Wednesday, 27 November 2024

भारत की शास्त्रीय भाषाएँ


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दे दी है। शास्त्रीय भाषाएँ भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील के पत्थर पत्थरों को संजोए रखती हैं। 

भारत उन अनूठे देशों में से एक है जहाँ भाषाओं की विविधता की समृद्ध विरासत है। बहुभाषावाद भारत में जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है, क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों में लोग जन्म से ही एक से अधिक भाषाएँ बोलते हैं और अपने जीवनकाल में अतिरिक्त भाषाएँ भी सीखते हैं। यह विविधता न केवल सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि समाज में आपसी संवाद और समझ को भी बढ़ावा देती है।

 शास्त्रीय भाषाओं का महत्व

·         भारत की शास्त्रीय भाषाएँ न केवल देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं, बल्कि वे प्राचीन बौद्धिक और साहित्यिक परंपराओं का भी परिचायक हैं।

·         भारत की शास्त्रीय भाषाएँ (Classical Languages in india in Hindi) भारत के प्राचीन अतीत के लिए एक खिड़की के रूप में काम करती हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करती हैं।

·         शास्त्रीय भाषाओं में लिखे गए ग्रंथों और धर्मग्रंथों के विशाल भंडार में अमूल्य ज्ञान, वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि और दार्शनिक विचार शामिल हैं। जो देश की ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

·         वे क्षेत्रीय पहचान के अभिन्न अंग हैं, क्षेत्रीय गौरव और निरंतरता की भावना को बढ़ावा देते हैं।

·         इन शास्त्रीय भाषाओं का महत्व केवल संचार तक सीमित नहीं है; वे सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने, बौद्धिक विकास को बढ़ावा देने और सामाजिक एकता को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनका अध्ययन और प्रचार भारत की विविध पहचान को समझने में मदद करता है और वैश्विक सभ्यता में इसकी सार्थक योगदान को बढ़ावा देता है।

 

भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित करते हुए "शास्त्रीय भाषाओं" के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया और शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए कुछ मानदंड निर्धारित किए| इन मानदंडों के आधार पर शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए प्रस्तावित भाषाओं की जांच करने के लिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषाई विशेषज्ञ समिति (एलईसी) का गठन किया गया ।

 I. 1500-2000 वर्षों की अवधि में इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलिखित इतिहास की उच्च प्राचीनता।

2. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे वक्ताओं की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

3. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली जानी चाहिए।

4. शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक से भिन्न होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति से भी उत्पन्न हो सकता है।

इन मानदंडों के आधार पर तमिल के अलावा संस्कृत( 2005), तेलुगु( 2008), कन्नड़( 2008), मलयालम(2013 और ओड़िया( 2014)

इन भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता केवल मानद नहीं है; यह उन्हें उनके संरक्षण और संवर्धन के लिए एक विशेष दर्जा और समर्थन प्रदान करता है। यह भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत में उनके योगदान को स्वीकार करता है।

भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने से लाभ

·         भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने से विशेष रूप से शैक्षणिक और अनुसंधान क्षेत्रों में रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर पैदा होंगे।

·         इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेज़ीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में नौकरियां पैदा होंगी।

·         शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन को प्रोत्साहित करने से कम ज्ञात भाषाओं और बोलियों को पुनर्जीवित करने और संरक्षित करने के प्रयासों का समर्थन किया जा सकता है

·         इन ग्रंथों का अध्ययन और व्याख्या करके, विद्वान और शोधकर्ता प्राचीन ज्ञान को खोल सकते हैं और चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित और आध्यात्मिकता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

·         शास्त्रीय भाषाओं को समझने से भाषाई विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा मिलता है, जो भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए आवश्यक है। बहुभाषावाद न केवल संचार को बढ़ाता है बल्कि सामाजिक बंधनों को भी मजबूत करता है और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है।

·         यह लोगों के बीच भाषाई विविधता और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देता है।

·         शास्त्रीय भाषाओं को संरक्षित करके, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि इसकी समृद्ध विरासत भावी पीढ़ियों तक पहुंचे योग्य और समझी जाती रहे।

·         शास्त्रीय भाषाएँ सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करती हैं, क्योंकि दुनिया भर से विद्वान और उत्साही लोग इन भाषाओं का अध्ययन और अन्वेषण करने के लिए आकर्षित होते हैं।

शास्त्रीय भाषाएँ न केवल अपनी प्राचीनता के कारण अद्वितीय हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के विभिन्न तत्वों पर उनके प्रभाव के कारण भी अद्वितीय हैं। साहित्य, दर्शन, धर्म, कला और विज्ञान पर उनका प्रभाव महत्वपूर्ण रहा है और उन्होंने देश के सांस्कृतिक वातावरण पर अपनी छाप छोड़ी है। प्राचीन ग्रंथों, धर्मग्रंथों और साहित्यिक कृतियों को इन भाषाओं के माध्यम से संरक्षित और प्रचारित किया गया है। उनकी मान्यता और संरक्षण से हमारी विरासत भावी पीढ़ियों तक पहुंचेगी।।

युनूस सरकार ने भारत से लिया पंगा

 बांग्लादेश में ISKCON के संत चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की गिरफ्तारी के बाद भारत समेत कई जगहों से आलोचना हो रही है। यह गिरफ्तारी बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ते हमलों के बीच हुई है। चिन्मय कृष्ण दास, बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे थे। उन पर अक्टूबर में चट्टोग्राम में एक रैली में बांग्लादेशी झंडे का अपमान करने का आरोप है। भारत सरकार ने इस गिरफ्तारी पर नाराजगी व्यक्त की है और बांग्लादेश सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन घटनाओं के अपराधी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन शांतिपूर्ण सभाओं के माध्यम से वैध मांगें उठाने वाले एक धार्मिक नेता के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं।

विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि अल्पसंख्यकों के घरों और दुकानों आगजनी और लूटपाट के साथ-साथ चोरी, तोड़फोड़ और देवी-देवताओं और मंदिरों को अपवित्र करने के कई मामले हुए हैं जो दर्ज हैं। बयान में कहा गया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन घटनाओं के अपराधी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन शांतिपूर्ण सभाओं के माध्यम से जायज मांगें उठाने वाले एक धार्मिक नेता के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं। विदेश मंत्रालय ने दास की गिरफ्तारी के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर भी चिंता जतायी। वहीं दूसरी ओर भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान पर बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में कहा कि यह निराधार है और दोनों देशों के बीच मित्रता की भावना के विपरीत है।

विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने इस कदम को कायरतापूर्ण और अलोकतांत्रिक बताया है। ISKCON ने भारत से कृष्ण दास ब्रह्मचारी की रिहाई के लिए बांग्लादेश से बात करने की अपील की है। ISKCON ने कृष्ण दास के ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। सद्गुरु और श्री श्री रविशंकर ने भी गिरफ्तारी की आलोचना की है। रविशंकर ने कहा, हम प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस से और अधिक उम्मीद करते हैं, जिन्हें लोगों के लिए शांति और सुरक्षा लाने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला है और इसीलिए उन्हें कार्यवाहक सरकार का मुखिया बनाया गया है। हम उनसे ऐसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं करेंगे जिससे समुदायों के बीच और अधिक तनाव और भय पैदा हो।

Tuesday, 15 October 2024

स्पेसएक्स की ऐतिहासिक उड़ान-अंतरिक्ष में नई क्रांति

एलन मस्क के स्टारशिप रॉकेट के ताज़ा परीक्षण की दुनियाभर में चर्चा हो रही है| यह अब तक का सबसे जोखिमभरा परीक्षण था। असल में इस परीक्षण के दौरान स्टारशिप रॉकेट को लॉन्च पैड पर वापस सुरक्षित उतारा गया और एलन मस्क की स्पेसएक्स कंपनी ऐसा कारनामा करने वाली दुनिया की पहली कंपनी बन गई है| इसमें कंपनी ने पहली बार बूस्टर को वापस लॉन्च पैड पर उतारा। यह अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में एक बड़ा कदम है |


इस परीक्षण के बाद तेज़ी से और दोबारा इस्तेमाल करने वाले रॉकेट बनाने की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना में स्पेसएक्स अहम चरण में पहुंच गया है|

स्पेस एक्सप्लोरेशन के मिशन में सबसे बड़ी समस्या है- हर बार एक नये रॉकेट  या लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल करके सैटेलाइट को स्पेस में भेजना, जो बेहद ही खर्चीला काम है| हर बार का कई सौ या हजारों करोड़ का खर्च होता है| ऐसे में दोबारा उपयोग किए जाने वाले रॉकेट की समस्या अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और सरकारों के लिए सरदर्द बनी हुई थी, जिसे एलन मस्क और उनकी कंपनी ने इस साहसिक परिक्षण के माध्यम से समाधान कर लिया है | स्टारशिप रॉकेट की सबसे महत्वपूर्ण विशिष्टता उसका दोबारा उपयोग किया जाना है|

स्टारशिप दुनिया का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। यह 121 मीटर लंबा है। इसमें 33 मीथेन इंजन लगे हैं। इस रॉकेट ने टेक्सास के दक्षिणी छोर से सुबह 7:25 बजे उड़ान भरी। उड़ान के लगभग ढाई मिनट बाद, सुपर हैवी बूस्टर स्टारशिप के ऊपरी हिस्से से अलग हो गया। बूस्टर सात मिनट बाद वापस आया। लॉन्च टॉवर पर बूस्टर को सुरक्षित लैंड कराया गया। केवल बूस्टर ही सटीक तरीक़े से नहीं उतरा बल्कि स्पेसएक्स ने यान के हार्डवेयर के कुछ हिस्सों को सुरक्षित बचाने में कामयाबी भी हासिल की, जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही थी| इसका मतलब यह है कि यदि कोई रॉकेट पहली बार उड़ान में विफल हो जाता है, तो इसे दोबारा उड़ाया जा सकता है|

इस परीक्षण को स्पेसएक्स के सबसे साहसी और सफल अभियानों में से एक माना जा रहा है। इससे पहले, जून 2024 में स्पेसएक्स ने एक सफल उड़ान भरी थी, जिसमें रॉकेट ने बिना किसी विस्फोट के अपनी यात्रा पूरी की। यह स्टारशिप रॉकेट का पांचवा परीक्षण था, जिसमें कोई बड़ी तकनीकी खामी सामने नहीं आई और यह सफलतापूर्वक अपने मिशन को अंजाम दे सका।

यह रॉकेट 150 टन पेलोड ले जाने की क्षमता रखता है, जो इसे और भी प्रभावी बनाता है। इसके 33 रैप्टर इंजन इसे अब तक का सबसे शक्तिशाली और तेज गति वाला रॉकेट बनाते हैं, जिसकी गति 27,000 किमी/घंटा तक पहुंच सकती है।

बूस्टर के सुरक्षित रूप से वापस आने को स्पेस एक्स के इंजीनियरों ने ऐतिहासिक दिनक़रार दिया है | इस सफलता का अंतरिक्ष यात्रा के भविष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह मिशन की लागत को काफी कम कर सकता है और लगातार लॉन्च की क्षमता को बढ़ा सकता है। लॉन्च पैड पर बूस्टर को सुरक्षित रूप से उतारने से मिशनों की जटिलता में कमी आएगी, जिससे अंतरिक्ष यानों को तेजी से मिशन पर भेजने में मदद मिलेगी। स्टारशिप कार्यक्रम का उद्देश्य चंद्रमा और मंगल ग्रह के मिशन सहित गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण को सुविधाजनक बनाना है, जिससे यह उपलब्धि उन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को साकार करने में एक महत्वपूर्ण कदम बन सके।

यह न केवल एलन मस्क के लिए एक व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक नई संभावनाओं का द्वार भी खोलता है। इस परीक्षण के माध्यम से अब एलन मस्क दुनिया के पहले ट्रिलियनॉयर भी बन जाएंगे| भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा को और अधिक आम और सस्ता बनाने के लिए यह तकनीक एक महत्वपूर्ण आधार बन सकती है। यह परीक्षण मंगल और अन्य ग्रहों पर भी मानव मिशनों की संभावनाओं को खोलता है। इससे विभिन्न सरकारों और कंपनियों के लिए अंतरिक्ष में अपने मिशनों को आयोजित करना आसान हो जाता है।

कुछ ही सालों में एलन मस्क की स्पेसएक्स दुनिया में सबसे ज्यादा सैटेलाइट  लॉन्च करने वाली कंपनी बन गई है| यह कई ट्रिलियन डॉलर का व्यवसाय है, जिसपर अभी एलन मस्क का एकाधिकार है| भारत का इसरो भी सैटेलाइट  लॉन्च करने की दिशा में काफी पहले ही कदम बढ़ा चुका है, लेकिन इसे काफी दूरी तय करनी है|

Friday, 11 October 2024

अमूल्य रतन ! बहुमूल्य रतन

 

देश में ही नहीं, पूरी दुनिया में बहुत कारोबारी हुए हैं, और बहुत सारे आगे भी होते रहेंगे, लेकिन रतन टाटा एक ऐसा नाम है जिसने अपने बिजनेस कौशल और दूरदर्शी सोच से भारत के कॉरपोरेट लैंडस्केप को एक ऐसा आयाम दिया, जिसे हिंदुस्तान का कोई भी अन्य उद्योगपति उन्हें देखकर भी नहीं कर पाता है | भारत की वायुसेना ने जब पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक किया था, तब भारत के बिजनेस जगत के एकमात्र रतन टाटा ही थे जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय वायुसेना को बधाई दी और किसी भी सहयोग का वादा भी किया था |

टाटा समूह भरोसे लिए जाना जाता है, जिसके कारोबार का मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना ही नहीं होता है, बल्कि लोगो बिश्वास हासिल करना होता है | टाटा ने ही बताया कि ब्रांड का मतलब भरोसा होता हो| भरोसा प्रोडक्ट की क्वालिटी का, जिसके सहारे बुलंदियों पर पहुंचा जा सकता है | आज भले रिलायंस समूह सबसे बड़ा बिजनेस समूह बन गया है लेकिन टाटा जैसा भरोसा हासिल करने के मामले में मीलों पीछे है | हाल ही जब बीएसएनएल में टाटा ने सिर्फ निवेश किया है, तो लोगों को ये लगा कि उसे टाटा ने अधिग्रहण कर लिया है | इसी आधार पूर्वांचल में बड़ी संख्या में लोगों ने अपना नंबर पोर्ट कर बीएसएनएल का सिम ले लिया | यह टाटा पर भरोसा नहीं तो क्या है? रतन टाटा ने टाटा के इस भरोसे को लोगों के प्रति सेवाभाव में बदल दिया | उनकी कोशिश यही रहती थी कि कोई निराश नहीं | उन्होंने व्यवसाय को, उद्योगों को जन-सेवा की भारतीय सनातन परंपरा से जोड़ने की मिसाल कायम की | 

जब भारत में कोविड महामारी फैली, रतन टाटा ने तुरंत 500 करोड़ रुपए टाटा न्यास से और 1000 करोड़ रुपए टाटा कंपनियों के माध्यम से महामारी और लॉकडाउन के आर्थिक परिणामों से निपटने के लिए दिए। इसके अलावा, उन्होंने डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के रहने के लिए अपने लक्ज़री होटलों का उपयोग करने की पेशकश करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में भी सामने आए।

Wednesday, 2 October 2024

भारतीय राजनीति के वामनावतार..... लाल बहादुर शास्त्री

 भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को अक्सर इसलिए याद किया जाता रहा है कि उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था और उनका निधन ताशकंद में हो गया था | लेकिन लाल बहादुर शास्त्री की कहानी एक ऐसे निष्काम कर्म योगी की जीवन गाथा है जो न केवल एक नेता है, बल्कि एक ऐसा व्यक्तित्व है जो आदर्शों, संघर्षों और सेवा की मिसाल प्रस्तुत करता है | वे राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर एक साधारण व्यक्तित्व के साथ प्रविष्ट हुए, किन्तु अपने अतुलनीय पुरुषार्थ से निरंतर निष्काम कर्म करते हुए असाधारण इतिहास के सदृश विशिष्ट हो गए। छोटे कद-काठी और अत्यंत सादगीपूर्ण पहनावे के साथ अपने निष्काम कर्म, अनवरत अध्यवसाय और अनन्य समर्पण से सिद्ध कर दिया कि कद की लघुता नहीं, कर्म की विशिष्टता और महानता महत्त्वपूर्ण है। यदि कद और पहनावे की भव्यता ही मूल्यांकन का आधार होता, तो केवल उन लोगों को महत्व मिलता जो भौतिक रूप से प्रभावशाली होते, और वास्तविक प्रतिभा और नेतृत्व की आवाज़ दब जाती। लेकिन उनकी ईमानदारी, निस्वार्थता, सेवा भाव, जनहित और विचार, उनके कद से कहीं अधिक महत्वपूर्ण रहे हैं, जिसके बल पर वे वामन से विराट हो गए थे| लाल बहादुर शास्त्री को भारतीय राजनीति का "वामनावतार" मानना काफी दिलचस्प है। वामन भगवान विष्णु के पांचवें अवतार हैं, जो छोटे और साधारण रूप में प्रकट होते हैं, लेकिन उनका प्रभाव अत्यधिक विशाल होता है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि संसाधनहीनता या परिस्थितियों के अभाव में भी एक व्यक्ति अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति से महानता प्राप्त कर सकता है। उन्हें वामनावतार के रूप में देखना इस बात को दर्शाता है कि साधारणता और लघुता में भी एक गहरी शक्ति और प्रभाव निहित होता है।

लाल बहादुर शास्त्री राजनीति के दलदल में रहते हुए भी अपनी नैतिकता और विचारधारा को बनाए रखा | वे कठिनाइयों का सामना करते हुए भी राजनीति की कुटिलताओं और दुश्चक्रों से दूर रहे । उन पर बाहरी दबावों और सांसारिक महत्वाकांक्षाओं का कोई प्रभाव नहीं था, क्योंकि उन्होंने जीवन को एक गहरी आध्यात्मिक दृष्टि से देखा। उन्होंने हमेशा अपनी आंतरिक शक्ति और सिद्धांतों पर जोर दिया | इसी कारण वे संसार में रहते हुए भी सांसारिकता से अछूते थे। वे गीता के 'यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति। शुभाशुभपरित्यागी…' आदर्श को अपनाते थे| उन्होंने अपनी आत्मशक्ति को इस प्रकार विकसित कर लिया था कि उन्हें हर जगह उसी परम सत्ता का दर्शन होता था, जिसके निर्देश पर सभी प्राणी अपने कार्यों में लगे रहते हैं। उनका जीवन-दर्शन झील के पानी की तरह साफ, स्वच्छ और स्पष्ट था|  उसकी गहराई में वे अपनी आत्मा की आवाज को आसानी से सुन सकते थे।

यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि कांग्रेस पार्टी और उनकी सरकार ने शास्त्रीजी को मरणोपरांत समुचित सम्मान और कार्यों का श्रेय नहीं दिया। शास्त्री जी के द्वारा लिए गए निर्णय, जैसे कि खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादन के लिए किए गए प्रयास, आज भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके योगदान को सम्मानजनक मान्यता नहीं मिली। लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण प्रतीक थे। उनकी सादगी, ईमानदारी और नेतृत्व कौशल ने उन्हें जनता के बीच एक आदर्श नेता बना दिया। उन्होंने हमेशा भारतीय संस्कृति के मूल्यों को प्राथमिकता दी। उनका नारा "जय जवान, जय किसान" केवल उनके समय की आवश्यकता नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज के दो प्रमुख स्तंभोंकिसानों और सैनिकोंकी महत्ता को भी उजागर करता है। देखन में छोटन लगे, घाव करे गम्भीर, पाँच फुट दो इंच के छोटे कद के भीतर एक ऐसा दृढ़-निश्चयी देशभक्त रहता है, जिसने 1965 के युद्ध में पकिस्तान घुटने टेकने के लिए न केवल विवश लिया था बल्कि दूसरी ओर अमेरिका द्वारा गेहूं नहीं देने की धमकी को दरकिनार करते हुए भारत को अन्न उत्पादन में भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों का आह्वान भी किया | यह कहना गलत नहीं होगा कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शास्त्री जी द्वारा शुरु की गई उदार आर्थिक नीतियों, कृषि और खाद्यान्न उत्पादन में आत्म निर्भरता, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और चीन को उसी की भाषा में करारा जवाब देने की सुरक्षा व्यवस्था और राजनेताओं के भ्रष्टाचार को कठोरता से रोकने का प्रयास कर रहे हैं|    

प्रकृति ने शास्त्री जी को अटल ध्येय, गांधी के समान सत्य के प्रति आग्रह, चाणक्य जैसी राजनीतिक समझ और बुद्ध जैसी उदारता के उद्दात गुणों से संपन्न किया था। उनकी सरकार ने एकता और अखंडता को बढ़ावा दिया, जो भारतीय संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा है। शास्त्री जी ने यह सिद्ध किया कि नेतृत्व का अर्थ केवल सत्ता में रहना नहीं, बल्कि लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना भी है। उनका जीवन और कार्य उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो भारतीय संस्कृति में निहित हैं और आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। शास्त्री जी ने हमेशा समाज के निचले वर्गों के उत्थान के लिए काम किया और शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के लिए निरंतर प्रयास किए।

वास्तव में, शास्त्री जी को आज़ादी के बाद भारत का पहला आर्थिक सुधारक कहा जा सकता है। यह एक बहुत बड़ा भ्रम है कि 1966 में भारतीय रुपये के अवमूल्यन का निर्णय और क्रियान्वयन इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद किया था। यह सच है कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में ही रुपये का अवमूल्यन किया गया था, लेकिन भारत सरकार की फाइलों में यह दर्ज है कि मुद्रा के अवमूल्यन का निर्णय, जो एक आवश्यक कदम था, शास्त्री जी द्वारा लिया गया था। उन्होंने हमेशा बड़े मुद्दों पर विचार करने के लिए सरल और प्रभावी तरीके अपनाए।

लाल बहादुर शास्त्री के जीवन का हर पहलू एक पाठशाला है, जिसे आत्मसात करना आज के समय और नई पीढ़ी की आवश्यकता है। ईमानदारी एक सर्वोत्तम नीति है किन्तु इसका अनुसरण करते कितने लोगों को जानते हैं हम? लाल बहादुर शास्त्री वास्तव में ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे| शास्त्रीजी की मौत के समय उनकी ज़िंदगी की क़िताब पूरी तरह से साफ़ थी| न तो वो पैसा छोड़ कर गए थे, न ही कोई घर या ज़मीन, न उन्हें कभी सत्ता का लोभ रहा, ना कुर्सी का अभिमान।

 

Friday, 27 September 2024

'एक देश, एक चुनाव'..... राष्ट्रीय हित में सार्थक पहल

 मोदी सरकार ने देश में सभी चुनाव एक साथ करवाने के लिए बनी रामनाथ कोविंद कमिटी की रिपोर्ट ने मुहर लगा दी है| इसके बाद देश में 'एक देश, एक चुनाव' की राह से संशय दूर हो गया है| पीएम मोदी ने ट्वीट किया कि ये हमारे लोकतंत्र को अधिक जीवंत, सहभागी बनाने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है। पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने भी साफ किया था कि मोदी सरकार के इसी कार्यकाल में देश का यह सबसे बड़ा चुनाव सुधार लागू हो जाएगा| बता दें कि बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में भी इसका वादा किया था | हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी पीएम मोदी ने अपने भाषण में भी एक देश एक चुनाव का जिक्र किया था | मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर राजनीतिक दलों के बीच आपसी संवाद के जरिए इस मुद्दे पर एक समझौते का प्रयास किया था, क्योंकि बार-बार चुनाव होने से विकास की रफ्तार बाधित होती है | इसके पहले मोदी सरकार ने अक्टूबर २०१७ में अपने वेबपोर्टल ‘My Gov’ पर इस मुद्दे पर जनता से अपने-अपने विचार भेजने की अपील की थी| इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी, जिसे जिम्मेदारी दी गई थी क कि वह देश मे एक साथ चुनाव करवाने की संभावनाओं पर रिपोर्ट दे| समिति ने अपनी रिपोर्ट इस साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी थी |

पहले चरण में लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने, इसके बाद 100 दिनों के भीतर दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव कराने, पूरे देश मे सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची बनाने और सभी के लिए मतदाता पहचान पत्र भी एक ही जैसा रखने की सिफारिश की है | इन सिफारिशों के लागू होने का निरीक्षण करने के लिए एक 'कार्यान्वयन समूह' के गठन का प्रस्ताव दिया है।

कमिटी ने त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में बहुमत खोने पर, चाहे लोकसभा में हो या किसी राज्य विधानसभा में, नए चुनाव कराने का प्रस्ताव किया है, लेकिन नए सदन का कार्यकाल केवल अगले निर्धारित आम चुनाव तक ही रखने का प्रस्ताव है, ताकि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव को एक साथ कराये जाने की प्रक्रिया बनी रहे | हालांकि इसके लिए आगे का सफर आसान नही होने वाला है। इसके लिए संविधान संशोधन और राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है, जिसके बाद ही इसे लागू किया जाएगा|

आजादी के बाद तकरीबन 15 साल तक विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ चले लेकिन बाद में कुछ राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला और कुछ सरकारें अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले गिर गईं| यही नहीं केंद्र में भी कई बार सरकारें अपने 5 वर्ष की अवधि को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकीं | इसका परिणाम यह हुआ कि न केवल लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव करवाना संभव नहीं सका बल्कि केवल सभी राज्यों के चुनाव भी एक साथ नहीं होने की बाध्यता हो गई | लेकिन अब बार-बार होने वाले चुनावों में आर्थिक और मानवीय संसाधनों के बढ़ते व्यय एवं विकास की प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली बाधाओं को देखते हुए लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है |

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क आर्थिक और मानव संसाधनों की बचत का है | सेंटर फॉर मीडिया स्टटडी (सीएमएस)  की स्टडी के अनुसार 1998 से लेकर 2019 के बीच लगभग 20 साल की अवधि में चुनाव खर्च में 6 से 7 गुना की बढ़ोतरी हुई| 1998 में चुनाव खर्च करीब 9 हजार करोड़ रुपये था जो अब बढ़कर 55 से 60 हजार करोड़ रुपये हो गया है| 2024 में बढ़कर लगभग 1 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है| इसके साथ ही बड़ी संख्या में शिक्षकों सहित एक करोड़ से अधिक सरकारी कर्मचारियों के चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने से न केवल विकास और शिक्षा को अधिकतम नुकसान होता है बल्कि सुरक्षा बलों को भी बार-बार चुनाव कार्य में लगाए जाने देश की सुरक्षा के लिए भारी खतरा का सामना करना पड़ता है | एक साथ चुनाव होने से राजनीतिक दलों को भी दो अलग-अलग चुनावों की तुलना में हर स्तर पर दोहरे खर्च के बजाय कम पैसे खर्च करने होंगे| सबसे अहम यह कि चुनाव कार्य के लिए बार-बार सुरक्षा बलों की अनावश्यक तैनाती से बचा जा सकेगा, जिनका उपयोग बेहतर आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए किया जा सकेगा |

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के दूसरा सबसे प्रबल तर्क यह है कि इससे चुनावों में आम लोगों की भागीदारी बढ़ सकती है| देश में बहुत से लोग हैं जो रोजगार या अन्य वजहों से अपने वोटर कार्ड वाले पते पर नहीं रहते, वे अलग-अलग चुनाव होने की स्थिति में बार-बार मतदान करने नहीं जाते| एक साथ चुनाव होने पर पूरे देश में एक मतदाता सूची होगी जो लोकसभा और विधानसभा के लिए अलग-अलग होती हैं| तीसरा तर्क यह है कि चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू रहने के दौरान विकास संबंधित कई निर्णय बाधित हो जाते है | इसके साथ ही प्रशासनिक मिशनरी के चुनाव कार्यों में व्यस्त होने और शासन तंत्र के प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाने से सामान्य और पहले से चले आ रहे विकास कार्य भी प्रभावित होते है|

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के विरुद्ध सबसे प्रबल तर्क यह दिया जाता है कि अगर देशभर में एक साथ चुनाव हो, तो राज्यों के मुद्दों और हितों की अनदेखी हो सकती है| सारा ध्यान लोकसभा के चुनाव पर होगा | यही नहीं वोट देते समय ज्यादातर लोगों द्वारा एक ही पार्टी को वोट कर सकते हैं | कई बार मतदाता राज्य में किसी क्षेत्रीय पार्टी के मुद्दों के साथ जाता है जबकि केंद्र में किसी मजबूत राष्ट्रीय पार्टी के मुद्दों को तरजीह देते हुए उसके पक्ष में मतदान करते है | इससे मतदाताओं में भ्रम भी पैदा हो सकता है| इससे बड़े राजनीतिक दलों को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है और छोटे क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व खतरे में पद जायेगा|

इसके बावजूद लोकसभा और विधानसभा दोनों का चुनाव एक साथ कराना निःसंदेह राष्ट्रीय हित में होगा। अब तक का अनुभव यही रहा है कि सरकारें जातीय, सामुदायिक, धार्मिक, क्षेत्रीय समीकरणों को देखते हुए राष्ट्रीय हित में नीतियाँ बनाने और उनके कार्यान्वयन से बचती रही हैं। हो सकता है नई व्यवस्था से निजात मिले | लेकिन इसपर अमल करने से पूर्व संसद और संसद से बाहर गहन विचार विमर्श की जरुरत है |