Thursday 31 January 2019

सांस्कृतिक उपनिवेशवाद और विषैला वामपंथ


औपनिवेशिकता एक देश का दूसरे देश पर अधिकार करना मात्र नहीं है, और यह महज राजनीतिक विचारधारा भी नहीं है| यह एक सांस्कृतिक वर्चस्व की लड़ाई है | यह एक खेल भी है जिसमें खेल का मैदान लोगों का मानस है | इस खेल में वामपंथी माहिर हैं, चाहे वे कहीं के भी हों-भारत के हों या पश्चिम के| वैसे भारत के वामपंथी पश्चिमी वामियों के तलुए चाटुकार हैं| कहने का मतलब इतना ही है कि भारत के वामपंथी पश्चिम के वामियों के बौद्धिक उपनिवेश हैं | खेल के नियम भी उन्ही के बनाए हुए है | नया नियम है कि किसी देश की भौगोलिक और संवैधानिक संप्रभुता पर कब्जा न करके वहाँ के लोगों के मन-मस्तिष्क पर कब्जा करना है | जिन अंग्रेजो ने भारत पर राजनीतिक अधिपत्य स्थापित किया था, वह वामपंथी अंग्रेज नहीं था बल्कि पूंजीवादी अंग्रेज था | लेकिन जब से देशों की भौगोलिक इकाई पर कब्ज़ा करके उसकी संप्रभुता को हस्तगत करने का खेल समाप्त हो गया, तब यही पूंजीवादी अंग्रेज वामपंथ का दामन थाम लिया और इस तरह से पूंजीवादी-वामपंथ जैसा एक अत्यंत ही खतरनाक समीकरण बन गया| इसका यह मतलब नहीं कि वामपंथ का दामन पाक साफ था| यह खतरनाक समीकरण इसलिए बना क्योंकि दोनों एक दूसरे के पूरक थे| इन्होने जो नया खेल शुरू किया वह सांस्कृतिक उपनिवेशवाद का खेल है| इस खेल में कथित शोषण और दमन के नाम पर फूट डालने और लोगों को लड़ाने पर, गृहयुद्ध भड़काने पर और अपनी कठपुतली सरकार बनाने पर कोई रोक नहीं है | इनका एक ही उद्देश्य था कि दुनिया के लोगों को अपने जैसा सोचने, समझने और आचरण करने पर विवश करना, भले ये ऊपर से सांस्कृतिक बहुलता और विविधता के संरक्षण का ढोल पिटते रहे हों | वे व्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तियों के बीच समानता के नाम पर समलैंगिकता को गौरवान्वित करते है और चाहते है ही नहीं बल्कि आपको भी मजबूर करते है कि आप भी अपने बच्चों के लिए इसे स्वीकार करें| यदि वे अपनी दमित भावनाओं को 'किस ऑफ़ लव' और 'फ्री सेक्स' कहते है तो वे चाहते है कि आप भी इसे प्रेम की अभिव्यक्ति की आजादी माने | स्वतंत्रता और समानता के नाम पर अगर वह अपने माँ-बाप और बड़ों का सम्मान नहीं करता है, अनैतिक और उच्श्रृंखल बर्ताव करता है तो आपको भी इसे ही मुक्ति का मार्ग मानने के लिए विवश किया है | अगर उन्हें परिवार संस्था एवं उसके मूल्यों पर भरोसा नहीं है तो आपको भी विश्वास दिलाता है कि पारिवारिक दायरों में आपके बच्चों का दम घुट रहा है | अगर वह बिना बाप का है तो आपके देश को भी पितृहीन पीढ़ी बनने को विवश कर रहा है| अगर उन्होंने राम और कृष्ण को एवं रामायण और महाभारत को काल्पनिक घोषित कर दिया तो हम भी उसे काल्पनिक मानकर अपनी ही संस्कृति और परम्पराओं से घृणास्पद दूरी बना लेते हैं | उन्होंने कहा कि 400 वर्ष ईसा पूर्व अयोध्या का कोई अस्तित्व नहीं था, लेकिन यह सवाल खड़ा करने कि तब ईसा का कहाँ अस्तित्व था, आपने मान लिया कि अयोध्या का कोई अस्तित्व नहीं था| उन्होंने कहा कि आर्य बाहर से आये थे तो आपने मान लिया लेकिन जयशंकर प्रसाद जैसे कवि कहते रह गए कि हम कही से नहीं आये थे, हमारा मूल यही है तो यह आपके मन-मस्तिष्क को झंकृत नहीं कर पाया | वामपंथियों ने अंग्रेजियत को आधुनिकता का पर्याय घोषित किया तो हमने कान्वेंट स्कूलों के कुकुरमुत्तों का जंगल खड़ा कर दिया, जहाँ से जिस गुलाम मानसिकता की पौध तैयार हो रही है जिन्हें अपनी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के बारे में कुछ पता ही नहीं होता।

उनके लिए पूरी सृष्टि भोग की वस्तु है-चाहे वह इंसान ही क्यों न हो, फिर कुत्ते, बिल्ली, भेड़ गाय की क्या बिसात है| उनके लिए ईसा मसीह धर्मनिरपेक्ष है इसलिए वे (और आप भी ) क्रिसमस बड़े शान से मनाते है, लेकिन उनकी नजर में यदि पीपल को जल देना ढोंग है तो आप पीपल को काट देने में ही अपना शान समझते हो| यदि वे गोमांस भक्षण को आधुनिकता कहते है तो आप गाय के बछड़े का सर काटकर सड़क पर खुलेआम प्रदर्शन करते है| कहने का तात्पर्य यह है उनकी पाशविक परभक्षी प्रवृति आपको केवल सदियों से आपके जीवन और समाज का आधार रहे जंतुओं की हत्या करने और उनके भक्षण को गौरवान्वित करने पर विवश नहीं करती है बल्कि उसे अपने ही अन्य साथी मनुष्यों, प्रकृति और सभ्यता-संस्कृति की हत्या करने को भी प्रेरित करती है| इस काम के लिए वे बहुत बारीकी से मीडिया का इस्तेमाल करते है, जिनमें उनकी मानसिकता के गुलाम लोग उनके मोहरे होते है| ये वो मोहरे है जो झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सदियों से विद्यालयों और गुरुकुलों में होते आ रहे देश प्रार्थना, योग व्यायाम विशेषकर सूर्य नमस्कार तथा बाद में वन्देमातरम हटाने के लिए अभियान चलाते रहे है |
सांस्कृतिक उपनिवेशवाद और विषैले वामपंथ के कुचक्र ने भारतीय समाज, संस्कृति और इतिहास में काफी ज़हर बोया है और कथित धर्मनिरपेक्षता और विकृत आधुनिकता के नाम पर कटुता एवं झूठ को बढ़ावा दिया| यह जल्लादों का वह गिरोह है जो अपने विरोधी विचार वालों के साथ धोखाधड़ी करने, उन्हें साम्प्रदायिकघोषित करने, राष्ट्र के गौरवशाली प्रतीकों और पन्नों को विकृत करने के लिए संवैधानिक, शैक्षणिक संस्थाओं और मीडिया का इस्तेमाल चाकू के रूप में करता रहा है |



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