प्रयागराज महाकुंभ में अब तक 35 करोड़ से अधिक श्रद्धालु स्नान कर चुके है और मौनी अमावस्या के दिन हुई भगदड़ और कुछेक आगजनी की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को छोड़कर कुलमिलाकर मेला शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है, जो प्रशासन की तैयारियों और सुरक्षा उपायों का अच्छा संकेत है। मौनी अमावस्या की रात को हुई दुखद घटना निश्चित रूप से सभी के लिए एक गहरी पीड़ा का कारण बनी| लेकिन ऐसे समय में श्रद्धालुओं की भक्ति और अध्यात्मिक शक्ति किसी भी विपरीत परिस्थिति से उबरने में मदद करती है। इस त्रासदी से उबरकर श्रद्धालुओं ने श्रद्धा और भक्ति के साथ अपने धार्मिक और अध्यात्मिक अनुष्ठानों को पूरा किया | जिस तरह से संतों, श्रद्धालुओं, प्रशासन और राज्य सरकार ने मिलकर स्थिति को संभाला, वह काबिलेतारीफ है। अखाड़ों ने अपने धार्मिक अनुष्ठान की प्राथमिकता को दरकिनार कर श्रद्धालुओं की सुरक्षा सर्वोपरि मानते हुए स्थिति सामान्य होने तक अमृत स्नान करने से इनकार कर दिया था | यह हमारी महान संत परंपरा की मानवीयता, संवेदनशीलता और सहनशीलता का उदाहरण है | यह कदम न सिर्फ एक परंपरा के प्रति सम्मान को दिखाता है, बल्कि समाज के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी को भी उजागर करता है। संतों का धैर्य और संयम, श्रद्धालुओं द्वारा सहनशीलता, और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा तत्परता दिखाना एक आदर्श उदाहरण है कि कठिन परिस्थितियों में भी एकजुटता और समर्पण से समाधान निकाला जा सकता है। राज्य सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाएँ, जैसे चिकित्सा सेवाएँ, सुरक्षा प्रबंध और यातायात सुविधाएँ, वास्तव में लोगों की सुविधा के लिए महत्वपूर्ण थीं।
प्रयागराज में महाकुंभ का अयोजन पृथ्वी
पर मानवता का सबसे बड़ा और अद्वितीय समागम है, जिसका न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि यह विज्ञान,
ज्योतिष, और
आध्यात्मिकता का एक दुर्लभ संगम है। यह हमारे समाज की अस्मिता, संस्कृति और सनातन धर्म का भी महाकुंभ
है। यह केवल नदियों का समागम नहीं, यह विविध संस्कृतियों, संस्कारों, विभिन्न
आश्रमों, और अखाड़ों का समागम है, यह धर्म, अर्थ और मोक्ष का समागम है, देश और विदेश का समागम है। यह हमारे
सांस्कृतिक धरोहर की गहरी जड़ों से जुड़ा हुआ है, जो सदियों से हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। कुम्भ मेला उस
महान परंपरा का प्रतीक है, जिसमें
हम अपने जीवन के उच्चतम आदर्शों,
आध्यात्मिक जागरण और सामाजिक सद्भावना को अपनाते हैं।
महाकुंभ धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक चेतना की
यात्रा से लेकर यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ा एक विराट आयोजन है। यह तीर्थयात्रा
नहीं, बल्कि
आत्मयात्रा है। यह याद दिलाता है कि हम केवल शरीर नहीं, बल्कि अनंत चेतना हैं। जो इस सत्य को
समझ लेता है, वही
सच्चे अर्थों में महाकुंभ के उद्देश्य को पूर्ण करता है। यहां साधु-संत, विद्वान और भक्त आत्मबोध, विचार-विमर्श और सत्संग के मंथन के लिए
जुटते हैं। इस मंथन से जो भी निकले,
वह सबके लिए होता है।
इस कुम्भ में किसी भी तरह की ऊंच-नीच
या भेदभाव से परे संतों और
श्रद्धालुओं का जो सैलाब उमड़ पड़ा, वह सनातन का ऐसा महासागर है जो
उनलोगों समाजद्रोहियों, जो जाति-जाति से लेकर जातिगत जनगणना तक गलाफाड़ रोदन करते
है, के लिए एक मुखर संदेश है कि हमें अपनी पहचान को किसी संकीर्ण दायरे में नहीं
बांधना चाहिए। कोई किसी से यह नहीं पूछता कि कौन किस प्रदेश
या जाति से है। इस महाकुंभ में समूचे भारत की रीति-रिवाज, खानपान, रहन-सहन और वेशभूषा मिलकर भारतीय संस्कृति का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत
कर रहे हैं। महंगाई और आवागमन की चुनौतियों के बावजूद, श्रद्धालुओं का उत्साह बिल्कुल भी कम
नहीं हुआ है।
यह किसी एक जगह पर भारत की संपूर्णता
का प्रतिनिधित्व करता है। महाकुंभ एक ऐसा अवसर है, जहां दुनियावी
वैभव और आत्मिक वैराग्य दोनों का मिलन होता है। वैभव के साथ वैराग्य का यह संगम न
केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है, बल्कि यह बताता है कि किसी भी जीवन में शांति और संतुलन को बनाए रखना
जरूरी है। एक ओर जहां हमारे पास सांसारिक संपत्ति और सुख-सुविधाएं हो सकती हैं, वहीं दूसरी ओर हमें आत्मिक शांति और
संतुलन की ओर भी ध्यान देना चाहिए। यह मेला सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि
जीवन के गहरे अर्थ और उद्देश्य को खोजने की यात्रा भी है। यहां तक कि विदेशी लोग भी इस महान
आयोजन का हिस्सा बनते हैं और भारतीय संस्कृति का अनुभव करते हैं।
यद्यपि उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ
मेले के आयोजन के लिए तमाम सुविधाजनक प्रबंधों और डिजिटल तैयारियों करोड़ों
श्रद्धालुओं के लिए महाकुंभ के अनुभव को यादगार बनाने की पुरजोर कोशिश की है | फिर
भी जब किसी बड़े आयोजन में कोई त्रासदी होती है, तो यह केवल एक घटना नहीं होती, बल्कि पूरे आयोजन के दौरान की गई व्यवस्थाओं और निर्णयों की भी परख
होती है और यह समझा जाए कि किस स्तर पर चूक हुई। महाकुंभ की सफलता या विफलता न
केवल श्रद्धालुओं के अनुभव पर, बल्कि आयोजकों की योजना, प्रबंधन,
और
सुरक्षा व्यवस्थाओं पर भी निर्भर करती है। महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजन में, जहां लाखों लोग आते हैं, वहां वीआईपी कल्चर एक बड़ी विसंगति बन
जाती है। यह वीआईपी कल्चर आम लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाता है | आम
श्रद्धालुओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, क्योंकि वे ही आयोजन की असल ताकत होते
हैं। संत-महंतों और अखाड़ों के महत्व को
समझते हुए, आम श्रद्धालुओं
के लिए भी सुलभता और सुरक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।
तमाम किन्तु-परन्तु के बावजूद यह महाकुंभ
एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत करता है जिसके तहत धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों को आर्थिक
वृद्धि से जोड़कर समग्र विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है। महाकुंभ जैसे
विशाल धार्मिक आयोजन ने न केवल सनातन की जड़ों को मजबूत किया है, बल्कि यह एक शक्तिशाली आर्थिक इंजन बनकर पर्यटन, होटल व्यवसाय, परिवहन, स्थानीय विपणन, और
कृषि जैसे क्षेत्रों में भी अर्थव्यवस्था को गति प्रदान किया है साथ ही वैश्विक
स्तर पर हमारे देश की साख और पहचान को भी बढ़ा रहा है |