Tuesday 5 September 2017

फ़्रांस ने वाटरलू के युद्ध में पराजय को शालीनता के साथ स्वीकार करते हुए वाटरलू में उस समय (1815 ई.) की मौजूद चीजों से कोई छेडछाड नहीं किया है | यह इतिहास पुनर्लेखन का विरोध करने वाले कुछ इतिहासकारों का तर्क है | अर्थात् हमें भी हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध की वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए|...............बेशक अतीत की वास्तविकता से कोई छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए | लेकिन छेड़छाड़ शुरू किसने किया ? फ्रांसीसियों ने वाटरलू की शर्मनाक हार के बावजूद नेपोलियन की वीरता, उसके नेतृत्व और जुझारूपन, उसकी महानता को कभी विस्मृत नहीं किया और वाटरलू में उस समय (1815 ई.) की मौजूद चीजों से छेड़छाड़ नहीं करने के पीछे भी यही वजह रही है | इसके विपरीत हमारे महान इतिहासकारों ने राणाप्रताप की वीरता, उनके नेतृत्व और जुझारूपन, उनकी महानता को इसलिए विस्मृत कर दिया ताकि अकबर को महान योद्धा और सेकुलर साबित करने के अति उत्साह में कोई अड़चन नहीं आये | राणाप्रताप के अतुलनीय शौर्य में कुछ तो अवश्य था जो अकबर की महानता और सेकुलरपना पर सवाल खड़ा करता है और जो महान इतिहासकारों के कथित सेकुलर चश्मे से दिखाई नहीं दिया | अकबर की महानता को सिद्ध करने के लिए आखिर राणाप्रताप के अतुलनीय शौर्य को विस्मृत करने की जरुरत क्यों पड़ी ??

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