Thursday 24 August 2017

काले कारनामों को छुपाने के बहाने आपातकाल का फोबिया पैदा करने की कोशिश



हाल ही में समाचार चैनल एनडीटीवी के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय के घरों और ठिकानों पर वितीय अनियमितता के आरोप में जब प्रवर्तन एजेंसियों और सीबीआई द्वारा छापे मारे गए तो कुछ बुद्धिजीवियों, कई राजनेताओं और मीडिया समूहों ने इसे ‘आपातकाल' जैसी स्थिति करार देते हुए भारत में लोकतंत्र और आज़ाद आवाज़ को कुचलने के प्रयास करने का आरोप लगाया जबकि वे अभिव्यक्ति के अधिकारों का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं और ऐसा करते हुए भारतीय इतिहास की सर्वाधिक 'काली अवधि'(लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने यह नाम दिया था) आपातकाल से सुनियोजित ढंग से या तो अनजान बनने की कोशिश कर रहे है या राजनीतिक दुराग्रह के कारण मौजूदा परिवेश में आपातकालीन भयावह स्थितियां होने का गोयबल्सीकरण कर रहे हैं |
1971 में रायबरेली लोकसभा सीट के चुनाव में धांधली तथा सरकारी मशीनरी के उपयोग के मामलों में दोषी पाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जीत को अवैध करार दिया था और उन्हें अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया था | उसके बाद स्वतंत्र भारत के इतिहास में काले दौर की शुरुआत हुई, जब 25 और 26 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शासन में बने रहने के लिए देश पर आपातकाल थोप दिया, जो लगभग 21 महीने (26 जून 1975 से 21 मार्च 1977) तक चला था| इसके साथ ही संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया सहित सभी प्रमुख लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं पद्धतियों को एक झटके में कुचल कर रख दिया। लोकतान्त्रिक ढंग से चुनी गई 8 गैर कांग्रेसी राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया | संसद को रबर स्टैंप बना दिया गया जिसने 38 वें, 39 वें और 41 वें संशोधन द्वारा न्यायपालिका को शक्तिहीन करते हुए आपातकाल की घोषणा और राष्ट्रपति तथा राज्यपालों द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कानूनों के न्यायिक पुनरविलोकन और प्रधानमंत्री के खिलाफ किसी भी याचिका पर सुनवाई पर रोक लगा दिया | प्रधानमंत्री द्वारा पदभार ग्रहण करने के पूर्व और बाद में किए गए किसी भी कार्य के लिए उनके खिलाफ किसी भी फौजदारी या आपराधिक कार्यवाही को निषिद्ध करके उन्हे संविधान और कानून से ऊपर कर दिया गया और इसप्रकार संविधान के बुनियादी ढांचे को ही तहस-नहस कर दिया गया | सर्वोच्च न्यायालय कायरता का पर्याय बनते हुए इस काले दौर के अनैतिक निर्देशों का समर्थन किया और अपने फैसले में राज्य को बिना किसी जवाबदेही के हत्या का अधिकार भी दे दिया | किसी भी नागरिक को अपनी नजरबंदी को चुनौती देने या बंदी प्रत्यक्षीकरण संबंधी याचिका दाखिल करने का अधिकार समाप्त कर दिया गया | भारत की जनता के लिए यह अविश्वसनीय था कि आजाद भारत में भी उसकी आजादी एक झटके में छीनी जा सकती है| सरकार का विरोध करने पर दमनकारी कानून मीसा और डीआईआर के तहत देश में एक लाख ग्यारह हजार लोग जेल में ठूंस दिए गए। न अपील, न वकील, न दलील | कारावास अवधि और दण्ड का पता नहीं होता था कि वे कब तक जेल में रहेंगे ?
आज कुछ मीडिया और बुद्धिजीवी अपनी अवसरवादी सुविधा के अनुसार आपातकाल की उन क्रूरताओं का मौजूदा छापेमारी से घालमेल करने कोशिश कर रहे है जब सेंसरशिप द्वारा प्रेस और पत्रकारिता का गला घोंट दिया गया और किसी भी विरोध को वितीय प्रतिबंधों या कठोर पुलिसिया कार्रवाई द्वारा दमन कर दिया गया था | कई विदेशी संवाददाताओं को हटा दिया गया और 40 से अधिक रिपोर्टरों की अधिकारिक मान्यता रद्द कर दी गई| यहाँ तक की सामाजिक और देशभक्त संगठनों जैसे आरएसएस को भी प्रतिबंधित कर दिया गया और हजारों स्वयंसेवकों को उनकी उम्र का ध्यान रखे बिना गिरफ्तार कर लिया गया | सबसे ज़्यादा भयावह क्रूरतापूर्वक नसबंदी अभियान था, जिसमें कई लोगों को लालच, धोखे या जबरन नसबंदी करने पर मजबूर किया गया| सफ़ाई के नाम पर झुग्गियों को गिरा दिया गया | वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपने एक संस्मरण लिखा है कि इंदिरा गाँधी के पुत्र संजय गाँधी ने उन्हें एक नोट दिया था जिसमें उन्होंने ऐसी नई व्यवस्था की योजना बनायीं थी जो संसदीय नहीं, बल्कि अध्यक्षीय थी यानी समग्र शक्तियां एक व्यक्ति पर ही केंद्रित थीं | यदि वर्तमान समय में वितीय फर्जीवाड़े के आरोप में किसी मीडिया, संस्थान या व्यक्ति के ठिकानों पर छापा मारा जाना आपातकाल है तो 1975 में जो कुछ हुआ था, वह क्या था ?
आज बॉलीवुड के जिन फिल्मकारों को बात-बात पर असहिष्णुता और अभिव्यक्ति पर खतरा दिखने लगता है उन्हें 75 के आपातकाल की देखना चाहिए जब फिल्मकारों को सरकार की प्रशंसा में गीत लिखने-गाने पर मजबूर किया| किशोर कुमार ने आदेश नहीं माना। उनके गाने रेडियो पर बजने बंद हो गए| अमृत नाहटा की फिल्म 'किस्सी कुर्सी का' को सरकार विरोधी मान कर उसके सारे प्रिंट जला दिए गए। गुलजार की आंधी पर भी पाबंदी लगा दी गई।

क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी भी मीडिया, संस्थान, या व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति और संप्रदाय का हो या चाहे वह उद्योगपति हो या माफिया, को क्या किसी भी तरह के वितीय फर्जीवाड़े या अपराधिक कृत्य के लिए छूट दी जा सकती है ? भारतीय संविधान में अनु. 19 के तहत व्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है वह भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध के लिए प्रोत्साहन देने वाले शब्दों पर प्रतिबन्ध द्वारा सीमित भी है | आजादी की यह सीमा व्यक्ति से विवेकशील और क़ानूनी रूप से उचित व्यवहार की अपेक्षा करती है| आज यदि किसी व्यक्ति या समूह को लगता है कि उसके अधिकारों के हनन हो रहा तो उसे आपातकाल की तरह अपील, वकील और दलील से प्रतिबंधित नहीं किया गया है | यदि उसे विश्वास है कि उस पर लगे वितीय अनियमितता और लोगों की भावनाओं के भड़काने के आरोप गलत है या बदले की भावना से लगाये गए है तो स्वयं को सही साबित करने के लिए न्यायालय के दरवाजे सदैव खुले हुए है | 

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