लोकतंत्र शब्द democracy का हिंदी रूपांतर है, जिसकी उत्पति ग्रीक के demo(जनता) और Kratia(शासन) के मिलने से हुई है | इसका तात्पर्य है जनता का शासन | इस प्रणाली की चर्चा अरस्तू ने उस प्रसंग में की है जहाँ वह इस बात पर विचार कर रहा है कि शासन का सबसे उत्तम स्वरुप या प्रणाली क्या है ? इस क्रम वह राजतन्त्र की चर्चा करते हुए कहा कि राजतन्त्र शासन की दृष्टि से सबसे अच्छा है | लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी शासक के निरंकुश हो जाने की होती है | इसलिए अच्छी शासन प्रणाली नहीं है |
फिर उसने प्रजातंत्र की चर्चा की | यह
ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासक या राज्य के निरंकुश होने का कोई भय नहीं रहता,
क्योंकि यह सबका शासन है | इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें किसी निर्णय
तक जल्द पहुंचना संभव नहीं होता है | इस आधार पर वह demokratia को भी निरस्त करता
है |
demokratia के जिस रूप की परिकल्पना
अरस्तू ने की थी, वह असंभव सी शासन प्रणाली थी | यह व्यावहारिकरूप से संभव नहीं
थी, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी हो|
आधुनिक युग में हम जिसे लोकतंत्र कहते
है, वह फ़्रांसिसी क्रांति से उत्पन्न राजनीतिक मूल्यों पर आधारित एक अवधारणा है |
उस क्रांति में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व, ये तीन मूल्य नारे के रूप में उभरे
और उसके पश्चात विकसित होनेवाली सभी राजनीतिक प्रणालियों को प्रभावित किया | इसने
दो आधारभूत विचारधाराओं के लिए भूमि तैयार की : लोकतंत्र और समाजवाद | दोनों में
अंतर यह है कि लोकतंत्र स्वतंत्रता को प्राथमिक मूल्य मानता है और समता को गौण
मूल्य| समाजवाद में समता को प्राथमिक मूल्य और स्वतंत्रता को गौण मूल्य माना गया |
लेकिन दोनों का उद्देश्य सामाजिक बंधुत्व को विकसित करना ही था |
यह स्वाभाविक था कि लोकतंत्र का जो
विकास स्वतंत्रता को प्राथमिक मूल्य मानकर किया गया, वह निश्चित ही समाजवाद की
तुलना में एक भिन्न समाज का निर्माण करता है, जहाँ स्वतंत्रता को प्रथम मूल्य माना
गया है | आधुनिक समय में लोकतंत्र शब्द का प्रयोग दो अर्थों में होता है- (1)
लोकतंत्र एक राजनीतिक पद्धति के रूप में और (2) जनता के लिए, जनता द्वारा और जनता
की शासन पद्धति के अर्थ में | यह इस शब्द का संकीर्ण अर्थ है| इस शब्द का जब हम
व्यापक अर्थ में प्रयोग करते है तो लोकतंत्र एक जीवन पद्धति है, जो स्वतंत्रता,
समानता और बंधुत्व के मूल्यों परा आधारित है | इन मूल्यों को जीवन में जीना
वास्तविक लोकतंत्र है |
आधुनिक युग में लोकतंत्र के विकास के
आरंभिक चरण में स्वतंत्रता प्राथमिक मूल्य है | इस चरण में समानता का तात्पर्य
इतना ही था कि प्रत्येक व्यक्ति को मत देने का अधिकार है | यह विचार इस तर्क पर
आधारित था कि प्रकृति ने सभी
मनुष्यों को समान नहीं बनाया है, अर्थात लोग
शारीरिक, बौद्धिक और आर्थिक दृष्टि से अलग-अलग हैं। ऐसे में यदि सभी को पूरी
स्वतंत्रता मिल जाए, तो समाज में असमानता
और विषमता और भी बढ़ सकती है, क्योंकि
कुछ लोग अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर दूसरों से अधिक संसाधन, शक्ति
और अवसर प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात् सभी को समान स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी |
किन्तु समाजवादी आन्दोलन के प्रभाव में और विशेषतः साम्यवाद के उदय के बाद
लोकतंत्र के स्वरुप में परिवर्तन अनिवार्य हो गया | इसलिए लोकतंत्र की दूसरी
अवस्था में स्वतंत्रता के मूल्य की रक्षा के लिए समानता के मूल्य को पूर्ण रूप से
त्याग देना संभव नहीं रहा | इस तरह दूसरी अवस्था में लोकतंत्र समाजवादी लोकतंत्र
के रूप में विकसित हुआ |
समाजवादी लोकतंत्र का आरंभिक लोकतंत्र से
केवल एक बिंदु पर मतभेद था कि स्वतंत्रता का अर्थ अतंत्रता नहीं होनी चाहिए और
स्वतंत्रता के नाम पर विषमता को उचित नहीं माना जा सकता | समाजवादी लोकतंत्र यह मानता
है कि स्वतंत्रता को पूर्णतः सुरक्षित रखते हुए यथासंभव सामाजिक समरसता का निर्माण
ही वास्तविक लोकतंत्र है | इसलिए समाजवादी लोकतंत्र में राज्य की ओर से विभिन्न
प्रकार के नियम-उपनियम बनाए गए, जिससे आर्थिक अधिकारों पर नियंत्रण किया गया |
वास्तव में समाजवादी लोकतंत्र का विकास
मार्क्स की विचारधारा के विकल्प के रूप में किया गया, जिससे सामाजिक समरसता को
निर्माण वर्ग संघर्ष के बिना भी क्या जा सके | लोकतंत्र यह स्वरुप तब तक रहा जब तक
विश्व दो ध्रुवों में बंटा रहा | किन्तु साम्यवादी व्यवस्था के विघटन के पश्चात
लोकतंत्र के स्वरुप में पुनः परिवर्तन हुआ, जिसे हम लोकतंत्र की तीसरी अवस्था कह
सकते है | इस तीसरी अवस्था में भूमंडलीकरण और विश्वग्राम आदि आदर्श जो विकसित हुए,
वे वस्तुतः स्वतंत्रता के मूल्य को ही विकसित करते है | इस अवस्था में स्वतंत्रता
फिर से सर्वोच्च मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित होती है | इस चरण में बंधुत्व के
विकास का प्रयास उन्मुक्त स्वतंत्रता के आधार पर किया गया | लेकिन स्वतंत्रता जब
अनुशासन, जिम्मेदारी और
मर्यादा के साथ न हो, तो
वह अंततः विनाश या अव्यवस्था का कारण बनती है। इसलिए किसी भी समाज में टिकाऊ
स्वतंत्रता वही होती है जो संतुलित और उत्तरदायित्वपूर्ण हो। उन्मुक्त स्वतंत्रता की प्रबुता दीर्घ
काल तक नहीं चल सकती| इसलिए
लोकतंत्र को अराजक तंत्र बनने से रोकने के लिए समता अथवा किसी अन्य मूल्य को
स्वीकार करना पड़ेगा | स्वतंत्रता एक प्रकार का मध्यमान है | स्वतंत्रता के प्रत्यय
में आत्म नियंत्रण विद्यमान है | इसलिए समस्त बंधनों से अलग करके हम इसे नहीं देख
सकते |
आधुनिक युग में लोकतंत्र की अवधारणा
अरस्तू की अवधारणा से भिन्न है | वर्तमान युग में लोकतंत्र प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र
है, क्योंकि सभी व्यक्तियों की साक्षात् भागीदारी शासन में संभव नहीं | इस
व्यावहारिक आवश्यकता ने प्रतिनिधिमूलकता को जन्म दिया | मतदान का अधिकार परोक्ष
रूप से स्वतंत्रता की रक्षा करता है | स्वतंत्र वरण इच्छा के माध्यम से व्यक्ति
शासन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करता है| कांट ने एक जगह कहा है-कोई भी नियम
मेरे ऊपर तभी लागू हो सकता है, जब मैं यह मानकर चलूँ कि इस नियम का निर्माण मैंने
स्वयं किया, अन्यथा किसी भी नियम को स्वीकार करने में मेरी स्वतंत्रेच्छा बाधित
होती है | वर्तमान लोकतंत्र में कांट के इस नैतिक सूक्त का अघोषित उपयोग दिखाई
पड़ता है, क्योंकि राज्य के द्वारा निर्मित नियम को स्वीकार करते हुए भी लोकतंत्र
में प्रत्येक व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसका अपना शासन है |
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