को
एक्सपेक्टेड में बदल दिया | यदि आर्मी ऑफिसर कहता है कि ‘मेरी टीम के हर एक बंदे
को ज़िंदा वापस लाने की ज़िम्मेदारी मेरी है’ तो यह उस सर्जिकल
स्ट्राइक का पूर्व नियोजित हिस्सा था | देश के प्रधानमंत्री भी यह स्वीकार कर चुके
है कि उन्होंने सेना को निर्देश दे रखा था कि सर्जिकल स्ट्राइक की योजना सफल हो या
न हो, सभी को सूर्योदय से पहले वापस आ जाना है |
यह फिल्म उस दोषारोपण का भी प्रतिवाद करती है जो मेजर नितिन गोगोई द्वारा
कश्मीरी पत्थरबाजों से अपने साथी जवानों के सुरक्षा के लिए एक पत्थरबाज को जीप के
बोनट पर बांधने को भारतीय सेना पर मानवाधिकारों का हनन ठहराती है | यह फिल्म 2014
में रिलीज हुई 'हैदर' फिल्म में कश्मीरी समाज के भारतीय सेना द्वारा पीड़ित होने
के कथित आरोप में देशभक्ति देखने वाली मानसिकता पर तुषारापात करती है |
संघर्ष के दृश्यों को फिल्माने के लिए बाहुबली की तरह ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' में वीएफएक्स तकनीक का लाजवाब
इस्तेमाल हुआ हैं। जिसके कारण फ़िल्म देखते वक़्त आप उसी जज़्बात और रोमाँच से
स्वयं को बंधा अनुभव करते हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक के समय भारतीय सेना के जवानों
के भीतर होता है | अब यदि देश की सेना के शौर्य, साहस और दक्षता को दिखाना जहरीला
राष्ट्रवाद, जैसा कि कुछ कथित बौद्धिकों के पेट में ऐठन होती है, तो ऐसे जहर का
होना देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और अस्मिता के लिए उतना ही अनिवार्य है जितना
साँस लेने के लिए ऑक्सीजन की | ऐसी स्थिति में ‘उरी: द सर्जिकल
स्ट्राइक' फिल्म को लेकर लोगों में जो जबर्दस्त आकर्षण है
वह कोई कोरी भावुकता नहीं बल्कि देश की जनता का उस सेना के अद्भुत और अदम्य जज्बे को
सैलूट है जो अपने फ़र्ज़ के लिए हर वक्त कुर्बान रहता है |
Good and fantastic review
ReplyDelete