वियना सर्किल से उद्भूत दार्शनिक विचारधारा तार्किक प्रत्यक्षवाद ने नाम से जानी जाती है | इस विचारधारा के दो मुख्य उद्देश्य थे-
(1)
दर्शन का कार्य सुनिश्चित करना ( वैज्ञानिक भाषा
का तार्किक विश्लेषण)
(2)
तत्व मीमांसा का निषेध
जिस मापदंड के आधार पर तार्किक भाववादियों
तत्वमीमांसा के निषेध का प्रयास किया, वह “अर्थ की सत्यापनीयता” का सिद्धांत (The verification theory of meaning) कहलाता
है | इस सिद्धांत की प्रारंभिक रुपरेखा मॉरिज स्लिक के दर्शन में दिखाई देती है,
जबकि इस सिद्धांत का परिष्कृत रूप ए जे एयर के दर्शन में मिलता है | उनके अनुसार
वही कथन सार्थक है जो या तो विश्लेषणात्मक हैं या फिर अनुभव द्वारा सत्यापित
|
ए जे एयर के इस विचार से तीन बातें उभर कर
सामने आती हैं-
(2) यहाँ अर्थ का आशय संज्ञानात्मक
अर्थ(Cognitive Meaning) से हैं |
(3) यह सार्थक कथनों को निरर्थक कथनों से पृथक करने का मापदंड प्रस्तुत करता है |
सत्यापनीयता सिद्धांत के उद्भव में
पूर्ववर्ती विट्गेंस्टीन के दर्शन की अहम भूमिका रही है | विट्गेंस्टीन कहते हैं
कि किसी तर्कवाक्य का अर्थ वह है जिसे वह प्रस्तुत करता है|
सत्यापन किन-किन रूपों में होता है और इसकी सीमाएँ क्या है, इसको लेकर तार्किक भाववादियों में मतभेद है | इस मतभेद के कारण इसमें निरंतर विकास एवं परिवर्तन होता रहा है| मॉरिज स्लिक के दर्शन में सत्यापनीयता सिद्धांत की प्रारंभिक रुपरेखा दिखाई देती है| इसके अनुसार किसी वाक्य का अर्थ इसके सत्यापन की विधि है | यहाँ समस्या यह है कि एक ही कथन का सत्यापन अनेक तरीकों से किया जा सकता हैं | परिणामस्वरूप एक ही प्रतिज्ञप्ति का एक से अधिक अर्थ हो सकता है | साथ ही अनुभव व्यक्तिगत और सीमित होता है | अतः अर्थ और विधि को एक मानने से अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है | कार्नेप शब्द-भंडार और वाक्य-विन्यास के आधार पर किसी वाक्य की अर्थपूर्णता की व्याख्या की | इसके अनुसार वाक्य में अर्थहीनता तब आती है जब या तो शब्दों से कोई अर्थ सूचित नहीं होता है या वाक्य संरचना से संबंधित नियमों का उल्लंघन हुआ हो | जैसे- वह बंध्या का पुत्र है | ईमानदारी गेंद खेल रही है |
इस सिद्धांत का परिष्कृत रूप ए जे एयर के दर्शन में मिलता है | एयर सत्यापनीयता
सिद्धांत को तीन भागों में वर्गीकृत कर प्रस्तुत करते हैं-
(1) व्यावहारिक एवं सैद्धांतिक सत्यापन
(2) सबल और निर्बल सत्यापन
(3) परोक्ष एवं अपरोक्ष सत्यापन
1. जिस कथन के सत्य या असत्य होने का निर्णय व्यवहार
में उपलब्ध साधनों के द्वारा शीघ्र हो जाए, वह व्यावहारिक सत्यापन है | जैसे-पानी
ठंडा है | परन्तु केवल व्यावहारिक सत्यापन को मानने पर बहुत से वैज्ञानिक कथन और
भविष्योन्मुखी कथन भी निरर्थक हो जाएंगे, क्योंकि इनका व्यावहारिक सत्यापन संभव
नहीं है| ए जे एयर ने इसीकारण व्यावहारिक सत्यापन के साथ-साथ सैद्धांतिक सत्यापन को भी
स्वीकार किया है | उनके अनुसार सत्यापन दोनों स्तरों पर संभव है | इसीकारण ‘मंगल
ग्रह पर जीवन है’ जैसे भविष्योन्मुखी कथन सार्थक कथन हैं |
परन्तु तत्वमीमांसीय कथन न तो व्यावहारिक दृष्टिकोण से सत्यापित होते हैं और न ही सैद्धांतिक दृष्टिकोण से | जैसे-सभी मनुष्यों से प्रेम करता हैं | यह कथन निरर्थक कथन हैं |
2. सबल और निर्बल सत्यापन- जब किसी कथन का सत्यापन
इंद्रिय अनुभव द्वारा निश्चित रूप से होता हैं तो वह सबल सत्यापन कहलाता हैं |
निर्बल अर्थ में सत्यापन तब माना जाता है जब किसी कथन की सत्यता और असत्यता का
निर्णय संभाव्य रूप से होता है | यदि केवल सबल सत्यापन को ही स्वीकार किया जाए,
अर्थात केवल सबल अर्थ में सत्यापन माना जाए तो बहुत से वैज्ञानिक एवं सामान्य कथन
भी निरर्थक हो जाएंगे | जैसे सभी मनुष्य मरणशील हैं | वस्तुओं में आकर्षण शक्ति
होती है| ऐसे कथनों को निश्चयात्मक रूप से सत्यापित नहीं किया जा सकता हैं |
मॉरिज
स्लिक का मानना है कि केवल सबल सत्यापन को ही स्वीकार करना चाहिए | निर्बल सत्यापन को वे Important
Nonsense कहते है | परन्तु स्लिक की बातों को मानने पर वस्तुस्थिति स्पष्ट नहीं
हो पाती है |
ए
जे एयर प्रारंभ में केवल निर्बल सत्यापन को ही स्वीकार करते हैं | इस पर लवरोविज का कहना है कि निर्बल
शब्द सबल सापेक्ष है | बिना सबल को स्वीकार किए निर्बल को नहीं माना जा सकता | तब ए
जे एयर “Language, Truth &
Logic”
के दूसरे संस्करण में यह स्वीकार करते है कि कुछ
कथन सबल अर्थ में भी सत्यापित होते हैं | ये विशेष संवेदनाओं को अभिव्यक्त करते
हैं, जिन्हें एयर ‘मूल प्रतिज्ञप्ति’ (Basic Preposition) कहते है | जैसे- मुझे इस
समय पेट में दर्द है | कार्नेप ऐसी प्रतिज्ञप्तियों को “प्रोटोकॉल प्रतिज्ञप्ति”
कहते हैं |
परन्तु तत्वमीमांसीय कथन न तो निर्बल अर्थ में सत्यापनीय है और न सबल अर्थ में सत्यापित हैं | अतः ऐसे कथन निरर्थक हो जाएंगे |
3. परोक्ष एवं अपरोक्ष सत्यापन-जब किसी प्रतिज्ञप्ति का सत्यापन इंद्रिय अनुभव द्वारा प्रत्यक्ष रूप से
हो जाए तो उसे अपरोक्ष सत्यापन कहते हैं | इस प्रकार की प्रतिज्ञप्तियों को
निरीक्षण प्रतिज्ञप्तियां माना जाता है | जब किसी कथन का सत्यापन परोक्ष रूप से हो
तो उसे परोक्ष सत्यापन कहा जाता है | यहाँ समस्या यह है कि यदि केवल अपरोक्ष
सत्यापन को माना जाए तो ऐतिहासिक कथनों के साथ-साथ बहुत सारे वैज्ञानिक कथन भी
निरर्थक हो जाएंगे |
कार्नेप का कहना है कि यदि किसी कार्य का अपरोक्ष
सत्यापन हो जाता है तो फिर उसे उत्पन्न करने वाले कारण का भी परोक्ष सत्यापन हो
जाता है | जैसे- विद्युत् धारा का परोक्ष सत्यापन जलते हुए बल्ब को देखकर किया जा
सकता है |
ए जे एयर के अनुसार कोई कथन परोक्ष रूप से
सत्यापित तब माना जाएगा जब इसमें एक या अनेक कथनों को जोड़कर एक ऐसे कथन को निगमित
किया जाए जो-
·
केवल उस अन्य कथन से निगमित ना हो|
·
जिसका प्रत्यक्ष सत्यापन संभव हो |
निरीक्षण कथन का संबंध किसी विशेष अनुभव सूचक कथन
से होता है | यहाँ एयर यह कहते है कि- (कल रात) वर्षा हुई- इसे हम परोक्ष रूप से सत्यापित कर सकते हैं |
वर्षा होने पर गढ्ढे
भरे दिखाई देते है | यहाँ ‘गढ्ढे भरे दिखाई देते है’ निरीक्षण कथन है, जिसे देखा
जा सकता है | यह ‘वर्षा हुई’ कथन से निगमित नहीं हो रहा है, इसलिए प्रत्यक्ष
सत्यापन संभव है |
-वर्षा हुई |
-वर्षा होने पर गढ्ढे भरे दिखाई देते है |
-वर्षा हुई
-गढ्ढे भरे दिखाई दे रहे हैं
यहाँ जो निष्कर्ष निकलता है, वह प्रत्यक्ष रूप से
सत्यापित है | अतः लिया गया कथन भी परोक्ष रूप से सत्यापित होता है |
इस पर आइसिया बर्लिन का कहना है कि उपरोक्त आधार पर
किसी भी तत्वमीमांसीय सत्ता को सत्यापित किया जा सकता है | जैसे- ईश्वर का
अस्तित्व है | इसे अप्रत्यक्ष रूप से सत्यापित किया जा सकता है | इसे हम निम्न रूप
से देख सकते हैं-
यदि ईश्वर का अस्तित्व है तो घास हरी है
ईश्वर का अस्तित्व है
घास हरी है
यहाँ निष्कर्ष का प्रत्यक्ष सत्यापन हो जाता है |
अतः इस आधार पर ईश्वर का अस्तित्व है का परोक्ष सत्यापन भी मानना पड़ेगा |
इस समस्या के कारण एयर अपने मत में संशोधन करते
हुए कहते है कि किसी कथन को जिस कथन से मिलाया जाए –
·
या तो विश्लेषणात्मक हो
·
या प्रत्यक्ष रूप से सत्यापित हो
·
या तो वह स्वतंत्र रूप से परोक्षतः सत्यापित हो
ए जे एयर के इस संशोधन से भी समस्या का समाधान नहीं हो पाता है और ए जे एयर ने भी स्वीकार कर लिया कि इस सिद्धांत को त्रुटि रहित रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है | आलोचकों ने उनके इस सिद्धांत में अनेक त्रुटियों का उल्लेख किया|
1.
ए जे एयर का यह कथन कि वही
कथन सार्थक है जो या तो विश्लेषणात्मक है या अनुभव द्वारा सत्यापित | इस मापदंड पर
स्वयं यह सिद्धांत खरा नहीं उतरता है क्योंकि यह न तो अनुभव द्वारा सत्यापित है और
न विश्लेषणात्मक कथन हैं |
2.
रसेल के अनुसार कुछ वैज्ञानिक कथनों का ना तो व्यावहारिक सत्यापन संभव
है और न ही सैद्धांतिक| एक बड़े परमाणु बम के विस्फोट से समस्त मानवता का विनाश हो
जाएगा | यद्यपि इसका सत्यापन संभव नहीं है, परन्तु इसे निरर्थक भी नहीं माना जा
सकता है|
3.
इस सिद्धांत में सत्यापन को लेकर भ्रम की स्थिति है | यहाँ प्रश्न है
कि सत्यापन वाक्य का होगा या प्रतिज्ञप्ति का | वाक्य सार्थक या निरर्थक होता है
जबकि प्रतिज्ञप्ति सत्य या असत्य होती है | ऐसी स्थिति में वाक्य का सत्यापन नहीं
हो सकता हैं | दूसरी ओर प्रतिज्ञप्तियों का सत्यापन हो सकता है, परन्तु उन्हें
सार्थक या निरर्थक नहीं कहा जा सकता | इस कठिनाई से बचने के लिए एयर कथन शब्द का
प्रयोग करता हैं परन्तु यह समाधान तार्किक दृष्टि से स्वीकार्य नहीं है क्योंकि
तर्कशास्त्र में प्रतिज्ञप्ति और कथन में अंतर किया गया है |
4.
सत्यापनीय सिद्धांत केवल इंद्रिय अनुभव को हो सत्यापन के रूप में
देखता है | लेकिन ऐसा मानने पर धार्मिक अनुभूति, नैतिक अनुभूति, सौन्दर्य परक
अनुभूति आदि निरर्थक हो जाएंगे |
5. परवर्ती विट्गेंस्टीन के अनुसार सत्यापन सिद्धांत के आधार पर वाक्य के अर्थ के संबंध में कथन नहीं किया जा सकता | उनके उपयोग सिद्धांत के अनुसार किसी वाक्य के अर्थ का सत्यापन उस कथन के प्रयोग से होता है, अनुभव द्वारा सत्यापन के आधार पर नहीं |
यद्यपि यह सिद्धांत पूरी तरह से त्रुटि रहित नहीं है लेकिन इस सिद्धांत का व्यापक महत्त्व है | इस सिद्धांत ने तत्कालीन स्वप्नलोकी दुनिया से लोगों को वास्तविकता के धरातल पर लाने का प्रयास किया | इससे मानववाद के विकास को प्रेरणा मिली| तत्वमीमांसा के प्रति उदासीनता बढ़ी और दर्शन के क्षेत्र में ज्ञानमीमांसा का पक्ष प्रबलता के साथ उभर कर सामने आया |