एक समय था जब बिहार के
गांवों में बच्चे काल्पनिक नदी के पानी की थाह लगाने वाला खेल-घोघो रानी कितना
पानी, कितना पानी-का खेल खेला करते थे। यह खेल अब भी खेलते है
लेकिन अब इसके खेल के अवसर कम हो गए हैं क्योंकि तब बिहार में बरसात खूब हुआ करती
थी। पिछले कुछ वर्षों से बिहार में मानसूनी बारिश लगातार कम होती जा रही है जिसके
कारण बिहार की धरती पानी के एक-एक बूँद के लिए मोहताज होती जा रही है। बिहार के गांवों
के पारंपरिक जलस्रोत कुओं-तालाबों धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे है | हिमालय से
निकलकर बिहार से गुजरने वाली नदियाँ भी पानी के लिए तरसने लगी है | एक ओर बारिश की
कमी एवं सतही जल को रोककर रखने की व्यवस्था के अभाव और दूसरी ओर बढ़ती आबादी के लिए
पानी की मांग, कृषि कार्य के लिए भूमिगत जलस्रोतों के अतिशय दोहन, और भूमिगत जल के
प्रदूषित होते जाने के कारण पानी का संकट विकराल होता जा रहा है|
इस वर्ष मानसूनी सीजन में
एक तो देर से (जुलाई में) बारिश शुरू हुई, दूसरे सीजन की समाप्ति (सितम्बर के अंत
में) तक सामान्य से 40-85 फीसदी तक कम बारिश हुई है| कई जिलों बारिश की यह कमी
70-75 फीसदी रही है | इसे देखते हुए बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने हाल ही में राज्य
के 23 प्रभावित जिलों के 206 प्रखण्डों को सूखाग्रस्त घोषित किया है। बारिश कम
होने से नहरों से भी पानी गायब हो गया | कई जिलों में किसानों ने अपनी धान की
फसलों को बचाने के लिए बोरिंग चलाकर भूमिगत जल का इस कदर दोहन किया कि कई इलाकों
में कुओं का जल स्तर काफी नीचे चला गया और कहीं-कहीं तो चापाकलों से पानी निकलना
भी बंद हो गया है | शोध पत्रिका करंट साइंस के ताजा अध्ययन के अनुसार बिहार के कई
जिलों में भूमिगत जल स्तर की स्थिति पिछले 30 सालों में चिंताजनक हो गई है | कुछ
जिलों में भूजल स्तर दो से तीन मीटर तक गिर गया है| पिछले 25-30 वर्षों में सतही जल के समुचित उपयोग और इसे रोककर रखने की व्यवस्था
के अभाव के अभाव और नहर-तंत्र के पूरी तरह से ध्वस्त हो जाने के कारण लोग यहां
सिंचाई के लिए पूरी तरह भूमिगत जल पर आश्रित हो गए हैं| पहले जहाँ दस से लेकर तीस
फीट नीचे ही भूजल मिल जाता था, वही अब सौ से डेढ़ सौ फीट नीचे पानी मिलता है। अब
स्थिति यह है कि बोरिंग के पानी के बिना रबी की बुवाई शायद ही हो सके। अब यदि जाड़े
के दौरान होने वाली बारिश भी दगा दे जाती है तो रबी फसलों की क्या दशा होगी, जबकि
नहरों में पानी की उपलब्धता नहीं होने से किसानों को भूमिगत जल के दोहन के सिवा
कोई विकल्प नहीं होगा, जो पहले से ही अतिशय दोहन और रिचार्ज के अभाव में संकट
ग्रस्त हो गया है | फिर अगले वर्ष में मानसून के आने के पहले गर्मी के दिनों में
पानी को लेकर होने वाले संकट की गंभीरता काफी भयावह है | बिहार की अधिकांश आबादी
के लिए भूजल ही पेयजल का एकमात्र बारहमासी स्रोत है। ग्रामीण इलाकों में पीने के
पानी के रूप में 85 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल होता है | भूमिगत जल का प्रदूषित
होना एक अलग समस्या है |
मौसम विभाग के आंकड़ों के
अनुसार बिहार में हर साल लगभग 1200 मिलीमीटर बारिश
होती है| बिहार के उत्तरी इलाकों से होकर हिमालय की कई नदियां निकलती हैं | लेकिन अब तक
बारिश से पानी की पर्याप्त उपलब्धता की वजह से इस क्षेत्र में भूजल के पुनर्भरण को
नजरअंदाज किया जाता रहा है। एक ओर कृषि क्षेत्र के दायरे में लगभग 950 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है तो दूसरी ओर जल निकायों का
क्षेत्र 2029 वर्ग किलोमीटर से
सिमटकर 1539 वर्ग किलोमीटर रह
गया है| एक अनुमान के अनुसार 2050 तक बिहार में पानी की मांग 145 बिलियन क्यूबिक
मीटर (बीसीएम) रहेगी। 105 बीसीएम पानी कृषि कार्य के लिए जरूरी होगा, जबकि 40 बीसीएम गैर कृषि
कार्य के लिए। इसकी तुलना में बारिश के बाद सतह जल की उपलब्धता 132 बीसीएम है। मांग और उपलब्धता में इस अंतर को
पाटने के लिए भूमिगत जल के दोहन में बढ़ोतरी होगी और अंततः संकट भी बढ़ेगा |
बिहार में बारिश के बाद सतह
के जल को रोककर रखने को लेकर कतिपय प्रयासों को छोड़कर न तो जागरूकता है और न व्यवस्था
है। बिहार सरकार के जल प्रबंधन की दशा और दिशा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है है
कि बारिश के इस पानी को प्रभावकारी ढंग से रोककर जलाशय में रखने की क्षमता एक बिलियन
क्यूबिक मीटर से भी कम है। नदियों और जलाशयों में तेजी से बढ़ते गाद के कारण उनकी जल
धारण क्षमता कम हुई है, जिससे बारिश का पानी जल्दी बाढ़ का रूप लेकर तेजी से बह
जाता है | नीति आयोग द्वारा तैयार किए गए समग्र जल प्रबंधन के सूचकांक के आधार पर जल
प्रबंधन, जल संचयन के क्षेत्र में गुजरात का स्थान प्रथम
है | इसके बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का स्थान है|
बिहार सरकार को परम्परागत
जल निकायों-तालाबों, कुंडों, जोहड़ आदि-को
पुनर्जीवित करने की दिशा में तेजी से अभियान शुरू किया जाना चाहिए | गाँव स्तर पर
सरकारी स्कूललों, मदरसों, निजी स्कूरलों, आंगनबाडियों, स्वालस्य्य केंद्रों, थानों और प्रखंड
कार्यालयों में सोक पिट (सोख्ता) के निर्माण द्वारा जल संरक्षण का प्रयास किया जा
सकता है | इस दिशा में राजस्थान सरकार द्वारा केवल 2 वर्ष पहले शुरू
की गई जल स्वालंबन योजना को बेहतर तरीके से लागू किया गया है, जिसके कारण बिहार की
तुलना कम नदियों और कम मानसूनी बारिश वाले इस राज्य के कई इलाकों के भूमिगत जल
स्तर लगभग 4-66 फुट बढ़ा है | राज्य के 33 में से 21 जिलों के भूजल में बढ़ोतरी यह
रेगिस्तानी राज्य जल संरक्षण और संचय की अद्भुत मिसाल बन गया है |
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