Wednesday, 2 October 2024

भारतीय राजनीति के वामनावतार..... लाल बहादुर शास्त्री

 भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को अक्सर इसलिए याद किया जाता रहा है कि उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था और उनका निधन ताशकंद में हो गया था | लेकिन लाल बहादुर शास्त्री की कहानी एक ऐसे निष्काम कर्म योगी की जीवन गाथा है जो न केवल एक नेता है, बल्कि एक ऐसा व्यक्तित्व है जो आदर्शों, संघर्षों और सेवा की मिसाल प्रस्तुत करता है | वे राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर एक साधारण व्यक्तित्व के साथ प्रविष्ट हुए, किन्तु अपने अतुलनीय पुरुषार्थ से निरंतर निष्काम कर्म करते हुए असाधारण इतिहास के सदृश विशिष्ट हो गए। छोटे कद-काठी और अत्यंत सादगीपूर्ण पहनावे के साथ अपने निष्काम कर्म, अनवरत अध्यवसाय और अनन्य समर्पण से सिद्ध कर दिया कि कद की लघुता नहीं, कर्म की विशिष्टता और महानता महत्त्वपूर्ण है। यदि कद और पहनावे की भव्यता ही मूल्यांकन का आधार होता, तो केवल उन लोगों को महत्व मिलता जो भौतिक रूप से प्रभावशाली होते, और वास्तविक प्रतिभा और नेतृत्व की आवाज़ दब जाती। लेकिन उनकी ईमानदारी, निस्वार्थता, सेवा भाव, जनहित और विचार, उनके कद से कहीं अधिक महत्वपूर्ण रहे हैं, जिसके बल पर वे वामन से विराट हो गए थे| लाल बहादुर शास्त्री को भारतीय राजनीति का "वामनावतार" मानना काफी दिलचस्प है। वामन भगवान विष्णु के पांचवें अवतार हैं, जो छोटे और साधारण रूप में प्रकट होते हैं, लेकिन उनका प्रभाव अत्यधिक विशाल होता है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि संसाधनहीनता या परिस्थितियों के अभाव में भी एक व्यक्ति अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति से महानता प्राप्त कर सकता है। उन्हें वामनावतार के रूप में देखना इस बात को दर्शाता है कि साधारणता और लघुता में भी एक गहरी शक्ति और प्रभाव निहित होता है।

लाल बहादुर शास्त्री राजनीति के दलदल में रहते हुए भी अपनी नैतिकता और विचारधारा को बनाए रखा | वे कठिनाइयों का सामना करते हुए भी राजनीति की कुटिलताओं और दुश्चक्रों से दूर रहे । उन पर बाहरी दबावों और सांसारिक महत्वाकांक्षाओं का कोई प्रभाव नहीं था, क्योंकि उन्होंने जीवन को एक गहरी आध्यात्मिक दृष्टि से देखा। उन्होंने हमेशा अपनी आंतरिक शक्ति और सिद्धांतों पर जोर दिया | इसी कारण वे संसार में रहते हुए भी सांसारिकता से अछूते थे। वे गीता के 'यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति। शुभाशुभपरित्यागी…' आदर्श को अपनाते थे| उन्होंने अपनी आत्मशक्ति को इस प्रकार विकसित कर लिया था कि उन्हें हर जगह उसी परम सत्ता का दर्शन होता था, जिसके निर्देश पर सभी प्राणी अपने कार्यों में लगे रहते हैं। उनका जीवन-दर्शन झील के पानी की तरह साफ, स्वच्छ और स्पष्ट था|  उसकी गहराई में वे अपनी आत्मा की आवाज को आसानी से सुन सकते थे।

यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि कांग्रेस पार्टी और उनकी सरकार ने शास्त्रीजी को मरणोपरांत समुचित सम्मान और कार्यों का श्रेय नहीं दिया। शास्त्री जी के द्वारा लिए गए निर्णय, जैसे कि खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादन के लिए किए गए प्रयास, आज भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके योगदान को सम्मानजनक मान्यता नहीं मिली। लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण प्रतीक थे। उनकी सादगी, ईमानदारी और नेतृत्व कौशल ने उन्हें जनता के बीच एक आदर्श नेता बना दिया। उन्होंने हमेशा भारतीय संस्कृति के मूल्यों को प्राथमिकता दी। उनका नारा "जय जवान, जय किसान" केवल उनके समय की आवश्यकता नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज के दो प्रमुख स्तंभोंकिसानों और सैनिकोंकी महत्ता को भी उजागर करता है। देखन में छोटन लगे, घाव करे गम्भीर, पाँच फुट दो इंच के छोटे कद के भीतर एक ऐसा दृढ़-निश्चयी देशभक्त रहता है, जिसने 1965 के युद्ध में पकिस्तान घुटने टेकने के लिए न केवल विवश लिया था बल्कि दूसरी ओर अमेरिका द्वारा गेहूं नहीं देने की धमकी को दरकिनार करते हुए भारत को अन्न उत्पादन में भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों का आह्वान भी किया | यह कहना गलत नहीं होगा कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शास्त्री जी द्वारा शुरु की गई उदार आर्थिक नीतियों, कृषि और खाद्यान्न उत्पादन में आत्म निर्भरता, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और चीन को उसी की भाषा में करारा जवाब देने की सुरक्षा व्यवस्था और राजनेताओं के भ्रष्टाचार को कठोरता से रोकने का प्रयास कर रहे हैं|    

प्रकृति ने शास्त्री जी को अटल ध्येय, गांधी के समान सत्य के प्रति आग्रह, चाणक्य जैसी राजनीतिक समझ और बुद्ध जैसी उदारता के उद्दात गुणों से संपन्न किया था। उनकी सरकार ने एकता और अखंडता को बढ़ावा दिया, जो भारतीय संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा है। शास्त्री जी ने यह सिद्ध किया कि नेतृत्व का अर्थ केवल सत्ता में रहना नहीं, बल्कि लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना भी है। उनका जीवन और कार्य उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो भारतीय संस्कृति में निहित हैं और आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। शास्त्री जी ने हमेशा समाज के निचले वर्गों के उत्थान के लिए काम किया और शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के लिए निरंतर प्रयास किए।

वास्तव में, शास्त्री जी को आज़ादी के बाद भारत का पहला आर्थिक सुधारक कहा जा सकता है। यह एक बहुत बड़ा भ्रम है कि 1966 में भारतीय रुपये के अवमूल्यन का निर्णय और क्रियान्वयन इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद किया था। यह सच है कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में ही रुपये का अवमूल्यन किया गया था, लेकिन भारत सरकार की फाइलों में यह दर्ज है कि मुद्रा के अवमूल्यन का निर्णय, जो एक आवश्यक कदम था, शास्त्री जी द्वारा लिया गया था। उन्होंने हमेशा बड़े मुद्दों पर विचार करने के लिए सरल और प्रभावी तरीके अपनाए।

लाल बहादुर शास्त्री के जीवन का हर पहलू एक पाठशाला है, जिसे आत्मसात करना आज के समय और नई पीढ़ी की आवश्यकता है। ईमानदारी एक सर्वोत्तम नीति है किन्तु इसका अनुसरण करते कितने लोगों को जानते हैं हम? लाल बहादुर शास्त्री वास्तव में ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे| शास्त्रीजी की मौत के समय उनकी ज़िंदगी की क़िताब पूरी तरह से साफ़ थी| न तो वो पैसा छोड़ कर गए थे, न ही कोई घर या ज़मीन, न उन्हें कभी सत्ता का लोभ रहा, ना कुर्सी का अभिमान।

 

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