संसद मे बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेसियों और उनके वैचारिक पोषक वामपंथियों के इकोसिस्टम को खुली चेतावनी देते हुए कहा कि वो देशविरोधी साजिशें रचने से बाज आए वरना उसे अब उसी की भाषा में जवाब दिया जाएगा। लेकिन 2014 के बाद का रिकार्ड उनकी इस चेतावनी के कही भी अनुकूल नहीं है | पिछले 10 वर्षों में जमीनी स्तर पर हम ऐसा कहीं भी कुछ होते देख नही रहे। इसके विपरीत कांग्रेस और कांग्रेस से मिले खाद-पानी से पला-बढ़ा 70 वर्षों का इकोसिस्टम ऐसा कोई भी अवसर गंवाया नहीं है, जिससे देश की विकास यात्रा को रोक दिया जाय, देश को सामाजिक और साम्प्रदायिक विद्वेष की आग में झोंक दिया जाय, देशविरोधी साजिशों और ताकतों को बढ़ावा दिया जाय | यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट को भी अपने फैसले में कहना पड़ा कि, “ऐसा लगता है इस महान देश की प्रगति पर संदेह प्रकट करने, उसे कम करने और हरसंभव मोर्चे पर उसे कमजोर करने का एक ठोस प्रयास किया जा रहा है। इस तरह के किसी भी प्रयत्न या प्रयास को आरंभ में ही रोक दिया जाना चाहिए।“
लेकिन क्या मोदी सरकार पिछले 10 वर्षों में पूर्ण बहुमत के बावजूद इस
देशद्रोही, और समाजद्रोही इकोसिस्टम की जड़ों में मट्ठा डालकर समूल नाश करने जैसी
कोई कार्रवाई की है ? अगर कार्रवाई की होती तो आज चेतावनी देने की जरुर नहीं पड़ती
| कार्रवाई करना तो दूर, मोदी सरकार के समर्थकों और कोर वोटरों का एक बड़ा वर्ग
इसी बात से नाराज है कि 10 वर्षों के मोदी
शासन में कोई राष्ट्रवादी इकोसिस्टम नहीं बनाया गया। ‘सरकार बदली है, सिस्टम तो हमारा ही है’ की पंचलाइन भी इसी इकोसिस्टम
की है, जो उन्हें भरोसा देता है कि वे अपने नैरेटिव एवं एजेंडे का खुल्लम-खुल्ला
प्रचार कर पाने में सक्षम होते है| हर संस्था पर, हर संस्थान पर, हर जगह-संसद से सड़क तक, शिक्षण-संस्थानों से
सुप्रीम कोर्ट तक, बॉलीवुड से व्यवसाय तक, साहित्य से लेकर इतिहास तक, इलेक्ट्रॉनिक
मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक- उन्होंने ऐसी पकड़ बना रखी है कि सरकार के बदलने
के बाद भी वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आते है | ये लोग स्वयं को लिबरल बताते हैं, जबकि इनसे ज्यादा असहिष्णु, कट्टर, और तानाशाही
प्रवृत्ति के लोग आपको ढूँढने से भी नहीं मिलेंगे। हर जगह ये अपने तरह के विचारों
को ही सेकुलर और लोकतांत्रिक मानते हैं, और उसे ही सही मानते है | अगर आपने उसके
अलावा किसी और विचार या नैरेटिव का समर्थन कर दिया, तो आपको सांप्रदायिक
और फासिस्ट कह कर ख़ारिज कर देंगे। ये अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए उन समस्त
प्रतीकों को ख़ारिज करते है या उनका भौंडा मजाक बनाते है, जिसका सम्बन्ध देश की
सनातन संस्कृति से है, लोकतांत्रिक अस्मिता से है, राष्ट्रीय संप्रभुता से और
संवैधानिक संरक्षा से है| कभी प्रभु श्री राम को काल्पनिक बताते है, कभी सनातन को
डेंगू, मलेरिया और कैंसर कहकर मजाक उड़ाते हैं, कभी चार पड़ोसी इस्लामिक देशों के
धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को नागरिकता देने का कानून सीएए को देश विरोधी बताकर
देश को सुलगाने की पूरी व्यवस्था करते है, गुजरात कभी नहीं भूलते नहीं, लेकिन गोधरा की
चर्चा नहीं करते है| नारी सशक्तीकरण का पुरोधा बनेंगे, लेकिन बुरका, तीन तलाक और हलाला की अमानवीय प्रथा को मजहब का अंदरूनी मामला बताएँगे | ये अपने ही
देश की सेना के जवानों की नृशंस हत्या, देश को तोड़ने की बातें,
आतंकियों के लिए रातोरात सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुलवायेंगे, घुसपैठियों को शरण
देने और चुने गए नेता को मारने की योजना बनाते हैं | गरीबों और किसानों के नाम पर दलालों
और विदेशी एजेंटों को मसीहा बताएँगे और गरीबों और किसानों लगातार सरकारी योजनाओं
से, विकास से दूर रखने की कोशिश करते है | है। जरूरत पड़ी तो
तुमने उन्हीं गरीबों को ढाल बना कर सुरक्षाबलों के आगे कर दिया।
इसलिए इस इकोसिस्टम को चेतावनी देने से काम नहीं चलने वाला है, समूल नष्ट करना
जरुरी है अन्यथा ये इस चेतावनी का भी ऐसा मजाक बनायेंगे कि स्वयं प्रधानमंत्री
मोदी भी हास्यास्पद हो जाएंगे | मोदी ने यदि अपनी चेतावनी के मुताबिक इन पर सख्त
कार्रवाई नहीं की, तो जनमानस में निराशा बढ़ेगी,
जिसका कुछ असर लोकसभा चुनावो में देखा जा चुका है जहाँ 400 का नारा जनमानस में वह उत्साह नहीं जगा पाया, जो 56 इंच के
सीने के लिए उठ खड़ा हुआ था | इकोसिस्टम की प्रोपेगेंडा फैक्ट्री ने चुनावों के
दौरान संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने का फर्जी वीडियो गाँव-गाँव फैला दिया
था, लेकिन मोदी जी का प्रशासन आत्ममुग्ध बना रहा | कही ऐसा न हो कि इकोसिस्टम को उन्ही
की भाषा में जवाब देने की चेतावनी 15 लाख वाली बात की
तरह जुमला साबित हो जाय| जनता ने 15 लाख वाली बात को
कभी गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन आपकी चेतावनी के बावजूद पिछले 10 वर्षों में इकोसिस्टम
को तहस-नहस नहीं करने को लेकर आपकी पोलिटिकल करेक्टनेस की नीति से जनमानस पहले से
ही उत्साहित नहीं है | अब वह करने की जरुरत है जिसके लिए जनता ने 2014 और 2015 में
भारी बहुमत देकर मोदी सरकार को पर्याप्त समय दिया था | अब संविधान की प्रति हाथों
में लहराकर सरकार को चुनौती देने वालों को संविधान को माथे से लगा लगा कर जवाब देने का समय
नहीं है | सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का परिणाम देख लिया | अब इसका समय
नहीं है | अब देश का विकास जरुरी है और इस विकास की टांग खींचने वाले इकोसिस्टम की
टांग काट देने की जरुरत है |
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