नोटा को लेकर जो राजनीतिक घमासान मचा हुआ है, वह लोकतंत्र को लेकर स्वार्थी
तत्वों की शातिरपना या हमारी जागरूकता की कमी से अधिक कुछ नहीं है | दिनकर की
कविता की एक पंक्ति है- समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध-तटस्थ होना एक तरह से अपराध से कम
नहीं है | महाभारत के युद्ध में सबसे ट्रेजिक स्थिति उस पात्र की हुई है जो तटस्थ
होने के लिए अभिशप्त है | संजय तटस्थ द्रष्टा मात्र है जो स्वीकार करता है-'मुझ सा
निरर्थक होगा कौन'| निराकार निषेध का कोई अर्थ नहीं होता |
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा संसद में एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के
फैसले को पलटने के लिए विधेयक पारित करने के बाद एक बड़ा वर्ग, जो बड़ी उम्मीद के
साथ 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था, भाजपा से बिदका हुआ और
स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहा है | इसके बावजूद यह वर्ग भाजपा विरोधी किसी भी
अन्य दल की ओर रुख करना नहीं चाहता है, भले ही वह मतदान करने नहीं जाय या जाता भी
है तो नोटा का बटन दबाना चाहता है | जो भाजपा विरोधी है या जो भाजपा के भीतर मोदी
सरकार के विरोधी है, वे बड़े शातिर अंदाज में नोटा के पक्ष में अभियान चला रहे है|
चुनाव आयोग ने नोटा का विकल्प इसलिए नहीं दिया है कि आप नकारात्मक रवैया अपनाये |
नोटा का विकल्प अपवाद की स्थितियों के लिए ही अपनाया जाना चाहिए | यह सही है कि
मौजूदा सरकार ने एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने से पहले सवर्ण
जनता की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा और इस एक्ट के कारण होने वाले दुरुपयोग की
स्थितियों पर विचार नहीं किया और दलित वोटों को आकर्षित करने के लिए आनन-फानन में
ऐसा निर्णय ले लिया | लेकिन जब एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसला आया तो
भाजपा और मोदी विरोधियों ने किस तरह उसे दलित विरोधी साबित करने का अभियान छेड़
दिया गया मानो यह फैसला सुप्रीम कोर्ट का नहीं, बल्कि केंद्र सरकार का हो | अब वही
लोग पिछले दरवाजे से केंद्र सरकार के खिलाफ सवर्णों में गुस्सा भड़काने में लग गए
है। क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जो लोग नोटा के पक्ष में अभियान चला रहे है,
उन्होने सवर्णों के पक्ष में या सवर्णों के लिए कोई विकल्प रखा या नहीं | नोटा कोई
विकल्प या सवर्णों की समस्या का समाधान नहीं है, यह अनिर्णय की स्थिति है |
जो लोग नोटा को अंतिम विकल्प मान चुके है, उन्होंने कभी ये सोचा है कि केवल जाति/मज़हब/भाषा
और नस्ल देखकर राजनीति करने वाले नेताओं को किसने बढाया है ? नेताओं के ऐसे
मनबढ़ेपन, जिसके कारण वे आपको एक जाति/मज़हब/भाषा और नस्ल से अधिक कुछ नहीं समझते
है, के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार हम अधिसंख्य मतदाता हैं जो उनकी योग्यता, कार्यकुशलता, मानसिकता, सोच और नेतृत्व-क्षमता इत्यादि देखने की बजाय उनकी जाति/मज़हब/भाषा
और नस्ल को पहले देखते है | यह हमारी राजनीतिक जागरूकता की कमी ही नहीं बल्कि
नैतिक पतनशीलता का भी परिणाम है |
वैसे जितना भसड़ नोटा को लेकर मचा है, उतना वैसे है नहीं। यह एक
नकारात्मक रणनीति है| इसका केवल एक ही उद्देश्य है कि जो फ्लोटिंग मतदाता 2014 के
चुनाव में भाजपा या एनडीए के पक्ष में आये थे, उन्हें दोबारा उनके पक्ष में जाने
से रोकना है, बनिस्पत कोई सार्थक या बेहतर विकल्प प्रदान करना | यहाँ तक कि ऐसे
मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की नोटा पक्षकारों की कोई योजना है या नहीं, लेकिन
नोटा को बेहतर विकल्प घोषित करने का हतकर्म किए जा रहे हैं, क्योंकि वे इतने शातिर
है कि आपकी समस्याओं का कोई समाधान किए बिना आपको पूरी तरह से राजनीतिक प्रक्रिया
से बेदखल कर देने के लिए विवश कर रहे है |
अब मान लीजिये कि आप राजनीतिक रूप से काफी जागरूक है, अपने अधिकारों के प्रति
पूरी तरह से सचेतन है, लेकिन आक्रोश में चुनावी प्रक्रिया से दूर रहना या नोटा के
द्वारा तटस्थ रहना उसी तरह है जैसे अपने आगे कुल्हाड़ी रखकर उसपर स्वयं ही पैर
मारते हो | धर्मवीर भारती ने अपनी एक कविता 'तटस्थता:तीन आत्मकथ्य' में स्थापित
किया है कि जीवन में तटस्थता एक भयानक यातना है | महाभारत में रुक्मी की सेना सबसे
बड़ी ट्रेजेडी यही थी कि उसके महान योद्धा दोनों पक्षों में अस्वीकार्य थे-"हम
बड़े जोधा थे / बड़े फौजदार थे / मगर क्या करते हम / हम दोनों ही पक्षों को अस्वीकार
थे|" और अपनी छावनी में पड़े-पड़े "दर्शन हांकते थे/कौन कहाँ सही है/कौन
कहाँ गलत है/ बड़ी निष्पक्षता से बैठकर आंकते थे" | मतलब अनिर्णय और
विकल्पहीनता की इस स्थिति से बाहर निकालिए और शांतचित होकर ठण्डे दिमाग़ से सोचिए और
लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से बाहर करने की धूर्तता को समझिए अपने हितों के साथ ही
समाज और देश हितों के लिए चुनाव प्रक्रिया में सकारात्मक भागीदारी कीजिए क्योंकि चुनावों
में पहले से ही आपकी भागीदारी कम रही है, नोटा के द्वारा उस वोट प्रतिशत को आगे भी
कम कर और इन धूर्त नेताओं के जाल(कभी एससी/एसटी
एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दलितों का शोषण तो कभी इस फैसले को पलटने के
बाद सवर्णों के साथ दुरूपयोग की अफवाह) में फंसकर अनिर्णय
का अपराध मत कीजिए |
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