Monday, 27 October 2025

छठ पूजा : लोक आस्था, संयम और पर्यावरण संतुलन का पर्व

छठ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक ऐसा पर्व हैं जो न केवल धार्मिक आस्था का  प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक एकता, पर्यावरणीय चेतना और मानव-प्रकृति के सामंजस्य को उजागर भी करता हैं। यह पर्व श्रद्धा, संयम, आत्मसंयम और सामूहिक एकता की ऐसी मिसाल प्रस्तुत करता है, जो भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक, सामाजिक और दार्शनिक मूल्यों की सशक्त अभिव्यक्ति है।

छठ पूजा केवल पूजा या व्रत का अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह जीवन के प्रति कृतज्ञता, आत्मबल और प्रकृति के साथ संतुलित सह-अस्तित्व का उत्सव है। यह पर्व मूलतः सूर्य देवता की उपासना का पर्व है, जिन्हें जीवनदायिनी ऊर्जा, प्रकाश और स्वास्थ्य का स्रोत माना जाता है। सूर्य के प्रति यह श्रद्धा मानव जीवन की निरंतरता, कृषि की समृद्धि और पर्यावरणीय संतुलन की अभिव्यक्ति है।

आध्यात्मिक और दार्शनिक आयाम

आध्यात्मिक दृष्टि से छठ पूजा आत्मसाक्षात्कार और आत्मशुद्धि का पर्व है। व्रती इस अवसर पर अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हैं, जो आत्म-नियंत्रण और आत्मबल का प्रतीक है। व्रत के दौरान शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता पर विशेष बल दिया जाता है। यह संयम न केवल भौतिक तपस्या है, बल्कि आत्मा की उन्नति का माध्यम भी है।

सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा हमें यह सिखाती है कि जीवन में जो भी प्राप्त है, उसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। यह अर्घ्य केवल जल का नहीं, बल्कि श्रद्धा, आभार और विनम्रता का प्रतीक है। डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने की परंपरा यह भी दर्शाती है कि जीवन में उतार-चढ़ाव दोनों को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए। दार्शनिक रूप से, यह कर्मयोग का संदेश देती है कि हर परिस्थिति में निरंतर कर्म ही जीवन का आधार है।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

छठ पूजा की उत्पत्ति प्रारंभिक वैदिक काल से जुड़ी मानी जाती है। छठ पूजा की मूल भावना-सूर्योपासना और कृतज्ञता प्रकट करना-वैदिक परंपरा से जुड़ी है | ऋग्वेद में सूर्य और उषा की उपासना का उल्लेख मिलता है, जिसमें सूर्य को जीवनदायिनी ऊर्जा और समस्त सृष्टि के पोषक के रूप में वर्णित किया गया है। यह पर्व वैदिक आर्य संस्कृति की उस परंपरा को आगे बढ़ाता है, जिसमें प्रकृति और उसके तत्वों-सूर्य, जल, वायु और भूमि-की आराधना की जाती थी।

प्राचीन भारत में कृषि और गोपालन आर्थिक विकास के प्रमुख आधार थे। छठ पर्व इसी कृषि संस्कृति से जुड़ा है। यह किसानों का पर्व है, जो भूमि, जल और सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। सूर्योपासना इस बात का प्रतीक है कि सूर्य ही कृषि उत्पादन और जीवन का मूल स्रोत है | इस पूजा में प्रयुक्त होने वाला ईख(गन्ना), ऐसा कहा जाता है कि ईक्ष्वाकु वंश के समय में ईक्षु (गन्ना) से शक्कर उत्पादन आरंभ हुआ था। श्रीराम के शासनकाल में ईख की खेती और शक्कर उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे कृषि अर्थव्यवस्था को बल मिला। आज भी सरयू क्षेत्र में ईख की खेती उस प्राचीन परंपरा की याद दिलाती है, जो भारत के कृषि-आधारित आर्थिक विकास की जड़ में है।

सामाजिक और समतावादी स्वरूप

छठ पूजा की सबसे विशिष्ट विशेषता इसका लोकाभिमुख और समतावादी स्वरूप है। यह पर्व समाज के हर वर्ग को समान रूप से जोड़ता है। अन्य कई धार्मिक उत्सवों के विपरीत, इसमें पूजा का अनुष्ठान करने या कराने वाले पंडितों या पुरोहितों की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं होती। उपासक स्वयं ही अनुष्ठान करते हैं, जिससे यह पूजा आत्म-उपासनाका प्रतीक बन जाती है। यह अनुष्ठानिक लोकतंत्र का एक सुंदर उदाहरण है, जहाँ जाति, वर्ग, धर्म या आर्थिक स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

इस पर्व का सामुदायिक पहलू भी अत्यंत सशक्त है। परिवार के सदस्य और पड़ोसी मिलकर तैयारी करते हैं | घरों की सफाई, घाटों की सजावट और प्रसाद की तैयारी में सभी सहभागी होते हैं। इस सामूहिकता में सहयोग, समानता और एकता की भावना निहित है, इसलिए यह पर्व सामाजिक एकसूत्रता का पर्याय है।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण

छठ पूजा को सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल त्योहार माना जाता है। जहाँ अनेक आधुनिक त्योहारों पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने के आरोप लगते हैं, वहीं छठ पर्व पूर्णतः प्रकृति-संगत और सादगीपूर्ण है। इस त्योहार में प्लास्टिक, कृत्रिम सजावट या आतिशबाज़ी का प्रयोग नहीं होता। इसके स्थान पर प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे बांस से बने सूप, दौरा, मिट्टी के चूल्हे और घर में बनी मिठाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार, यह पर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

छठ पूजा का पर्यावरणीय पहलू केवल वस्तुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी संपूर्ण भावना में निहित है। यह पर्व पक्षियों के मौसमी प्रवास के समय के साथ मेल खाता है और प्रायः नदियों, तालाबों या प्राकृतिक जलस्रोतों के तट पर मनाया जाता है। इन अनुष्ठानों से मनुष्य और प्रकृति के बीच के सामंजस्यपूर्ण संबंध का प्रतीकात्मक प्रदर्शन होता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ तालमेल में रहना ही स्थायी जीवन का आधार है।

छठ व्रत : संयम और आत्मशक्ति का उत्सव

छठ व्रत को सबसे कठोर और पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है। इसमें व्रती तीन दिन तक कठोर नियमों का पालन करते हैं, जिसमें उपवास, निराहार रहना, पवित्रता बनाए रखना और प्रकृति के प्रति श्रद्धा प्रकट करना शामिल है। व्रती बिना किसी आडंबर या दिखावे के यह व्रत पूर्ण निष्ठा और समर्पण से करते हैं। यह आत्म-संयम का उत्सव है, जो व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाता है और आत्मबल की गहराई को अनुभव कराता है।

छठ पूजा : पर्यावरण से एकाकार का पर्व

छठ पूजा केवल धार्मिक आस्था का उत्सव नहीं, बल्कि यह जीवन का एक गहन दर्शन है। यह आत्मसंयम के माध्यम से आत्म-शक्ति प्राप्त करने, श्रम की गरिमा का सम्मान करने, प्रकृति के प्रति सम्मान विकसित करने और समाज में समानता तथा सहयोग की भावना को सुदृढ़ करने का पर्व है। यह कृषि के आर्थिक चक्र का उत्सव है।

आस्था के साथ-साथ यह पर्व एक आर्थिक और पर्यावरणीय आंदोलन भी है, जो दर्शाता है कि परंपराएँ केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास का भी आधार बन सकती हैं। यह केवल पूजा का दिन नहीं, बल्कि यह जीवन के उस दर्शन का उत्सव है जो कहता है "प्रकृति ही जीवन है, और उसका सम्मान ही सच्ची उपासना।"

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