हिंदी गद्य के क्षेत्र में भारतेंदु युग मुख्यतः निबंधों का युग है। इस युग में विभिन्न ऐतिहासिक पुरुषों पर लिखे गए निबंधों में रेखाचित्र की झलक अवश्य मिलती है परन्तु कहीं से भी इन्हें रेखाचित्र नहीं माना जा सकता है।
रेखाचित्र आधुनिक युग में विकसित एक
गद्य विधा है | वैसे तो रेखाचित्र की कई परिभाषाएँ प्रस्तुत की गयी हैं, परन्तु सबसे
सटीक और व्यापक परिभाषा डॉ. भगीरथ मिश्र की है जिनके अनुसार– “संपर्क में आये
किसी विलक्षण व्यक्ति अथवा संवेदनाओं को जगानेवाली सामान्य विशेषताओं से युक्त
किसी प्रतिनिधि चरित्र के मर्मस्पर्शी स्वरुप को, देखी-सुनी या संकलित घटनाओं की
पृष्ठभूमि में इस प्रकार उभारकर रखना कि उसका हमारे हृदय पर एक निश्चित प्रभाव
अंकित हो जाए रेखाचित्र या शब्दचित्र कहलाता है।”
पं. पद्म सिंह शर्मा और श्रीराम शर्मा
हिंदी के प्रारंभिक रेखाचित्रकार माने जाते हैं। पं. पद्म शर्मा द्वारा महाकवि
अकबर पर लिखा गया रेखाचित्र पहली बार हिंदी पाठकों का ध्यान खींचने में सफल रहा।
यद्यपि रेखाचित्र को एक विधा के रूप में बाद में स्वीकार किया गया किन्तु इस रचना
में रेखाचित्र के विविध गुण विद्यमान थे। 1936
तक अनेक रेखाचित्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे किन्तु रेखाचित्र
से सम्बंधित कोई संग्रह सामने नहीं आया। 1937 में श्रीराम शर्मा का एक संग्रह ‘बोलती प्रतिमा’ प्रकाशित
हुआ। इसमें संग्रहीत रचनाओं में रेखाचित्र के कतिपय लक्षण पर्याप्त मात्रा में
दिखाई पड़े। ‘बोलती प्रतिमा’,
‘ठाकुर की आन’, ‘वरदान’, ‘हरनामदास’, ‘पीताम्बर’, ‘अपराधी’, ’रतना
की अम्मा’, ‘इदन्नमम’ आदि
इस संग्रह की रचनाओं के आधार पर इस संग्रह को एक सफल रेखाचित्र के रूप में स्वीकार
किया जा सकता है। आगे चलकर ‘बोलती प्रतिमा’ के चार रेखाचित्रों में सोलह नए रेखाचित्र
जोड़कर ‘वे जीते कैसे हैं’ नाम से एक और संग्रह भी प्रकाशित हुआ।
हिंदी रेखाचित्र के प्रमुख रचनाकारों
में श्री राम शर्मा के अतिरिक्त वेंकटेश नारायण तिवारी, वृन्दावनलाल
वर्मा, महादेवी वर्मा,
सियारामशरण गुप्त, हरिशंकर शर्मा, अन्नपूर्णानंद, कन्हैयालाल
मिश्र प्रभाकर, मोहनलाल महतो ‘वियोगी’, रामनाथ सुमन आदि शामिल हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी
‘निराला’ के ‘कुल्ली भाट’ और ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ को
उपन्यास और रेखाचित्र दोंनों के अंतर्गत मान्यता दी गयी है। रेखाचित्र की दो
प्रमुख विशेषताओं विषय के प्रति एकाग्रता तथा संक्षिप्तता का अपेक्षित मात्रा में
इन रचनाओं में न होना इसके रेखाचित्र होने या मानने की सीमाओं का संकेत करता है।
हिंदी के रेखाचित्रकारों में महादेवी वर्मा का नाम आदर के साथ लिया जाता है। 1941 में प्रकाशित इनके पहले गद्य संग्रह ‘अतीत के चलचित्र’ को हिंदी का प्रथम सफल रेखाचित्र माना जा सकता है। इसके अतिरिक्त ‘स्मृति की रेखाएं’ और ‘पथ के साथी’ संग्रह भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं। ‘पथ के साथी’ को रेखाचित्र से अधिक संस्मरण के रूप में स्वीकार किया गया है। किन्तु रेखाचित्र की अनेक विशेषताओं की उपस्थिति के चलते इसे संस्मरणात्मक रेखाचित्र भी माना गया है। महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों की मूल प्रेरक-धारा करुणा ही रही है। वे सामाजिक विकृतियों के खंड-चित्र अंकित करने में ही व्यस्त रही हैं। इसके अलावा पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कुछ रचनाओं का संग्रह ‘कुछ’ नाम से प्रकाशित हुआ जिसमें रामलाल पंडित, कुञ्ज बिहारी, चक्करदार चोरी आदि को रेखाचित्र माना जा सकता है।
हिंदी रेखाचित्र के रचनाकारों में
रामवृक्ष बेनीपुरी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। ‘लालतारा’, ‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ
और गुलाब’ तथा ‘मील
के पत्थर’ इनका प्रमुख रेखाचित्र संग्रह है।
बेनीपुरी की ‘माटी की मूरतें’ को किसी ने उन्हें ‘हाथी
दांत पर की तस्वीरें’ कहा तो किसी ने
बेनीपुरी की लेखनी को ‘जादू की छड़ी’ की संज्ञा दी। उनके इन संग्रहों में संग्रहीत
रेखाचित्रों में लेखक का सामाजिक एवं राजनीतिक विषमताओं के प्रति आक्रोश, समाज के दीन-दलित व्यक्तियों के प्रति ममता और
उनके उज्ज्वल भविष्य में दृढ आस्था आदि भावनाओं का प्रकाशन हुआ है। प्रकाशचंद्र
गुप्त के रेखाचित्र ‘पुरानी
स्मृतियाँ और नए स्केच’ भी महत्वपूर्ण
हैं। इसमें लेखक की राजनीतिक चेतना, समाजवादी दृष्टिकोण, स्नेह, सहानुभूति, करुणा
आदि का प्राधान्य रहा है। परन्तु इनमें स्वानुभूति की वह गहराई नहीं मिलती जो
महादेवी वर्मा एवं बेनीपुरी की विशेषता है।
अन्य रेखाचित्रों में बनारसीदास
चतुर्वेदी का ‘रेखाचित्र’, देवेन्द्र सत्यार्थी का ‘रेखाएं
बोल उठीं’ उल्लेखनीय है | जबकि हिन्दी के अन्य अनेक लेखकों ने रेखाचित्रों की
रचनाएं की हैं। इनमें कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, डॉ. विनयमोहन शर्मा, विष्णु
प्रभाकर, डॉ. नगेन्द्र,
अज्ञेय, निर्मल वर्मा, विद्यानिवास मिश्र, गुलाब
राय, शांतिप्रिय द्विवेदी, प्रेमनारायण टंडन सत्यवती मल्लिक, रघुवीर सहाय, अविनाश, विद्या माथुर, डॉ.
मक्खनलाल शर्मा आदि अनेक लेखकों के नाम शामिल हैं। कुल मिलाकर इतने सारे लेखकों की
रचनाओं के बावजूद हिन्दी के रेखाचित्र साहित्य को अत्यधिक समृद्ध नहीं कहा जा सकता
है, अन्य विधाओं की तुलना में यह अब भी
काफी पीछे है।
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